आईए मन की गति से उमड़त-घुमड़ते विचारों के दांव-पेंचों की इस नई दुनिया मे आपका स्वागत है-कृपया टिप्पणी करना ना भुलें-आपकी टिप्पणी से हमारा उत्साह बढता है

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

                                             समस्त ब्लॉग मित्रों को आनंद उमंग प्यार के रंगों में रंगी होली
                                                                 की बहुत बहुत शुभकामनाएं.

घर की सीधी सादी लुगाई. होती सबकी सगी भौजाई

                                                                   रेल बजट 2010
                                                 रेल मंत्राणी "ममता दीदी" सदन में
                                                 कर रहीं थीं रेल बजट वाचन
                                                 मेजें थपथपा रहा था सत्ता पक्ष
                                                 उदर-व्याधि से पीड़ित विपक्ष की
                                                 होने लगी थी कमजोर शक्ति-पाचन
                                                 उगलने लगे थे, यह रेल बजट "आम"
                                                 न होकर बंगाल चुनाव-ए-ख़ास है
                                                 होली से पहले दफ़न हो गई
                                                 बाकी जनता की सारी आस है
                                                 कहते हैं माता कुमाता नहीं होती
                                                 हो सकता है पूत भले कपूत
                                                 पर यहाँ तो उल्टा ही दीखता है,
                                                 छला जाता है छत्तीसगढ़
                                                 होके बड़ा कमाऊ पूत (राजस्व उगाही में)
                                                 वजह है इसकी,
                                                 छत्तीसगढ़ समझा न गया "पूत" कभी
                                                 समझे घर की सीधी सादी लुगाई है
                                                 सीधी सादी लुगाई ही
                                                 होती सबकी सगी भौजाई है.

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

रेल बजट 2010

यात्रा का सुलभ साधन है यह रेल
जनरल बोगी में मचा रहता है कैसा रेलम पेल
वाह रे एक्सप्रेस गाड़ियाँ 10  शयन यान के पीछे
होती है एक जनरल बोगी
इस बोगी की भीड़ का क्या कहना
इसके हैं हम  खुद भुक्त भोगी (देखिएगा "रेलगाड़ी के जनरल डब्बा)
पेश कर रही हैं रेल बजट संसद में रेल मंत्री दीदी "ममता"
दिख जायगा आज, हमारे राज्य के लिए कितनी है इनमे ममता


 

बंगलोर की ह्रदय विदारक घटना

तकनोलोजी व प्रद्योगिकी, ख़ासकर आई टी के क्षेत्र में अग्रसर मशहूर शहर बंगलोर की घटना के बारे में जानकर अत्यंत दुःख होता है कि हम सुरक्षा के उपाय का स्तर क्यों नहीं सुधार पाते अथवा यूँ कहें उपाय के बारे में सोच ही नहीं पाते. अकाल काल के गाल में समां गए लोगों के परिवार वालों के ऊपर क्या बीत रही होगी.  यहाँ बैठ संवेदना ही व्यक्त की जा सकती है. मीडिया सक्रिय है तो इन ख़बरों का पता शीघ्र चल जाता है. इन सब चीजों के लिए मीडिया साधुवाद का पात्र है. 

केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस -- 24 फरवरी

 कोई भी राष्ट्र बिना किसी मजबूत अर्थ व्यवस्था के प्रगति नहीं कर सकता. अर्थ व्यवस्था मजबूत तभी हो सकती है जब हम अपनी जिम्मेवारी राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए पूरी निष्ठा के साथ निभा पायें.  चाहे वह राज नेता हो, शासकीय अधिकारी/कर्मचारी  हो  चाहे वह आम आदमी क्यों न हो.  हमारे देश का वित्तीय प्रबंध पूर्ण रूपेण जनता से वसूले जाने वाले विभिन्न करों (टेक्स) पर निर्भर है. चाहे वह आय कर हो, विक्रय कर हो, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क हो, सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) हो आदि आदि. केंद्रीय उत्पाद शुल्क के बारे में आम जनता उतनी भिग्य नहीं है क्योंकि यह अप्रत्यक्ष कर है. खेती करके उगाये गये पदार्थों को छोड़ कारखानों में निर्माण किये जा रहे प्रायः सभी वस्तुओं पर उत्पादन शुल्क लगता है जिसकी शुरुवात २४ फरवरी १९४४ से हुई. अतएव २४ फरवरी को केन्द्रीय उत्पाद शुल्क "दिवस" के रूप में मनाया जाता है.   लगभग देश की समूची आमदनी का १ तिहाई हिस्सा उत्पादन शुल्क से प्राप्त होता है.  सन १९९४ से विभिन्न प्रकार की सेवाओं को भी कर योग्य सेवाओं की श्रेणी में रखा गया है जैसा कि सेवा प्रदाता द्वारा उन सेवाओं  के एवज में  बड़ी राशि चार्ज की जाती है. यह सेवा कर संग्रहण का दायित्व भी केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के पास ही है.  यह विभाग केन्द्रीय वित्त मंत्रालय के अधीन ही कार्य करता है. भ्रष्टाचार तो इस देश में केंसर से भी  खतरनाक  बिमारी का रूप ले चुका है.  आरोप तो नेताओं पर शासकीय अधिकारियों/कर्मचारियों पर लगाने में हम देर नहीं करते. पर क्या आज देश का प्रत्येक व्यक्ति इस बात की ओर गौर किया है कि आखिर क्यों यह नासूर बन चुका है? जब तक जनता ही इसे बढ़ावा नहीं देगी, इसका स्वरुप इतना विकराल नहीं हो सकता. मसलन एक व्यक्ति जाता है बिजली बिल/टेलीफोन बिल  का भुगतान करने. देखता है अरे यहाँ तो लम्बी कतार है. वह अपनी तार जोड़ता है काउंटर पर बैठे कर्मचारी से, उसे प्रलोभन देता है, प्रलोभन ही नहीं कुछ अतिरिक्त राशि भी देता है, उसका काम जल्दी निबट जाता है.  तात्पर्य अपना स्वार्थ सध गया बाकी जाय भाड़ में.  हाँ यहाँ उस काउंटर पर बैठे कर्मचारी को प्रतिरोध करना था. पर लक्ष्मी की माया ही कुछ ऐसी है. वैसे वह कर्मचारी अपने से माँगा तो नहीं था. यदि आम जनता ठान ले कि नहीं पूरे तंत्र को सुधारने की जिम्मेवारी अपनी स्वतः की है, और कैसे, याने अनुशासन के साथ तो मजाल है कोई इस मार्ग की ओर अग्रसर हो सकता है. वह दिन अवश्य आएगा यह बीमारी पूर्ण रूपेण ख़तम भले न हो, कुछ हद तक कम तो जरूर हो सकेगी. सोचता हूँ केवल शासन पर निर्भर न रहकर यदि अपने मोहल्ले में कोई रचनात्मक कार्य यथा रोड निर्माण, सफाई की व्यवस्था सक्षम व्यक्तियों की  संस्था की मदद से  संपन्न करा लिए जाएँ और इमानदारी से उस पर हुए व्यय का ब्यौरा स्थानीय निकाय में प्रस्तुत करते हुए वहां से उक्त राशि संस्था के लिए स्वीकृत करा ली जाय तो "निगम" जिला पंचायत, ग्राम पंचायत के भरोसे नहीं बैठना पड़ेगा. संपन्न कराये गए कार्य की गुणवत्ता भी बेहतर रहेगी.  यदि ऐसा कानून में नही है तो तदाशय का बिल पारित करा लिया जाय. केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क व सेवा कर, इन तीनो के प्रावधान विस्तृत हैं. अतएव एकदम संक्षिप्त में कहिये केवल विभाग के नाम से अवगत कराया गया है.
जय जोहार



सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

उसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद क्यों?


 मन में पीड़ा कब होती है? मैंने देखा है व अनुभव किया है कि प्रायः  व्यक्ति अपने आप को दुखी तब पता है जब वह अपनी तुलना दूसरों से करता है यदि वह दूसरों को खुश रख अपने आप में  ज्यादा ख़ुशी महशूस करे तो हो सकता है उसे दर्द का अनुभव ही न हो. पर क्या किया जाय हम सब इसी में उलझे रहते हैं और कहते हैं "उसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद क्यों?" 

