गमछा के गुन
गुन गमछा के जान लौ, ढाँकै पोंछै देह।
बात इहू सब मान लौ, रखथें नेता नेह।।
रखथें नेता नेह, चिन्हारी गमछा डारे।
माँगे बर जी वोट, फिरैं उन हाथ पसारे।।
होंय न नेता आज, देख लौ बिन चमचा के ।
ढाँकै पोछै देह जान लौ गुन गमछा के।।
जय जोहार....
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग