क्या मानव द्वारा ईश्वर पूजा, ध्यान, योग, या कहें आज की तारीख में धर्मग्रंथों में लिखे उपदेश निहायत ही आज के जीवन में अनुपयोगी हैं? विजयादशमी के दिन चर्चा चल रही थी; क्या सचमुच रावण के दस शीश थे? और हाथ कान आँख याने मानव के कंधे से जुड़े व कंधे के ऊपर के अंग जो 2-2 होते हैं, वे क्या मल्टीप्लाइड बाई टू थे? आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा था कि कैसे देवियों/देवताओं की कभी अष्ट भुजाएं कभी सहस्त्र भुजाएं हो सकती हैं? कहा जा रहा था सब काल्पनिक है। यह भी हास्य का विषय बना हुआ था कि कैसे किसी एक व्यक्ति के सैकड़ों/हजारों बच्चे हो सकते हैं। मेरे मन में भी ऐसे प्रश्नों का उत्तर सूझ नहीं रहा है क्योंकि हक़ीक़त में हमने किसी भी धर्मग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया है किन्तु एक बात बार बार मन-मस्तिष्क को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि उस समय मनुष्य अपनी तप साधना से, योग साधना से निश्चय ही उर्जावान रहा होगा। दीर्घ-जीवी रहा होगा। जहां तक उनकी संतानों की संख्या का प्रश्न है यह भी अविश्वसनीय नही हो सकता जैसा कि अभी तक किसी किसी घर में दर्जन भर सगे भाई-बहन हो सकते हैं तो औसत आयु के हिसाब से प्राचीन युगों में शत व सहस्त्र में संख्या हो सकती है। वैसे प्रवचनों में इन सबकी व्याख्या की जाती है कि इन देवी देवताओं के अंग हों या इनकी संताने, रानियाँ, पटरानियाँ, ये सब ज्ञान, वेद, उपनिषद ही हैं अथवा इनकी शाखाएं हैं।
कर्मकांड को भी एक पाखण्ड कहा जाता है। वैसे इसकी आड़ में आज के तथाकथित
ईश्वर-अभिकर्ताओं द्वारा लोगों को भ्रमित कर पैसे वसूलना, चमत्कारों का
प्रदर्शन कर अनुयायी बनाकर कुकर्म करना निश्चय ही दंडात्मक है। मैं, चूंकि अपने मन की संतुष्टि के लिए ही क्यों न हों; थोड़ी बहुत पूजा-पाठ सम्पादित कर लेता हूँ। पता नहीं इसके बिना मन को सुकून नहीं मिलता। लेकिन दिन रात एक ही प्रश्न उठते रहता है, क्या प्राचीन धर्म ग्रन्थ उपनिषेद सब व्यर्थ हैं? क्या पूजा-पाठ सब व्यर्थ है? बस इस बात का उत्तर मेरे समस्त मित्रों से प्राप्त होने की आशा में ....
जय जोहार ........
2 टिप्पणियां:
दर्शन के विषय पर सबके विचार भिन्न हैं, जिसका प्रभा मंडल जितना बना है उतना ही उर्जा को ग्रहण करता है। ५ किलो के झोले मे १० किलो नहीं डाला जा सकता। पूजा पाठ ध्यान योग सब निजी मामला है। कोउ काहू में मगन कोउ काहु मे मगन।
कोई परम शक्ति(SUPER POWER)तो है जो इस संसार का संचालन करती है, शायद वही ईश्वर है, बाकि उसे भिन्न-भिन्न रूप देने वाले हम इन्सान ही हैं...
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