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रविवार, 21 फ़रवरी 2010

"राधे बिन होली न होय बिरज में"


             होलिका दहन पर्व के कई मत, मतांतर हैं। इसे मुख्य रूप से हिरण्य कश्यप की बहन होलिका के दहन का दिन माना जाता है, वहीं शास्त्रों में कई तरह के मत दिए गए हैं। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक के बाद होलिका दहन की परंपरा है।  पारंपरिक दृष्टिकोण  कहता  है कि खेत से उपजी नई फसल या कहें नव अन्न का  यज्ञ/ हवन किया जाता है. यह परंपरा गांवों में अभी भी प्रचलित है।
            सामान्यत: रंगों के  इस त्यौहार के संबंध में भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद  को गोद में लेकर  हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिन्हें वरदान प्राप्त था कि अग्नि उन्हें जला नहीं सकती,   के अग्निकुंड में बैठने जाने  की कथा प्रचलित है। वस्तुतः हिरण्यकश्यप अमरत्व का वरदान पा लेने के आवेश में (यद्यपि यह उसका  भ्रम ही था)  अपने को ईश्वर समझ बैठता है व चाहता है कि सभी उसकी ही भक्ति करे. वह आततायी हो जाता है. अपने पुत्र प्रहलाद को परम पिता परमेश्वर की भक्ति करने से रोकता है किन्तु प्रहलाद अडिग रहता है. उसे ज्ञात है कि  ईश्वर एक है. प्रहलाद की  भक्ति में इतनी शक्ति थी कि होलिका का दहन हो जाता है वहीं  भक्त प्रहलाद बच जाते  हैं.    इसके साथ ही होली से  सम्बंधित कई मान्यताएं प्रचलित हैं-
                शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान मानव मन-मस्तिष्क में काम भाव रहता है। भगवान शंकर द्वारा क्रोधाग्नि से काम दहन किया गया था, तभी से होलिका दहन की शुरुआत होना भी माना गया है।
                   होली इस पर्व के पीछे वैज्ञानिक कारण भी मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि दो ऋतुओं का यह समय संधि काल होता है अर्थात  सर्दी के  जाने और गर्मी के  आगमन की  के दिन हैं। ऐसे में सर्द गर्म (शीत ज्वर) से अधिकाधिक लोगों के स्वास्थ्य खराब होते हैं। इसी के निवारणार्थ वातावरण में गर्मी लाने के लिए होलिका दहन किए जाते हैं।
                   शास्त्रों के अनुसार इस दिन आम्र मंजरी, चंदन का लेप लगाने व उसका पान करने, गोविंद पुरुषोत्तम के हिंडोलने में दर्शन करने से वैकुंठ में स्थान मिलना माना गया है। भविष्य पुराण में बताया गया कि नारद ने युधिष्ठिर से कहा कि इस दिन अभय दान देने व होलिका दहन करने से अनिष्ट  दूर होते हैं।

                           सारांश में यह कहा जा सकता है  कि  अपने मन के विकारों को जला प्रेम के रंगों में एक दूसरे को रंगने का पर्व है.  आयें हम सब मिलकर आत्मीयता के साथ इस पर्व का आनंद लें....... मेरे सभी मित्रों को "होली" की सप्रेम बहुत बहुत बधाई..........
जय जोहार.......

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति!

राधे तू बड़भागिनी कठिन तपस्या कीन।
तीन लोक तारन तरन सो तेरो आधीन॥

अमिताभ मीत ने कहा…

सुन्दर !

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहुत बढिया पोस्ट।
होली है हो्ली है गुप्ता जी।
बधाई हो भाई
तंहु होलिया गेस

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन..बस आ ही रही है!!

रानीविशाल ने कहा…

Waah! bahut sundar..dhanywaad!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/