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सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

गईस दशहरा आइस देवारी(पिछले साल अपन सामाजिक पत्रिका माँ दे रेहेवं)

गईस दशहरा आईस देवारी बरसे लक्ष्मी सबके दुआरी सुख समृद्धि अवैभव के खुशबु से महमहावै तुंहर घर के फुलवारी एही कामना करत हन सब झन तुमन ल जम्मो संगी संगवारी देवारी हा बीत गे आगे देवउठनी अकादशी चंदा अउ सूरज माँ होही शुरू छीटा कशी ये अकादशी कहाथे घलो अकादशी प्रबोधनी कैही चंदा सूरज ला, मोर भरम माँ देखबे तै हा दिन माँ फूले लगही कुमुदनी लिखाये हवै धरम शास्त्र माँ देवता मन आज जागथे अपन टुरी टुरा के बिहाव खातिर दाई ददा मन आज ले कैसे एती ओती भागथे करन मालिक से बिनती हमन ओखर किरपा सब बर बने रहै सरग बनाये बर घर जग सब ला ईमान धरम ला लेके संग माँ संगी सब झन काम बूता माँ डटे रहै देवउठनी अकादशी के आप सब झन ला अब्बड अकन बधाई

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

अड़हा बईद प्राण घातका

मैं कभू कभू सोचथौं के ये ब्लॉग माँ बाकी मन अपन संदेश ला कतेक सुग्घर संवार के मडाथें ओइसने मोर संग काबर नई बने। ओ दिन शरद भाई के ब्लॉग माँ जाके हिन्दी माँ कुछ अपन मन के बात ला लिखिहौं कहिके सोचेवं त उटपुटांग छप गे। अरे मोर ब्लोगिस्ट संगवारी मन ला बिनती करत हौं एखर कैसे ढंग ले संपादन करथें तेला इही भाखा माँ समझा देतेव कहिके। नई त अड़हा डाक्टर बरोबर कारोबार हो जाही। काखरो कविता के, लेख के बारे माँ अपन बिचार ला कैसे टिपण्णी के खंड माँ हिन्दी माँ लिखे जाथे ओही ला चिटीकुन समझा देतेव।

रविवार, 18 अक्तूबर 2009

फिर ढांक के तीन पांत

इस दौड़ भाग की जिन्दगी में आदमी की मनः स्थिति भी शांत नही रहती। फुर्सत के क्षणों में भी। फिर भी यहाँ यह कहना अनुचित नही होगा की ऐसी अवस्था में यदि व्यक्ति अच्छी किताबों का सहारा लेले तो मन कितना भी व्याकुल क्यों न हो कुछ क्षण के लिए उस किताब में लिखी बातों के साथ हो लेता है और यदि कोई ऐसा प्रसंग पढने को मिल जाए जो उस पुस्तक को पढने से पहले मन में हो रहे उथल पुथल को दूर करने में सहायक हो तो बात ही क्या। कुछ ऐसा वाकया मेरे साथ भी हुआ। युग निर्माण योजना से प्रकाशित पुस्तक "सफल जीवन की दिशा धारा" पढ़ रहा था। इस किताब में अलग अलग अध्याय के अर्न्तगत जीवन को सफल बनाने के उपाय के बारे में लिखा गया है। शीर्षक "खर्च करने से पहले सोचिये" वाले अध्याय में लिखा गया वाक्य मेरे मन में घर कर गया। उसमे लिखा था
"दूध दही बहानेवाले, कुत्तों को मखमल पर सुलाने वाले यह भूल जाते हैं कि उनके देश के आधे से अधिक लोग आधा पेट भोजन कर चिथडों से अपने अंगों को ढककर अपना समय काट रहे हैं"।
उपरोक्त वाक्य पढ़ते ही मेरे मन में विचार कौंधा कि हमारे देश में ऐसी स्थिति क्यों है? मेरे अनुसार इसका जिम्मेदार देश का प्रत्येक व्यक्ति है। स्वतः मै भी। यद्यपि मै यह कहूँगा कि इसके लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी देश के रइस लोग हैं जो या तो उद्योग कारखानों से जुड़े है अथवा व्यवसायी हैं जो इस बात का दंभ भरते हैं कि वे लोगों को रोजगार उपलब्ध करातेहैं। सही मायने में देखा जाय तो क्या वे अपने मजदूरों को उनकी मेहनत का सही पारिश्रमिक दे पाते हैं ? नही। उनका पहला उद्द्येश्य है स्वार्थ पूर्ति। ऐसे लोग श्रम का शोषण करते हैं। आज हम घरों में घुसकर चोरी करने वालों डाका डालने वाले को ही चोर व डाकू कहते हैं। पर आज के परिदृश्य में इन पूंजीपतियों को क्या कहेंगे जो देश में डाका डालते हैं। मसलन करों की चोरी बिजली चोरी आदि आदि। केवल चोरी तक नही "चोरी और सीना जोरी"। देश के सबसे बड़े गद्दार होते हुए भी सभ्य समाज के सम्मानीय व्यक्तियों में गिने जाते हैं। इनके कृत्यों को बढ़ावा देने शासन द्वारा नियुक्त देशभक्त सेवकों का भी महात्वपूर्ण योगदान रहता है। वजह साफ़ है ऐयाशी की जिन्दगी जीने की प्रबल इच्छा । इसी को जीवन का उद्देश्य मान लेना। विलास प्रिय लोग।
भावना में बहकर लेखनी उक्त बातें लिखने को उद्यत हो गई। बाद में फिर वही ढाक के तीन पात।

