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शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

क्या बाह्य आवरण ही किसी वस्तु अथवा व्यक्ति की विशेषता का आंकलन करने में सहायक है?

                आज अचानक मुझे इस विभाग में अपने दाखिले का दिन याद आ गया.  नया, सहमा हुआ, केंद्रीय उत्पाद शुल्क प्रभागीय कार्यालय भिलाई में नियुक्ति आदेश प्राप्त होने पर  अपनी उपस्थिति दर्ज कराया था.  एक बात जरूर बताना चाहूँगा कि मेरे केंद्र शासन के वित्त मंत्रालय के अधीन कार्यरत विभाग में देश के प्रत्येक प्रांत से आये हुए लोग कार्यरत हैं. यूँ कहें कि यहाँ सर्वधर्म समभाव का नमूना देखा जा सकता है.  प्रारम्भ में ही अपने सहयोगी मित्र के साथ क्रोकरी खरीदने जाना पड़ा तो मित्र ने कहा कैसी विडम्बना है पीनी है आठ आने की चाय और कप सासर चाहिए बोन चाइना का. यहाँ उन्होंने ही समाधान भी किया कि यदि किसी बड़े अधिकारी को चाय काफी यदि सहज मग्गे में देंगे तो चाय के साथ साथ उस बड़े अधिकारी की भी इज्जत मिटटी में मिल जायेगी, चाहे भले ही उतनी जायकेदार न बनी हो.  याने चाय का मान बढ़ गया उस बोन चाइना वाले कप में रखे होने के कारण. कुछ यूँ ही हाल ब्लॉग जगत में है.  कैसी भी पोस्ट हो यदि लब्ध प्रतिष्ठित ब्लॉग लेखक के ब्लॉग में है तो समझिये वह पोस्ट हाई लेवल की हो गयी. किन्तु एक सहज व्यक्ति द्वारा लिखी उत्तम पोस्ट का कोई मायने ही नहीं है.  है न बाह्य आवरण का प्रभाव? यहाँ तक तो फिर भी ठीक है. 
                        दूसरा वाकया: एक विभाग के साहब बहादुर, बाह्य सुन्दरता व व्यक्तित्व के धनी, रोबदार चेहरा,  अधीनस्थ वर्ग इन साहब के केवल व्यक्तित्व  का उपयोग कहीं निरीक्षण में जाने पर किया करते थे यह बोलकर  कि अमुक फैक्ट्री में जाना है,  आप चुप बैठे रहिएगा बाकी काम हम लोग निबटा लेंगे.  और हाँ आप मुंह इनके सामने जरा भी नहीं खोलेंगे नहीं तो बनता काम बिगड़ जाएगा.  याने सोचिये;  बाह्य आवरण  आकर्षक  जरूर लेकिन बालकनी खाली.  तात्पर्य यह है की व्यक्ति बाहर से कितना भी सुन्दर स्मार्ट दिख रहा हो पर यदि बालकनी खाली है तो केवल इस बात के सहारे आगे नहीं बढ़ा जा सकता कि आप कितने स्मार्ट हैं. बुद्धि व विवेक का सही इस्तेमाल होना भी जरूरी है. नक़ल करो भी तो विवेक के साथ............. जय जोहार!
 

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

जय जोहार..


ऐसा बाह्य आवरण (सो कॉल्ड) या प्रतिष्टा स्थापित करने के लिए भी कुछ मेहनत तो लगी ही होगी उनको ...

मैं बनिस्पत परेशान होने के उस मार्ग का अनुसरण करना पसंद करुँगा जिसकी वजह से वो ऐसा आवरण स्थापित कर पाये जिससे अब कुछ भी लिखा भीड़ खींच ले रहा है.

तय बात है कुछ न कुछ तो अलग बात होगी.

शरद कोकास ने कहा…

बालकनी खाली है....का जवाब नही । अब तो यहाँ सबकी बालकनी खाली हो गई है बस काम किये जा रहे हैं । मौसम के दफ्तर पर मेरी ताज़ी कविता पढ़ो ब्लॉग मे मज़ा आयेगा ।