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शनिवार, 24 अप्रैल 2010

फर्स्ट आने का सुख


सोचता हूँ यदि जीवन में यदि प्रतिस्पर्धा न हो तो मज़ा ही क्या?  हम सभी सोचते हैं कि हरेक प्रतिस्पर्धा में अपना स्थान पहला हो. चाहे इसे हंसी के रूप में लें या गंभीरता से. एक वाकया लिख रहा हूँ. कल हमारी,  धर्म-पत्नी जो बैंक में वरिष्ठ सहायक के पद पर कार्यरत हैं, बैंक से आयीं और बताने लगीं कतार में खड़े दो व्यक्ति आपस में झगड़ रहे थे कह रहे थे मेरा नंबर पहला है...... ज्यादा बात बढ़ने लगी थी,  माहौल बिगड़े न यह सोच जो वास्तव में पहले खड़ा था, बोला "यार कभी तो फर्स्ट आया हूँ" अब मुझे ही पहले पैसे लेने दो न. बैंक में खड़े सभी ग्राहक और स्टाफ भी हंस पड़े.  जैसा भी हो लगता है उस बेचारे के मन में कहीं न कहीं इस बात का दुःख है........ जय जोहार ........

6 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

जीवन में यदि प्रतिस्पर्धा न हो तो मज़ा ही क्या?
आपसे सहमत।

कडुवासच ने कहा…

... बात सही है पहली बार मौका मिला वहां भी ...!!!

कडुवासच ने कहा…

....खैर ऎसा हो जाता है !!!!

कडुवासच ने कहा…

....पर ये ठीक नही होता जब कोई पहली बार फ़र्स्ट आता है तो कोई और ही बात होती है!!!

कडुवासच ने कहा…

....अरे ये तो भूल ही गया कि .... प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ...बधाई !!!!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

ये दे फ़र्स्ट अवइया ला बिलम होगे
अब कइसे करबे?
कभु पाछु डहार भी होए ला लागथे।
जोहार ले दाउ जी