सूर सूर तुलसी शशि, उरगन केशवदास। अब के कवि खद्योत सम जंह तंह करत प्रकास॥ ये दोहा हमर जैसे अड़हा बर लिखे हे। कभू किताब कापी ल पढ़ेन नही। तोपचंद बने के कोशिश करे लगेन । जब बने बने सुग्घर साहित्य ल देखे नई रहिबे पढ़े नई रहिबे त कायच कर लेबे। बने हे बुलाग जगत एमा थोर बहुत देखा सीखी लिखा जाथे, ओहू टेम मिलथे तब . ए दारी सावन मा बने झड़ी लगे हे। सावन के झड़ी का लगे हे एती पेट गड़बड़ा गे, उहां झड़ी लग गे। घेरी बेरी सुभीता खोली के जवई। ले दे के माड़े हे अभी। लईका ल ले के आई आई टी मा सलेक्शन होगे हे उंहा भरती करवाये बर जाना हे। ए मौसम हा डाक्टर मन बर तिहार बरोबर रथे। जहां देख उंहा लाईन लगे हे । कोनो ल सर्दी खांसी कोनो के पेट खराब। इही खातिर कथें खाये पिये बर सावधानी रखो ए सीजन मा। मन मा आईस ये बिचार हा त लिख पारेंव। अब सोचत हौं एखर हेडिंग का दंव। भले मिक्चर बन गे हे लिखई हा, तभो ले हेडिंग जम जहि तईसे लगथे……… जय जोहार्………………
4 टिप्पणियां:
जो भी लिखा है आपने अच्छा लिखा है.भाषा आती नहीं है,फिर भी कुछ कुछ समझ आ रही है.
शुरू का दोहा बचपन में याद किया था.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आयें.
bahut hi badhiyaa
ओती के झड़ी माड़िस त एती चालु होगे। कुल मिला के झड़ीच झड़ी हवे।
अउ इंहा जम्मो खद्योत मन कलबलावात हे।
तुलसी केवसदास बन मन ला मड़हावत हे।
जय हो
कुछ कुछ समझ आ रही है......
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