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सोमवार, 14 दिसंबर 2009

दूर (जहाँ से अप डाउन किया जा सके ), पदस्थ नौकरी पेशा लोगों की दैनिक यात्रा

नमस्कार जी!
मैं भाई सोचा कोई मेरी सुनेगा कुछ ट्यूशन पढ़ा देगा. ब्लॉग सजाने के लिए. और क्या क्या तकनीकियाँ हैं जिसे प्रयोग करके तरह तरह के ब्लॉग बनाए जाते हैं यह बताने के लिए. ऐसा सोच एक फिर ब्लॉग खोल लिया केवल यात्रा की यादें पोस्ट करने के लिए. .... ठीक है इसी में चलने देता हूँ... आज वह दिन याद आ रहा है जब हम भिलाई से कुम्हारी उसी वाल्टियर ट्रेन से जा रहे थे. पॉवर हाउस से ही १५ मिनट लेट निकली थी.  अब चरोदा स्टेशन के  एच केबिन में खड़ी हो गयी. काफी देर तक हिलने डुलने का नाम नहीं. उस दिन हमको रेलवे के कुछ सांकेतिक शब्द के बारे में पता चला. बात दरअसल ये हुई की हम यात्रीगण अब आपे से बाहर होने लगे थे. पहुँच गए केबिन के अन्दर. वहां बैठे एक महाशय से पूछने पर सही स्थिति बताने के बजाय शायद "नियंत्रक" से संपर्क में लगे  थे  या कोई और केबिन में संपर्क कर रहे थे. कह रहे थे "अलहाबाद " कभी  "कलकत्ता" कभी "बॉम्बे". हममे से  एक से रहा नहीं गया. वे बोलने लगे बात तो अलहाबाद, कलकत्ता, बॉम्बे की हो रही है और इनका काम देखो तो रायपुर के मौदहापारा से गया बीता है. हुआ ये था कि चरोदा के बाद बीच बीच में केबिन बने हुए हैं "ए" "बी" "सी" से लेकर 
शायद "एच" आखरी केबिन हो उनसे लाइन क्लियर होने की जानकारी ली जा रही थी और प्रत्येक  कबिन के नाम के  लिए उन शहरों के नाम लिए जा रहे थे .  "मौदहापारा" सुन सबका आक्रोश हंसी के माहौल में बदल गया... उस दिन पहुंचे तो आखिर देरी से ही.... फिर भी मजे लेते हुए.... 

3 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

सुंदर यात्रा संस्मरण ...जारी रखिए ...

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

मौजा ही मौजा-मजे लेते जाओ। अऊ बड़ अकन धमाल होथे यात्रा उहु ला लिखबे गा, सुक्खा-सुक्खा मे काम नई चलय।