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गुरुवार, 4 नवंबर 2010

छोटी दीपावली की बहुत बहुत बधाई

पौराणिक कथाओं के अलावा ऐसा प्रतीत होता है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से शरीर में चरम रोग न होने पाए साथ ही रक्त प्रवाह सुचारू रूप से होता रहे इसलिए प्रकृति प्रदत्त द्रव्यों यथा तिल, चिचड़ा आदि का उबटन लगा व मालिश कर स्नान करना वर्णित है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित प्रतीत होता है.
नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है।
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समझ यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राज की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।

दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उपरोक्त कारणों से नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से जाना जाता है.
मेरे सभी ब्लॉगर मित्रों को पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं. 
स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं है यदि अनुभव यह कर पाए 
सन्मार्ग पर रखें कदम,  पग में  कांटे न चुभने पाए
दुःख सुख में बन सबके सहभागी सहृदयता का अलख जगाएं
"प्रकाश" के इस पावन पर्व में अवगुण का अँधेरा मिटायें 
हम ऐसी दिवाली मनाएं 
जय जोहार .........

8 टिप्‍पणियां:

Saleem Khan ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

Randhir Singh Suman ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आपको और आपके परिवार में सभी को दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ! !

जय जोहार ...|

निर्मला कपिला ने कहा…

आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपने बहुत अच्छी और नयी जानकारी दी ...
दीपावली की शुभकामनाएं

ASHOK BAJAJ ने कहा…

दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं उज्जवल भविष्य की शुभकामनाओं का आकांक्षी .

आपका
अशोक बजाज रायपुर

ASHOK BAJAJ ने कहा…

'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्‍य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।

दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर

cgswar ने कहा…

स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं है यदि अनुभव यह कर पाए
सन्मार्ग पर रखें कदम,पग में कांटे न चुभने पाए

सिर्फ 5 दिवस ही नहीं पूरा वर्ष हो उज्‍जवल,
स्‍वर्ग-नर्क के बीच से हमें स्‍वर्ग के अहसास और अनुभव को ही जगाना है, सन्‍मार्ग पर ही कदम बढाना है।