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बुधवार, 7 जुलाई 2010

"फ़रक़ तो पड़ता है भाई"

ॐ गं गणपतये नमः
 "फ़रक़ तो पड़ता है भाई" आप लोगों ने बहुत पहले दूरदर्शन पर दिखाया जाने वाला विज्ञापन जरूर देखा होगा। इस विज्ञापन के माध्यम से यह बताया जाता था कि रेल्वे क्रोसिंग  सोच समझकर दोनो ओर देखकर गाड़ी पार करनी चाहिये वह भी जब वहां कोई फ़ाटक न लगा हो। उस विज्ञापन मे बस ड्राइवर पहले तो दूसरे बस ड्राइवर के कहने पर ट्रेन आती हुई दिखाई पड़ने पर भी कोई फ़रक़ नही पड़ता कहकर बस क्रॉस करा देता है। दूसरी बार भी वही ढर्रा अपनाता है और उसकी मौत हो जाती है। उसके घर मे दिखाया  जाता है उसकी तस्वीर मे माला पहना दी गई है संकेत के बतौर कि यह शख़्स अब जिन्दा नही है। साथ ही यह भी दिखाया गया है कि वह तस्वीर बोल पड़ती है "फ़रक़ तो पड़ता है भाई"  कुछ ऐसा ही दृश्य ब्लॉग जगत मे भी दिखाई पड़ता नज़र आ रहा है। हम अंधा धुंध पोस्ट उड़ेले जा रहे हैं। हो सकता है कुछ ऐसी पोस्ट भी लिखी गई हो जिसमे असंसदीय भाषा का प्रयोग किया जाना दिखाई पड़ा हो। यह गूगल बाबा के नाराज़ होने का कारण भी हो सकता है। परिणाम ब्लॉगवाणी का विलुप्त होना। आज चाहे टिप्पणी लेखन हो या अपनी रचनाओं का प्रकाशन। "फ़रक़ तो पड़ा है भाई"
जय जोहार………

5 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…

सही ये 'फरक तो परथे भई.'

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने !
जय जोहार.....

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सही कहा आपने !

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सही बात है। आभार।

Udan Tashtari ने कहा…

फरक तो पड़ता है...पक्का!