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शनिवार, 5 दिसंबर 2009

ठल्हा बनिया हलावे कनिहा

सर्वप्रथम परमपूज्य स्वामी १०००००००००१०८ स्वामी श्री निठल्लानंद जी को मेरा शाष्टांग प्रणाम !
गुरुदेव जादा तो नहीं पर अभी वर्त्तमान में मुंबई में चल रही क्रीडा "लम्ब दंड गोल पिंड दे दनादन ले दनादन" के बारे में चंद पोस्ट करने कहा अतः आपकी आज्ञानुसार दो शब्द लिख दे रहा हूँ.  यह क्रीडा आपकी तरह आपके शिष्य जो शीर्षक में दर्शित विशेषता लिए हुए है, उसको भी बहुत पसंद है.  वास्तव में ठल्हा तो नहीं रहता पर केवल घुटने में ही काम के बारे में सोचते रहता है और दुविधा में रहते हुए साथ ही "आज करै सो काल कर काल करै सो परसों. इतनी जल्दी क्या है प्यारे जीना है अभी बरसो" वाली
कहावत चरितार्थ करते हुए इस क्रीडा के दर्शन करने में लग जाता है. अभी घुटना भी निठल्ला हो गया है. ज्यादा कुछ सूझ नहीं रहा है. प्रभु आप ही मार्ग दर्शन करें. आगे जारी रहेगा संवाद..... अभी चचेरे भाई के यहाँ विवाह कार्यक्रम में सम्मिलित होने जाना है. और हाँ कल तो दर्शन हो ही रहे हैं  ना आपके.

2 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…

जम्‍मों निठल्लानंद अउ ठलहानंद महराज के जय होवय.

हमर इंहा तो ठल्हा बनिया हलावे कनिहा के जघा ठलहा बनिया का करे ये कोठी के धान ला ओ कोठी मा भरे चलत हे अउ हम हा कमिया बने हंकर हंकर के धान उलिचत हंन. कोन जनि कब सुरताये के दिन आही. हा हा हा.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

जय होय तोर, दुनिया के जम्मो ठलहानंद मन बुलाग मा अमरगे हवय, देखव ना आप मन के पोस्ट मा अतका दम हवय के ब्लाग ले वानप्रस्थ ले डरे "संजीव तिवारी" हां घलो टिपियाये बर पहुंच गे। जोहार ले, तोर लीला निराला हवय्।