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

"राधे बिन होली न होय बिरज में"


             होलिका दहन पर्व के कई मत, मतांतर हैं। इसे मुख्य रूप से हिरण्य कश्यप की बहन होलिका के दहन का दिन माना जाता है, वहीं शास्त्रों में कई तरह के मत दिए गए हैं। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक के बाद होलिका दहन की परंपरा है।  पारंपरिक दृष्टिकोण  कहता  है कि खेत से उपजी नई फसल या कहें नव अन्न का  यज्ञ/ हवन किया जाता है. यह परंपरा गांवों में अभी भी प्रचलित है।
            सामान्यत: रंगों के  इस त्यौहार के संबंध में भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद  को गोद में लेकर  हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिन्हें वरदान प्राप्त था कि अग्नि उन्हें जला नहीं सकती,   के अग्निकुंड में बैठने जाने  की कथा प्रचलित है। वस्तुतः हिरण्यकश्यप अमरत्व का वरदान पा लेने के आवेश में (यद्यपि यह उसका  भ्रम ही था)  अपने को ईश्वर समझ बैठता है व चाहता है कि सभी उसकी ही भक्ति करे. वह आततायी हो जाता है. अपने पुत्र प्रहलाद को परम पिता परमेश्वर की भक्ति करने से रोकता है किन्तु प्रहलाद अडिग रहता है. उसे ज्ञात है कि  ईश्वर एक है. प्रहलाद की  भक्ति में इतनी शक्ति थी कि होलिका का दहन हो जाता है वहीं  भक्त प्रहलाद बच जाते  हैं.    इसके साथ ही होली से  सम्बंधित कई मान्यताएं प्रचलित हैं-
                शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान मानव मन-मस्तिष्क में काम भाव रहता है। भगवान शंकर द्वारा क्रोधाग्नि से काम दहन किया गया था, तभी से होलिका दहन की शुरुआत होना भी माना गया है।
                   होली इस पर्व के पीछे वैज्ञानिक कारण भी मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि दो ऋतुओं का यह समय संधि काल होता है अर्थात  सर्दी के  जाने और गर्मी के  आगमन की  के दिन हैं। ऐसे में सर्द गर्म (शीत ज्वर) से अधिकाधिक लोगों के स्वास्थ्य खराब होते हैं। इसी के निवारणार्थ वातावरण में गर्मी लाने के लिए होलिका दहन किए जाते हैं।
                   शास्त्रों के अनुसार इस दिन आम्र मंजरी, चंदन का लेप लगाने व उसका पान करने, गोविंद पुरुषोत्तम के हिंडोलने में दर्शन करने से वैकुंठ में स्थान मिलना माना गया है। भविष्य पुराण में बताया गया कि नारद ने युधिष्ठिर से कहा कि इस दिन अभय दान देने व होलिका दहन करने से अनिष्ट  दूर होते हैं।

                           सारांश में यह कहा जा सकता है  कि  अपने मन के विकारों को जला प्रेम के रंगों में एक दूसरे को रंगने का पर्व है.  आयें हम सब मिलकर आत्मीयता के साथ इस पर्व का आनंद लें....... मेरे सभी मित्रों को "होली" की सप्रेम बहुत बहुत बधाई..........
जय जोहार.......

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

ब्लागानि द्वादश नामानि

हमारे सनातन धर्म के अनुसार तीन लोक तैतीस कोटि देवताओं/देवियों का उल्लेख मिलता है. प्रत्येक देवी देवताओं के कई नाम होते हैं. और कहते हैं कि उनके केवल  नामो की स्तुति फलदायी होती है. उदाहरणार्थ द्वादश नामानि (बारह नाम), शत नाम(सौ नाम)  सहस्त्र नाम (हजार नाम)  आदि आदि. हमारी दुनिया है ब्लॉग की दुनिया. इस दुनिया में ब्लॉग देवताओं की भी कमी नहीं है. कितने हैं यह तो बताया नहीं जा सकता. हरेक ब्लॉग का जो खाका होता है उस पर उसके द्वारा अनुसरित ब्लॉग का लिंक तो लगा रहता है फिर भी सोच रहा हूँ अभी द्वादश नामानि की तर्ज पर यहाँ बारह ब्लॉग का लिंक देते हुए स्तुति प्रारंभ करूं. चलिए प्रारंभ "आरंभ" से करते हैं :-
  1. शिल्पकार
  2. राजतंत्र
  3. धान के देश में 
  4. चर्चा मंच
  5. चिटठाकार चर्चा
  6. समय चक्र
  7. पुरातत्ववेत्ता 
  8. चर्चा पान की दुकान  पर 
  9. हँसते रहो 
  10. झा जी कहिन
  11. मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ ब्रिगेड 
  12.  आरंभ    .... अनवरत चलती रहे हिन्दी ब्लॉगिंग की यह कडी .....