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

आओ करें स्वागत नव वर्ष का

आया है नया साल आओ करें स्वागत हम सब मांग लें सब कुछ प्रभुजी से जिनकी लीला है अजब गजब करें प्रार्थना कर-बद्ध प्रभु से दे हमें सद्बुद्धि वो परमार्थ की भावना जगा मिटा दे स्वार्थ की कुबुद्धि वो उत्साह हो ऊर्जा हो हममें और दिल में हो उमंग जोश भी हो जश्न भी हो जिद्द हो जीतने की जंग समझ न ले कोई हमें मजबूर बेबस औ लाचार तरेरे न आँखे इस ओर फैलाके आतंक अत्याचार जान के अंजाम जंग का क्यों बढ़ रहे तेरे कदम भूल न तू इतिहास, कम नही ताक़त हमारी कर देंगे तेरे नाक में दम ले के जज्बा हम ये दिल में नए साल का जश्न मनाते हैं बाजु-ऐ-कातिल में कितना दम है ये दिखलाते हैं जय हिंद जीतने

काल अउ आज माँ फरक

गाँव के रहैया आवं खावौं बोरे बासी.
करके सुरता बीते दिन के मोला घेर लेथे उदासी.   
पीढी दर पीढी संगे संग रहन भरे रहै घर मनखे मन ले    
घर के जतन मिल जुल के करन करै मदद सब तन मन धन ले  
कतको बड़े अघात हा संगी चिटीकुन नई जनात रहिस  
खुशी के दिन माँ घर हा संगवारी सरग कैसे बन जात रहिस  
कतेक सुग्घर मिल जुल के रहन दिल माँ रहै सबके प्यार  
बड़े मन के लिहाज करै सब पावै छोटे मन दुलार  
बखर बखर बीतत गईस उप्जिस मन माँ कुविचार  
के अलग थलग रहिके हमन पा जाबो सुख अपार  
होके अलग परिवार ले संगी चलत हे खीचातानी  
माँ बाप ला छोड़ कोनो के रिश्ता ला का जानी  
भुलाके सब रिश्ता नाता ला होगेन कतेक दुरिहा  
एही फरक हे काल अउ आज माँ एला तुमन सुरिहा

दीपावली मंगलकारी योग

नजदीक आती है दीपावली
 मच जाती है सबके जेबों में खलबली
 एक वर्ग समाज का मनाता है धन-तेरस
 दूसरे के लिए होता है धन-तरस देखता हूँ बाजार का परिदृश्य
 शुरू होता है दुकानों की उस कतार से 
जहाँ बैठे होते हैं बताने वाले हम सबका भविष्य
 घंटा मिनट सेकण्ड गिन 
कहते हैं फलां - फलां दिन 
कर लो खरीदारी योग है मंगलकारी
 नक्षत्र है पुष्य 
मंगलकारी योग किनके लिए है बना 
 ज्योतिषियों ने त्योहारों को ही क्यों चुना 
व्यवसाइयों ने सोचा आ रहा त्यौहार बाजार ठंडा है
कौन लेगा इससे उबार इसका क्या फंडा है 
सूझी इन्हे एक तरकीब, सोचा आयेंगे कब काम 
 ये ज्योतिष मनीषी भविष्य वक्ता
बताके जो दूसरों का भविष्य 
करते अपनी अर्थ व्यवस्था पुख्ता
पहुचते  इनके दरबार ये निराश व्यवसायी 
लगाते इनसे गुहार, निकलवाते मुहूरत फलदायी
कर अर्पित दक्षिणा इन्हे करते इनकी जेबें भारी
बनता पहला योग ज्योतिषियों का मंगलकारी 
पर चले न इतने से ही काम 
जब तक जान न ले मुहूर्त जनता आम 
अतएव जाता यह संदेश मीडिया धाम है
\मंगलकारी योग दूसरा बनता मीडिया के नाम है
डेली न्यूज़ पेपर में छपते ही
 बाजार में बढती है भीड़ भारी
जनता जनार्दन लुटावे  पैसा 
कर धन  संचय व्यापारी,
स्वयोग बनावे मंगलकारी 
धन- तरस वर्ग के लोगों , सोच में न पड़
जी न चुरा श्रम से समय नही है यह धन-तरस का
गर कर ले कुछ काम उठा ले फायदा
 यह समय है धन बरस का 
जलेंगे दिए घर  घर में, बंद होगी सिसकारी 
होगा यह पावन पर्व सबके लिए मंगलकारी 

विराजो माँ लक्ष्मी

दीपमालाओं से जगमग सारा घर द्वार है
मना रहा है देश आज दिवाली  त्यौहार है

 कर रहा है रौशन ये जलता चिराग है
 धधक रहा गरीब-उदर जहां क्षुधा की आग है 

अमीर व गरीब के बीच कैसी बन गयी है खाई 
जर जोरू जमीन हेत लड़ रहा है भाई भाई

धर्म - पंथ क्या बला है   यह  समझ न आई  
लड़ रहा इंसान  व्यर्थ मजहबी लड़ाई 

मिटा दें  इस खाई को मिला  दें भाई भाई को 
मेहनत से डरें नही तरसें  न पाई पाई को 

नैतिकता के संग संग जानें  मानवता की परिभाषा    
माँ लक्ष्मी की दया दृष्टि हो,   करे पूरी सबकी अभिलाषा

द्वार खुला तेरे स्वागत को,  पधारो माँ लक्ष्मी
छोड़ हमें जाना नहीं,  विराजो माँ लक्ष्मी 

 दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं