आंकड़ों का खेल
यह पोस्ट केवल आंकड़ों के एक संयोग के लिए लिखी जा रही है. दरअसल आज दो संयोग एक साथ बना. एक तो लगातार तीन पोस्ट पर अजीज मित्रों के १३-१३ आशीर्वचन प्राप्त हुए. भाई न मेरे पास पुस्तकों का संग्रह है न ही ज्यादा वक्त दे पाता हूँ लेखन आदि में. जो कुछ लिखता हूँ आप लोगों से ही सीख कर. अतः ये आंकड़ों के संयोग पर ये जुमला याद आ गया:-
तीन तेरा नौ अट्ठारा। अटकर पंचे साढ़े बारा॥ जो मेरे ऊपर अक्षरस: लागू होता है।
(२)
आज अनुसरणकर्ताओं की संख्या 36 हो गई है। भगवान से प्रार्थना है हमारा किसी से छत्तीस का आंकड़ा न रहे।
आज मूड मे यह सब लिख बैठे। कृपया सीरियसली न लेवें।
जय जोहार ............
6 टिप्पणियां:
तीन तेरा नौ अट्ठारा ....
अटकर पंचे हर तो जीवन के अनुभव होथे भईया, किताब तो एक ठन सहारा ये, किताब सकेलई घलव एक ठन नसा ये, सकेल डरे तहॉं ले ओला बिलई के लईका जईसे पोटारे ल तको परथे, जउने पढे ला मांगिस उही दबा जाथे।
वईसे मोर समझ मा स्कूल कालेज म जउन पढें हंन उही हा लेखन मा काम आथे बाकी सब साधन हा माटी राख हे 'कौशल' ला मांजे के।
आंकड़ा के खेल हा एक ठन संजोग ये, ये आंकड़ा के खेल तो हिन्दी ब्लॉग जगत मा बनाये जाथे, जुगाड़ ले। असल आंकड़ा आपके टिप्पणीकर्ता मन संग आपके आभासी संबंध के प्रगाढ़ता ये।
जय हो महाराज !
जय जोहार !
बिना हेडिंग के पोस्ट ला लगा दे हस। मोरो सकरी क्र. 13मा अमरगे हे।
अड़बड़ अटकर पंचे होगे:)
जोहार ले
... बने सुग्घर लिखे हवस गा महराज... जय जोहार!!!
आंकड़ों का खेल ऐसा ही होता है....लीजिए हमने आंकड़ा बदल दिया...अब चिन्त्ता की कोई बात नहीं है ...अब तो इंतज़ार है कि यह आंकड़ा जल्दी ही ६३ का हो जाये .. :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
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