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शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

विराजो माँ लक्ष्मी

दीपमालाओं से जगमग सारा घर द्वार है
मना रहा है देश आज दिवाली  त्यौहार है

 कर रहा है रौशन ये जलता चिराग है
 धधक रहा गरीब-उदर जहां क्षुधा की आग है 

अमीर व गरीब के बीच कैसी बन गयी है खाई 
जर जोरू जमीन हेत लड़ रहा है भाई भाई

धर्म - पंथ क्या बला है   यह  समझ न आई  
लड़ रहा इंसान  व्यर्थ मजहबी लड़ाई 

मिटा दें  इस खाई को मिला  दें भाई भाई को 
मेहनत से डरें नही तरसें  न पाई पाई को 

नैतिकता के संग संग जानें  मानवता की परिभाषा    
माँ लक्ष्मी की दया दृष्टि हो,   करे पूरी सबकी अभिलाषा

द्वार खुला तेरे स्वागत को,  पधारो माँ लक्ष्मी
छोड़ हमें जाना नहीं,  विराजो माँ लक्ष्मी 

 दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!!

शुभ दीपावली.