महराज मन के गणित ला देखौ,
कतेक कम मुहूरत हे ये दारी
करे बर बर बिहाव
देख के न्यौतन के कारड ला
पर जाथे सोचे बर भाई हो
काखर घर भेजौं रीत
काखर घर खुदे जाँव
जाके देख थन बिहाव घर माँ
बिपतियाये घराती अपन काम बूता माँ
हाय हेलो भर कर लेथे,
कहूँ बन के बाराती तैं गे हस त
नचई कुदई पेर देथे
मिल गे मंडली त बने लागथे
नई तो हो जाथस तय बोर
रीत दे के भागे के मन करथे
फेर बिन खाके जाय माँ लागथे
अन्याय हो जाही घोर
काबर के
किसिम किसिम के जिनिस बने हे
जेला कथें आजकल बफेलो (बफे)
फेर काहे चूकौ संगवारी
झन छोडो एको आइटम ला
एक एक करके गफेलो
लेकिन ध्यान रहै
पेट तुंहर आय कोटना नो है
सम्हल सम्हल के खाव
नई समझहू त हम का करबो
दिखही रस्ता सुभीता खोली के
उहाँ हउरा फेट लगाव
ये दारी = इस समय
बर बिहाव = शादी ब्याह
खुदे = स्वयं
न्यौतन कारड = निमंत्रण पत्र
काखर घर = किसके घर
रीत = उपहार
बिपतियाये = व्यस्त
काम बूता = काम में
जिनिस = चीजें, व्यंजन
गफेलो= खाओ, पेट में ले जाओ
कोटना= मवेशी को चारा खिलाने का पत्थर का बना टब नुमा
चीज
हम का करबो = हम क्या करेंगे
सुभीता खोली = जहाँ रोज सुबह जाया जाता है
बताने कि जरूरत नहीं समझता
हउराफेट= बार बार जाने कि क्रिया
4 टिप्पणियां:
लेकिन ध्यान रहै
पेट तुंहर आय कोटना नो है
सम्हल सम्हल के खाव
नई समझहू त हम का करबो
दिखही रस्ता सुभीता खोली के
उहाँ हउरा फेट लगाव
"सुरता रखे रबे गा "सुभिता खोली के"
कम खाबे अऊ गम खाबे,
नई ते हवरा फ़ेट लगाबे
बने हवे
"लगे रहो भाई बबला
झन होवे काहीं घपला"
गोठ बर-बिहाव के हावे
ये बने करीस भैया हमला बता दीस ..बिहाव के घर मा नवा नवा जिनिस देख के इच्छा होथे पर फेर सुभीता खोली मे बार बार जाय के नाम से डर्रा जथौं ।खाय के बाद पानी के घलौ ध्यान रखना है । हमर यहाँ किथे नही " गुरु बनओ जान के औ पानी पियो छान के "
इंटरनेट पर "खैरागढ" नाम से सर्च करते हुए आपका यह ठिकाना मिला. ठेठ छत्तीसगढी में अच्छी कविता. छत्तीसगढी में ज़बर्दस्त हास्यबोध है, यहां के लोगों को अपनी बोली की इस खूबी का बखूबी उपयोग करना चहिये. शुभकामनाएं. लिखते रहिए.
-विवेक गुप्ता, भोपाल
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
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