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बुधवार, 26 जनवरी 2011

अभियांत्रिकी निकाय की अपेक्षा चिकित्सा निकाय की ओर रुझान कम क्यों?

अभियांत्रिकी निकाय की अपेक्षा चिकित्सा निकाय की ओर शासन का ध्यान कम क्यों?
                             शिशु के जन्म लेते ही (वैसे तो उसके धरती पर अवतरित होने के काफी पहले से ही ) परिवार में चर्चा होने लगती है उसके माँ बाप दोनों के बीच कि बच्चे को उसके बड़े होने पर  क्या बनाना है; डॉक्टर, इंजिनियर, आर्टिस्ट, वकील, व्याख्याता, वैज्ञानिक आदि आदि. उसके लिए लक्ष्य निर्धारित कर उसे महज  तीन साल    की  अवस्था से ही भेज दिया जाता है नर्सरी. पहले जैसे गुरुकुल व्यवस्था, या हिंदी माध्यम वाले प्राथमिक पाठशालाओं का आजकल क्या रोल है? बस आज की प्राथमिक पाठशालाएं तो आर्थिक रूप से एकदम कमजोर वर्ग के लिए ही हैं.  अतएव सबसे पहले विश्लेषण किया जाता है;  कौन सा प्राइवेट स्कूल कैसा रहेगा, उसकी फीस क्या होगी,  उसका स्टैण्डर्ड कैसा है आदि आदि. ("पर उपदेश कुशल बहुतेरे".  यहाँ लिखना सहज है. हमने भी अपने बच्चों को  ऐसे ही निजी स्कूल में दाखिला दिलवाया था).  
                 चलिए हुजूर! येन केन प्रकारेण बच्चे ने पास कर ली किसी विशेष संकाय से बारहवीं की परीक्षा. इस कक्षा को ही पास करना और उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर होना जीवन का सबसे बड़ा मोड़ होता है. यदि विद्यार्थी "ए" अथवा "ए+" ग्रेड का है तो उसके लिए समस्या कम होती है विशेषकर गणित विषय लेकर विज्ञान की परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों के लिए. वह भी भरसक प्रयास करता है  कि आई आई टी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ले और किसी माने हुए संस्थान में दाखिला ले ले.  सफल नहीं भी हो पाता तो कम से कम किसी भी इंजीनियरिंग कॉलेज में उसका एड्मिसन तो हो ही जाता है. आजकल कुकुरमुत्ते के पौधे की तरह जगह जगह इंजीनियरिंग कॉलेज जो खुल गए हैं. एक प्रकार से जॉब सुरक्षित ही समझा जाता है. अभी अभी किसी समाचार पत्र में सुझाव छपा था कि यदि कोई विज्ञानं संकाय(गणित) का  स्नातक(बी एस सी(मेथ्स) का छात्र  स्नातक  की परीक्षा उत्तीर्ण  कर लेता है और अभियंता बनना चाहे  तो उसे सीधे अभियांत्रिकी संकाय के  द्वितीय वर्ष में  दाखिला दे दिया जाय.  सुझाव कहीं से गलत नही लगता क्योंकि पूर्व इंजीनियरिंग/आई आई  टी परीक्षाओं में सफल नहीं होने वाले छात्रों पर क्या बीतती है यह वे ही जानते हैं. किन्तु आज के परिदृश्य को देखते हुए; जहाँ हमारे देश के अधिकाँश हिस्से में पर्याप्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है; दूसरी ओर चिकित्सा सेवा भी "सेवा भावना"  को ताक में रख "मेवा भावना" को प्राथमिकता देने वाला हो गया हो(हो भी न कैसे?दाखिले से लेकर  अध्ययन में हुए खर्चे की भरपाई जो करनी है ) ; दन्त चिकित्सा संकाय से  चिकित्सा संकाय के स्नातक महाविद्यालय में दाखिले हेतु अभियांत्रिकी निकाय में दाखिले के लिए विनिर्दिष्ट उपरोक्त सुझाव को लागू कर दिया जावे तो कैसा रहेगा.  मेरी जानकारी के अनुसार चिकित्सा स्नातक व दन्त चिकित्सा स्नातक के चतुर्थ वर्ष तक  पाठ्यक्रम एक जैसे होते हैं, दन्त चिकित्सा में विशेष  दक्षता के लिए पढ़े जाने वाले पाठ्यक्रम के  साथ . मेरे अनुसार इससे गाँव गाँव तक चिकित्सा सुविधा भी मुहैया हो सकेगी. और लोगों को छोटी  बीमारी के लिए भी शहर में इलाज में होने वाले खर्च वहन करने के लिए ता ता थैया नहीं करना पड़ेगा. इस सुझाव पर आपका आशीर्वाद बतौर प्रतिक्रिया/ टिपण्णी  अवश्य चाहूँगा.
जय जोहार.......... 

