शून्यं चाशून्यं च
माँ भगवती की अराधना के अभी अभी बीते वे नौ दिन थे। श्रद्धा, विश्वास, आस्था के सम्पूर्ण दर्शन कराने वाले ये नौ दिन। एक तरफ माँ शक्ति के उपासक की उपासना, दूसरी और "आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी" की अवधारणा के साथ पहाड़ावाली माँ बमलेश्वरी के दर्शन की लालसा लिए मीलों पैदल चलने वालों की श्रद्धा व आस्था। माँ भगवती भक्तों को अपने किसी न किसी स्वरूप का दर्शन अवश्य कराती है। लगता है हमने भी माँ के विभिन्न स्वरूपों में से एक "शून्य" स्वरुप का ब्लॉग के माध्यम से दर्शन किया। मन को रोक नहीं पाए। ध्यान आया माँ भवानी की नवरात्रि में स्तुति के लिए पढ़े जाने वाले श्लोकों का। ये श्लोक पुस्तक "दुर्गा शप्तसती" में उपलब्ध हैं। "श्रीदेव्यथर्वशीर्षम" स्तोत्र में माँ भगवती अपने स्वरूपों का वर्णन करती हैं। उन स्तोत्रों में एक है "अहम् ब्रम्हस्वरूपिणी। मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत।शून्यं चाशून्यं च।" माँ कहती हैं; " मैं ब्रह्मस्वरूप हूँ। मुझसे प्रकृति-पुरुषात्मक सद्रूप और अस्द्रूप जगत उत्पन्न हुआ।"
हमने देखा अपने ब्लॉग में पूर्व में लिखे कुछ पोस्ट को। पाया की माँ भगवती "शून्य" रूप में न केवल टिपण्णी कॉलम में बल्कि पोस्ट देखने वालों की संख्या वाले कॉलम में भी पधारी हुई हैं। माँ भगवती को सादर साष्टांग प्रणाम!
मेरे समस्त ब्लॉगर मित्रों को अमृत बरसाने वाला पर्व "शरद पूर्णिमा" की अग्रिम बधाई सहित .......
जय जोहार ......
1 टिप्पणी:
आपको भी सपरिवार "शरद पूर्णिमा" की अग्रिम बधाई ......
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