आईए मन की गति से उमड़त-घुमड़ते विचारों के दांव-पेंचों की इस नई दुनिया मे आपका स्वागत है-कृपया टिप्पणी करना ना भुलें-आपकी टिप्पणी से हमारा उत्साह बढता है

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

अड़हा बईद प्राण घातका

मैं कभू कभू सोचथौं के ये ब्लॉग माँ बाकी मन अपन संदेश ला कतेक सुग्घर संवार के मडाथें ओइसने मोर संग काबर नई बने। ओ दिन शरद भाई के ब्लॉग माँ जाके हिन्दी माँ कुछ अपन मन के बात ला लिखिहौं कहिके सोचेवं त उटपुटांग छप गे। अरे मोर ब्लोगिस्ट संगवारी मन ला बिनती करत हौं एखर कैसे ढंग ले संपादन करथें तेला इही भाखा माँ समझा देतेव कहिके। नई त अड़हा डाक्टर बरोबर कारोबार हो जाही। काखरो कविता के, लेख के बारे माँ अपन बिचार ला कैसे टिपण्णी के खंड माँ हिन्दी माँ लिखे जाथे ओही ला चिटीकुन समझा देतेव।

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

पुछ ना गा, काला-काला पुछना हे ता-हमन काबर हवन- अउ ये दे मा तोर मों.न. shilpkarr@gamail.com 9425514570 इ मेल कर, तहां ले सब हो जाही कांही संसो के बात नैइ ए- जोहार ले

बेनामी ने कहा…

आपकी मदद को हम भी तैयार हैं।
अपनी ब्लॉग उलझनें साझा करें।
ललित जी ने तो नम्बर भी दे दिया है।

बी एस पाबला