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

तिरंगा - प्रेम

तिरंगा - प्रेम 
(१)
हे राष्ट्र ध्वज "तिरंगा" !
हर साल  अंग्रेजी महीने की  तारीख 
  छब्बीस जनवरी व पंद्रह अगस्त को   
महज औपाचारिकता ही सही 
करती जनता तेरा ध्यान 
देती है तुझको सम्मान 
इतिहास का भले हो न हो ज्ञान 
भाई कोई बात नहीं, सब चलता है 
क्योंकि देश में चले प्रजा का  तंत्र
क्या फर्क पड़ता है, स्वतंत्रता दिवस हो छब्बीस जनवरी
या पंद्रह अगस्त हो दिवस-गणतंत्र


(२)
हे राष्ट्र ध्वज तिरंगा!
जाने हैं कितने लोगों ने तेरी अहमियत 
तेरे प्रति अचानक उमड़ता, छलछलाता प्यार 
क्या नहीं लाता शक़ के दायरे में किसी की नीयत 
लानत है; बजती है ढपली 
"कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक भारत एक है 
मगर फहर नहीं सकता "तिरंगा" कश्मीर में 
यह कहने वालों के  इरादे क्या नेक हैं?
(३)
हे राष्ट्र ध्वज "तिरंगा"
येन केन प्रकारेण हम सभी के दिलों में
बहा दे प्रेम की गंगा, 
फहरने फहराने में तेरे 
 कभी कोई डाल न पाए  अड़ंगा  
...........जय हिंद 
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं सहित 
जय जोहार ........


शनिवार, 22 जनवरी 2011

अभी जनवरी का महीना ख़तम नहीं हुआ है

आजकल हमारा मन जड़ हो चुका है. वर्ष 2010  स्थानान्तरण का रहा. सर्वप्रथम अपना डेरा बदले. डेरा बदलकर नए डेरे को जमाने में जो किल्लत होती है उसका अनुभव सभी को होगा, उन किल्लतों को झेले.  ठीक है डेरा तो जम गया. डेरा जमे चंद दिन ही हुए थे कि कर्तव्य-स्थल भी बदल गया.  याने नागपुर स्थानान्तरण. त्योहारों का सिलसिला प्रारम्भ हुआ. दीपावली के समय रिश्तेदारों व मित्रों के बीच  शुभकामनाओं का आदान प्रदान भी चला. किन्तु पर्व के दौरान ही  हमारे प्रिय कुछ  ब्लॉगर मित्रों के घर दिए नहीं जल पाए. कारण;  किन्ही के माता/पिता का देहावसान होना,  कहीं घटनाओं दुर्घटनाओं का अनवरत  जारी रहना आदि आदि. इन सब बातों से मन खिन्न हो गया था. और ज्यादा खिन्न इसलिए भी हुआ कि अपने आपको निष्ठुर पाया यहाँ तक कि संवेदना भी प्रकट न कर सका. नागपुर यात्रा जारी है. घर में  साप्ताहिक आना होता है. आज बैठे बैठे अपने मौन को भाई ललित शर्मा जी से घंटों फोनवा में बतियाकर तोड़ा. नव वर्ष के प्राम्भ में उनके द्वारा लिखी गई  रचना "नव वर्ष का धमाल--देवी आम्रपाली के सप्तप्रासाद में "पढ़कर ( कुछ कुछ शब्द भले ही सर से चले गए वैसे भाई ललित से पूछ कर अर्थ समझ लिया) खूब हंसा और सोचा काफी दिनों से संगणक (कंप्यूटर) के  कुंजी पटल पर अंगुलियाँ नृत्य नहीं की हैं उन्हें जरा नचाया जाय. अतएव लिखने बैठ गया. 
अभी जनवरी का महीना ख़तम नहीं हुआ है
यह साल, यह साल ही क्यों, 
हर साल रहे खुशहाल आपका
मांगता  आपका यह नाचीज मित्र 
अल्लाह /भगवान् /गुरुग्रंथ साहिब 
और GOD  से यही दुआ है  
.........नव वर्ष की मंगलकामनाओं सहित 
जय  जोहार ......