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

आतंकी हमला और वेलेंटाइन डे

बीती रात की घटना है, 
बिछ गई हैं पुणे में कईओं की लाशें
हम सारे भारतवासी मना रहे वेलेंटाइन डे 
चिंता नहीं जरा भी शिकन नहीं हमारे चेहरे पर
छोटे बड़े सभी हैं मस्त मस्ती में,
सांप तो निकल चुका, पीट रहे हैं लकीर 
सूझ नहीं रहा है, कहाँ और कैसे 
इन मौत के सौदागरों को तलाशें 
तलाशने से भी क्या इन सौदागरों को 
इस अंजाम का खामियाजा भरवा पाते हैं 
नहीं, ये शख्स तो अंधे क़ानून का सहारा ले
"ठोस सुबूत न होने" के अदालती फरमान के 
जरिये  अपने आप को पाक साफ़  साबित करवा जाते हैं 

भाई,  मैं भी इसे केवल उक्त पंक्तियों के द्वारा अपने मन में उमड़ रहे भावों को प्रकट किया है कोई कविता नहीं है ये. अभी अभी (कुछ दिन पहले )समाचार पत्र में वह भी दैनिक भास्कर के उस पृष्ठ में, जहां बड़े बड़े पत्रकारों के विचार प्रकाशित किये जाते हैं, छपा हुआ था कि अभी हमारे देश में कुछ दिनों से कोई इस तरह के हमले नहीं हुए हैं. मगर पडोसी वक्त की तलाश में है.  और देखिये घटना घटित हो ही गयी.... कैसे होगा बंद आतंकवाद!!!!!!!!!!

 

ब्लॉग जगत में डी लिट की उपाधि पायें

इस ब्लॉग जगत में हमने देखा कि "आनंद" देने वाले बहुत हैं, मसलन टिप्पण्यानन्द,  लिखन्न्यानंद वैगरह वैगरह. पर एक बात और समझ में आयी कि भाई डी लिट की उपाधि भी यहाँ मिल सकती है. यदि आप किसी ब्लॉग  के अनुसरण करता हैं और बात जमी नहीं, अपने आप को वहां से डीलिट कर दीजिये. हो गए न डी लिट.  मैं लम्बी यात्रा  से लौटने के  बाद  देखा कि मेरे ब्लॉग के तो १६ अनुसरण करता थे,  १५ हो गए. लगता है शायद किसी  को डी लिट की उपाधि यहीं से मिल गयी हो.

वेलेनटाइन/वेलअईठाइन डे सभी को मुबारक हो.

आज इस दिन को सभी जोड़े जो बन चुके हैं और जो बनने वाले हैं इस प्रतिज्ञा के साथ पर्व के रूप में मनाएं कि हम प्रेम की डोर को टूटने न देंगे. परिवार की इज्जत पर आंच न आने देंगे. इस दिन को  केवल मौज मस्ती का दिन नहीं मानेंगे.  और एक विशेष आग्रह है कि छः तारीख को मेरे द्वारा लिखा गया लेख न पढ़ा जावे.  
जय जोहार

मूक होई बचाल, पंगु चढ़इ गिरिबर गहन

आज मानव सभी क्षेत्रों में बाजी मार रहा है बजाय मृत्यु पर विजय पाने के. और मृत्यु पर विजय न पाने के कारण ही  प्रत्येक व्यक्ति स्वीकारता है कि अपने ऊपर कोई परम सत्ता है. वाकई श्री राम चरित मानस की एक एक चौपाई, दोहा, सोरठा कितना सारगर्भित है यदि उसकी व्याख्या सही अर्थों में की जाय. यहाँ पर ईश्वर की कृपा बताते हुए कहा गया है कि उनकी कृपा से गूंगा बोल सकता है लंगड़ा पहाड़ पर चढ़ सकता है. यह अतिशयोक्ति नहीं है. केवल शाब्दिक अर्थ पर न जाएँ.  ईश्वर कृपा कब होती है जब मनुष्य कुछ करने को मन में ठान लेता है. याने जहाँ चाह वहाँ राह. हम लोगों ने देखा है दूर-दर्शन में अपंग व्यक्ति भी क्या क्या करतब नहीं दिखलाते. चलिए करतब दिखने की बात तो हरेक पर लागू नहीं कर सकते पर यह तो हो ही सकता है कि आज ऐसे व्यक्ति भीख मांगने के बजाय जीवन यापन के लिए कुछ कर तो जरूर सकते हैं. हम अभी अभी यात्रा पर गए थे दक्षिण भारत की.  रेल यात्रा थी. देखा जितने भी खिलौने, फल, इत्यादि बेचने आ रहे थे वे किसी न किसी प्रकार से विकलांग थे. कोई अँधा था तो कोई लंगड़ा. अपने क्षेत्र में देखते हैं कि ऐसे व्यक्ति केवल भीख मांगते नजर आते हैं. याने इधर हर व्यक्ति चाहता है कि बिना परिश्रम के सब कुछ हासिल हो जाय. अरे विकलांग व्यक्ति की बात तो छोडिये. यहाँ तो मेहनत कर सकने वाला व्यक्ति भी भीख मांगता  नजर आता है .  खैर हमने यात्रा के दौरान यह दृश्य देखा तो सीधे हमारा ध्यान श्री राम चरित मानस के बालकाण्ड के सोरठे की इस पंक्ति "मूक होई बाचाल....." पर चला गया और अपने आप को इस बात को यहाँ लिखने से नहीं रोक पाए.

