इस समय शायद एक महीने के अंतराल के बाद फिर विवाह का सीजन शुरू हो गया है. निमंत्रण पत्र खूब आये. देखने में आया कि आज समाज खंडित हो रहा है. हो सकता है अब हम वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा के साथ आगे बढ़ रहे हों. लेकिन यह सब उस समय अच्छा लगता है जब अभिभावक/मातापिता (दोनों पक्ष के) की सहमति व उनकी ख़ुशी को ध्यान में रखते हो. वर्तमान परिदृश्य के लिए ऐसा लगता है कि सह शिक्षा जिसे अंग्रेजी में को एजुकेशन कहते हैं, उसी का असर है.
सह शिक्षा याने को एजुकेशन
किशोर किशोरियों में परवान
चढ़ता यह फैशन
शिक्षा पूरी हो न हो
बना लेते हैं अपनी अपनी जोड़ी
संतान का भविष्य के सजाने संवारने
की चिंता में करते रहते अभिभावक/माता पिता
अपनी माथा फोड़ी
हो गए हैं आज इतने अडवांस
अर्थोपार्जन में लग जाते हैं
परिणय सूत्र में बंधने
दृढ निश्चय कर जाते हैं
माता पिता की साध रह जाती है अधूरी
कहते हैं, पापा कर दो सर्टिफाई हमें
आपके लिए कुछ करने का बचा नहीं कोई चांस
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