बीती रात की घटना है,
बिछ गई हैं पुणे में कईओं की लाशें
हम सारे भारतवासी मना रहे वेलेंटाइन डे
चिंता नहीं जरा भी शिकन नहीं हमारे चेहरे पर
छोटे बड़े सभी हैं मस्त मस्ती में,
सांप तो निकल चुका, पीट रहे हैं लकीर
सूझ नहीं रहा है, कहाँ और कैसे
इन मौत के सौदागरों को तलाशें
तलाशने से भी क्या इन सौदागरों को
इस अंजाम का खामियाजा भरवा पाते हैं
नहीं, ये शख्स तो अंधे क़ानून का सहारा ले
"ठोस सुबूत न होने" के अदालती फरमान के
जरिये अपने आप को पाक साफ़ साबित करवा जाते हैं
भाई, मैं भी इसे केवल उक्त पंक्तियों के द्वारा अपने मन में उमड़ रहे भावों को प्रकट किया है कोई कविता नहीं है ये. अभी अभी (कुछ दिन पहले )समाचार पत्र में वह भी दैनिक भास्कर के उस पृष्ठ में, जहां बड़े बड़े पत्रकारों के विचार प्रकाशित किये जाते हैं, छपा हुआ था कि अभी हमारे देश में कुछ दिनों से कोई इस तरह के हमले नहीं हुए हैं. मगर पडोसी वक्त की तलाश में है. और देखिये घटना घटित हो ही गयी.... कैसे होगा बंद आतंकवाद!!!!!!!!!!
2 टिप्पणियां:
क्या कहा जाये ऐसी दुखद और निन्दनीय घटनाओं के लिए.
सरकार की असफलताओ पर और ऐसी घटनाओ पर बहुत दुख होता है...
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