धन्य है हमारा देश!
भिन्न भिन्न बोली
भिन्न भिन्न भाषा
हर का पृथक पृथक परिवेश
कब तक बनी रहेगी "बेचारी"
पाकर भी राजभाषा का दर्जा
सोचती है; कम से कम याद
तो करते हो, पखवाड़ा ही सही
परिपाटी चलने दो,
इसमें कछु नहीं है हर्जा
जय जोहार ........