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शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

काल अउ आज माँ फरक

गाँव के रहैया आवं खावौं बोरे बासी.
करके सुरता बीते दिन के मोला घेर लेथे उदासी.   
पीढी दर पीढी संगे संग रहन भरे रहै घर मनखे मन ले    
घर के जतन मिल जुल के करन करै मदद सब तन मन धन ले  
कतको बड़े अघात हा संगी चिटीकुन नई जनात रहिस  
खुशी के दिन माँ घर हा संगवारी सरग कैसे बन जात रहिस  
कतेक सुग्घर मिल जुल के रहन दिल माँ रहै सबके प्यार  
बड़े मन के लिहाज करै सब पावै छोटे मन दुलार  
बखर बखर बीतत गईस उप्जिस मन माँ कुविचार  
के अलग थलग रहिके हमन पा जाबो सुख अपार  
होके अलग परिवार ले संगी चलत हे खीचातानी  
माँ बाप ला छोड़ कोनो के रिश्ता ला का जानी  
भुलाके सब रिश्ता नाता ला होगेन कतेक दुरिहा  
एही फरक हे काल अउ आज माँ एला तुमन सुरिहा

1 टिप्पणी:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बखर बखर बीतत गईस उप्जिस मन माँ कुविचार
के अलग थलग रहिके हमन पा जाबो सुख अपार
होके अलग परिवार ले संगी चलत हे खीचातानी
माँ बाप ला छोड़ कोनो के रिश्ता ला का जानी
भुलाके सब रिश्ता नाता ला होगेन कतेक दूरिहा
एही फरक हे काल अउ आज माँ एला तुमन सुरिहा

बड़ सुग्घर गोठ केहे हस संगी, अइसने जमाना आ गे हवय,
बने अपन बानी मा लिखे हस, मोला अड़बड़ बने लागिस,
बने लिखओ कसके लिखओ अऊ अपन भाखा के परचार होना चाही
कबहु टैम मिलही त अड़हा के गोठ म आपके अगोरा हवय
आप ला सुरहुति तिहार के झंउहा-झंउहा, गाड़ा-गाड़ा बधई