लछमी दाई ए दारी कम से कम खच्चित आबे
हे लछमी दाई, तोर महिमा ला सबो झन जानथे. आदमी अपन अपन कूबत के अनुसार तोर पूजा अर्चना ला करथें. बस इही बिनती हे माँ के काखरो बर रिसाबे झन. ओइसे त पूरा भरोसा हे, चाहे गरीब के कुंदरा होय चाहे रईस के बँगला; जम्मो जघा गे होबे. दाई! भूले भटके काखरो घर छूटिच गे होही त ए दारी कम से कम खच्चित आबे. पूरा संसार मा जउन आज दिखत हे, खासकर तोर भक्तन के देस भारत मा, जैसे - मार- काट, कोन पराया ये कोन अपन, तेखर चिन्हारी नई ये, कब टोंटा ल रेत के रेंग दिही भरोसा नई ये, मंहगाई अलग ये सब कराये बर उकसाथे, भ्रष्टाचार हा त आदमी के रग रग मा समा गे हे, तउन ल दाई तंही भगा सकत हस. काली भाई दूज आय. जम्मो संगवारी ला, अपन अपन बहिनी के हाथ ले टीका लगवा के ओ मन ला, अपन परेम के रूप मा, उंखर सुख दुःख मा काम आये के वचन देवत बने उपहार दे के तिहार,
भाई दूज के अब्बड़ अकन बधाई....
जय जोहार......
खच्चित आबे = जरूर आना, कुंदरा = झोपड़ी, काखरो घर छूट गे होही = किसी का घर छूट गया हो तो, ए दारी = अबकी बार, चिन्हारी = पहचान, टोंटा ल रेत के रेंग दिही = गला काट कर भग जाएगा
5 टिप्पणियां:
sarah abhilasha..deepawali ki shubhkamnayen..
कुछ कुछ समझ आ गई आपकी पोस्ट ... अच्छा लिखा है....
सुभ-आसीस, बढ़िया रचना लिखे हौ. जुन्ना पोस्ट मन ला भी देखे हौं.छुट्टी मा दुरुग जावत हौं.फोन करहू.ये दे सम्पर्क खाल्हे मा लिखे हौं.
arun.nigam56@gmail
9907174334
बहुत सुन्दर और बार- बार पढ़ने की जिज्ञासा जाग्रत हो रही है । मेर पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
आपको भी शुभकामनाएँ।
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