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

सह-शिक्षा याने को एजुकेशन

इस समय शायद एक महीने के अंतराल के बाद फिर विवाह का सीजन शुरू हो गया है.  निमंत्रण पत्र खूब आये.  देखने में आया कि आज समाज खंडित हो रहा है. हो सकता है अब हम  वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा के साथ आगे बढ़ रहे हों. लेकिन यह सब उस समय अच्छा लगता है जब अभिभावक/मातापिता (दोनों पक्ष के) की सहमति व उनकी ख़ुशी को ध्यान में रखते हो. वर्तमान परिदृश्य के लिए ऐसा लगता है कि सह शिक्षा जिसे अंग्रेजी में को एजुकेशन कहते हैं, उसी का असर है. 
सह शिक्षा याने को एजुकेशन 
किशोर किशोरियों में परवान 
चढ़ता यह फैशन 
शिक्षा पूरी हो न हो 
बना लेते हैं अपनी अपनी जोड़ी
संतान का  भविष्य के सजाने  संवारने
की चिंता में करते रहते अभिभावक/माता पिता 
अपनी माथा फोड़ी 
हो गए हैं आज इतने अडवांस 
अर्थोपार्जन में लग जाते हैं 
परिणय सूत्र में बंधने 
दृढ निश्चय कर जाते हैं
माता पिता की साध रह  जाती है अधूरी
कहते हैं, पापा कर दो सर्टिफाई हमें 
आपके लिए कुछ करने का बचा नहीं कोई चांस

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

वेलएंटाइन/वेल अंइठाइन डे 14 फरवरी

 "वेलेंटाइन डे" इहीच दिन हा आय प्रेम करे के, तहां ले मन भर गे त झट ले खसक ले? खसक ले के मतलब, तैं नहीं त दूसर के भाव रखत   एक आखर उर्दू के तीन पइत  कहिके  जिनगी भर बर कोंटिया दे.  घर के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध आज जादा दिन नई होए हे, ए वेल अइठाइन डे ल  परसिद्ध होए . अरे हमर देश मा "परेम" हा का मिट गे हे? पहिली नई रहिसे का? पहिली तो परेम हा  श्रद्धा अउ समर्पण ये दूनो  भाव के संग चलय. हमर बड़े बड़े संत मन ल त परेम के भाखा आबे नई करत रहिसे लागथे.  मैं संछेप मा एखर इतिहास के जाने के कोसिस करेंव.  लिखे हे के 496 इसवी मा एक झन संत होए रहिसे तेखरे नाव वेलेंटाइन रहिसे ओ हा एक मंदिर के पुजारी रहिसे, कोंजनी कोन जेलर के बेटी संग ओला परेम हो गे रहिसे. 14 फरवरी के ओहा मारत खानी वो जेलर के बेटी के नाव मा एक ठन चिट्ठी लिख के अपन दस्तखत करके मरिस. त कोनो कथे ए तारीख के जनम ले रहिसे.  आनी बानी के कहानी. ठीक हे जी परेम के इजहार करौ, अउ परेम करौ त बने ढंग ले करौ.  हमर देश मा अइसन मौका के उपयोग मौज मस्ती करौ के रूप मा जादा रथे. अइसे लागथे के  फरवरी के  14  तारीख हा  टाकीज मा देश भक्ति के  फिलिम बर एकाध दिन  बिन टिकिट के जाय बर छूट रहिथे नहीं ओइसने अपन प्यार के इजहार करे बर छूट मिले के तारीख आय. एखर आड़ मा  लोगन अपन सीमा ल लांघे ल धर लेथें. खासकर किशोर अवस्था के लईका मन. आघू पाछू ल नई देखें (भूत- भविष्य ल नई सोचें ).  सेंट वेलेंटाइन एकदम हरेक के सुरता म रहैया  संत महात्मा होगे हमर संत महात्मा मन बैरागी रहैं उंखर कोनो महत्व नई ये. अरे परेम मा अउ मन के तियाग के कहानी इहों बताये गे हे. इही ल कथें घर के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध.  ठीक हे भाई एक दूसर के परेम मा बने अंइठावव इही ह आय वेल अंइठाइन डे.
 अभी बैठे बैठे इही बात ह मन मा गुंगुआवत रहिसे. लिखा गे.
जय राम जी की. जय जोहार.

