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रविवार, 9 जुलाई 2017

आँचल

                    आँचल

माँ का आँचल ढाँकता, बेटे का हर दोष।
कितनी भी हो गलतियाँ, उपजे कभी न रोष।।
उपजे कभी न रोष, प्रेम की सरिता बहती।
ममता अपरंपार, कष्ट वह सब कुछ सहती।।
वृद्ध आश्रम आज, पुकारत कहता आ चल।
क्यों जाते हम भूल, मातृ ममता का आँचल।।

जय जोहार....

सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)

ज़रूरत और ज़ररूरती

                    ज़रूरती

जाहिर करें ज़रूरती, चीजें क्या हैं खास।
अन्न वस्त्र घर और क्या, रखते अपने पास।।
रखते अपने पास, आज क्या गैर ज़रूरी।
आता हमको त्रास, देख सबकी मज़बूरी।।
रह रत भोग विलास, सकेलन में सब माहिर।
राज करत अन्याय, देखिये जी जग जाहिर।। 

                       ज़रूरत

रहता इस संसार में,  कौन ज़रूरतमंद।
निम्न उच्च मध्यम यहाँ, शब्दजाल में बंद।।
शब्दजाल में बंद, वर्ग मध्यम फँस जाता।
उच्चवर्ग को ऐश, निम्न को माँँगन भाता।।
किंतु ज़रूरत तोरि, वर्ग बिन देखे कहता।
आज ज़रूरतमंद, कहूँ हर कोई रहता।।
(स्वरचित)
सादर.......
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)







मंगलवार, 27 जून 2017

दहलीज

              दहलीज़ (कुंडलियाँ)
आकर सब संसार में, करत पार दहलीज।
कहीं शत्रु से सामना, बनता मित्र अज़ीज।।
बनता मित्र अज़ीज, निभाता सच्चा नाता।
संकट में वह काम, आपके हरदम आता।।
लेंगे हम विश्राम, लक्ष्य को आखिर पाकर।
करत पार दहलीज, जगत में प्राणी आकर।।
स्वरचित
सादर
सूर्यकांत गुप्ता...
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)





गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

गमछा के गुन

गमछा के गुन

गुन गमछा के जान लौ, ढाँकै पोंछै देह।
बात इहू सब मान लौ, रखथें नेता नेह।।
रखथें नेता नेह, चिन्हारी गमछा डारे।
माँगे बर जी वोट, फिरैं उन हाथ पसारे।।
होंय न नेता आज, देख लौ बिन चमचा के ।

ढाँकै पोछै देह जान लौ गुन गमछा के।।

जय जोहार....
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग

चाय-कॉफी



चाय-कॉफी 

कॉफी सँग सँग चाय के , चलन चलै पुरजोर।
चिटिकुन फुरती लाय के, इही आसरा मोर।।
इही आसरा मोर, रहय कैफीन निकोटिन।
सुस्ती भागै थोर, मँहूँ अजमाएँव थोकिन।।
गति अति के नादान, जान लौ मिलै न माफी।
कहना लौ सब मान, सम्हल के पीयौ कॉफी।।

जय जोहार...
सिधिया नगर दुर्ग...
(चित्र गूगल से साभार)

दारू




दारू 
(1)
पीहीं दारू चाय कस, जब पाहीं तब जान।
पी लेहीं कँहु अकतहा, गिरहीं फेर उतान।।
गिरहीं फेर उतान, जघा के कहाँ ठिकाना।
बुढ़वा होय जवान, जान लौ मंद दिवाना।। 
मारत हे सरकार, आदमी कइसे जीहीं।
आदत से लाचार, चाय कस दारू पीहीं।।
(2)
बेंचँय बेचावय बेचात हवै मरे जियो, 
जघा जघा दारू देख लव खुले आम जी ।
बंद होय कारोबार मंद के कहत माई, 
करत विरोध दिन रात सुबह शाम जी।।
बेचे बर सरकार खुदे हवै तइयार, 
एमा अब कइसे कब कसही लगाम जी।
पीहीं अउ पियाहीं घलो होली के तिहार मा गा,
परय चुकाय बर चाहे कतको दाम जी।।


जय जोहार भाई..
सिंधिया नगर दुर्ग


मतदाता का मोल

मतदाता का मोल
मतदाता का मोल तो, दारू कंबल नोट।
इतने में ही बिक रहे, बेशकीमती वोट।
बेशकीमती वोट,आज की बात नही है।
संसद ऐसी चोट, आदि से खात रही है।।
रहें न आज सपूत, कोइ भारत माता का।
दारू कंबल नोट मोल तो मतदाता का।।

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जय जोहार ...
सिंधिया नगर दुर्ग