अभीच्चे एक ठन हाना मोर दिमाग मा आइस "नकटा के नाक कटे सवा हाँथ बाढ़े" त लिख दे थौं. का हे एक तो कभू जादा बैठों नहीं ए मेरन याने ब्लॉग मा. अउ मन उचट घलो गे रहिसे "टिपण्णी" पुराण पढ़ पढ़ के. आज फेर एक ठन लेख/कविता देख परेंव टिपण्णी ऊपर. मोर मन नई माढिस जी. सोचेंव मोर नाक बहुत छोटे हे इहाँ मैं काहीं च नई लागँव. ओतका न हिंदी के विशेषज्ञ आंव न लिखे उखे बर आवै. टिपण्णी कैसे पाहूं अपन पोस्ट मा? सोचेंव भैया अतेक लोगन मन उखेन पानी पियावत हें ये टिपण्णी पुराण लिख लिख के ओखर कुछ कारण होही त समझ मा आइस के एक दूसर के नाक काटे म जादा फायदा हे, नाक कटही नहीं त बढ़ही कैसे. कैसे ए हाना हा फिट बैठही " "नकटा के नाक कटे सवा हाँथ बाढ़े". मन मा अपन बर सोचेंव अगर तोला अपन नाक ऊंचा करना हें या बढ़ाना हे त लिख कुछु कांही. नकटा बनबे . तभेच तोरो नाक हा बाढ़ही.
जय जोहार भैया मन ल. ये सब उदिम अपन खातिर लिखे हंव आँय!
2 टिप्पणियां:
हा हा हा
सरी गोठ ला कहिके, ये दे हाना ला मोर बर लिखे हंव कहिके बांचना कौनौ हां तोरे ले सीखे।
जय हो गुर जी, बने रेते हस्।
हा हा हा
... बने लिखे हस गा .... तहूं नकटा मन के भाव ला बढाबतहस ... नाक कट गीस तौ कट गीस ओला अऊ बढाए के काबर सोचतहस गा!!!!
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