"नकटा के नाक कटे सवा हाँथ बाढ़े"

अभीच्चे एक ठन हाना मोर दिमाग मा आइस "नकटा के नाक कटे सवा हाँथ बाढ़े" त लिख दे थौं. का हे एक तो कभू जादा बैठों नहीं ए मेरन याने ब्लॉग मा. अउ मन उचट घलो गे रहिसे "टिपण्णी" पुराण पढ़ पढ़ के.  आज फेर एक ठन  लेख/कविता  देख परेंव  टिपण्णी ऊपर. मोर मन नई माढिस जी. सोचेंव मोर नाक बहुत छोटे हे इहाँ मैं काहीं च नई लागँव. ओतका न हिंदी के विशेषज्ञ आंव न लिखे उखे बर आवै. टिपण्णी कैसे पाहूं अपन पोस्ट मा? सोचेंव भैया अतेक लोगन मन उखेन पानी पियावत हें ये टिपण्णी पुराण लिख लिख के ओखर कुछ कारण होही त समझ मा आइस के एक दूसर के नाक काटे म जादा फायदा हे, नाक कटही नहीं त बढ़ही कैसे. कैसे ए हाना हा फिट बैठही " "नकटा के नाक कटे सवा हाँथ बाढ़े". मन मा अपन बर सोचेंव  अगर तोला अपन नाक ऊंचा करना हें या बढ़ाना हे त लिख कुछु कांही.  नकटा बनबे . तभेच तोरो नाक हा बाढ़ही.  
जय जोहार भैया मन ल. ये सब उदिम अपन खातिर लिखे हंव आँय!  

मनुष्य की तुलना जीव जंतुओं/पशु पक्षियों से करना कहाँ तक उचित??

राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है, "बड़े भाग मानुष तन पावा". सही है जैसा की शास्त्रों में लिखा है यह मानुष तन चौरासी लाख योनियों से गुजरने के पश्चात प्राप्त होता है.  इस योनि का लाभ वेद पुराण शाश्त्रों के हिसाब से सदाचरण से कर्म करते हुए ईश्वर में आस्था रख मोक्ष प्राप्ति ही है. अर्थात जन्म-मृत्यु की पुनरावृत्ति से छुटकारा. यह मनुष्य योनि ही ऐसी योनि है जिसमे हम और आप बुद्धि के साथ साथ विवेक के भी मालिक हैं,  तर्क-वितर्क करने की क्षमता है हममे. देश काल परिस्थिति के अनुसार आपने आप को समायोजित कर सकते हैं.  किन्तु हम किसी व्यक्ति के आचरण या व्यवहार की तुलना जीव जंतुओं से, पशु पक्षियों से भी कर बैठते हैं. पशु पक्षियों, जीव जंतुओं की प्रकृति अथवा स्वभाव तो ईश्वर द्वारा निर्धारित और निश्चित है पर मनुष्य स्वभाव को ईश्वर ने परिवर्तनशील बनाया है ताकि वह देश काल  परिस्थिति के मुताबिक अपने आप को ढाल  सके और सन्मार्ग पर चलते हुए अपनी जीवन नैया पार कर सके. हम अक्सर देखते हैं कि मनुष्य के अवगुणों की तुलना जीव जंतुओं, पशु पक्षियों से की जाती है. क्या यह मनुष्य का नहीं उन जीव जंतुओं का पशु पक्षियों का अपमान नहीं है जो कम से कम अपनी  प्रकृति,  स्वभाव को लांघते तो नहीं.  उदाहरण के लिए "कुत्ते कि पूंछ टेढ़ी है तो टेढ़ी ही रहेगी" याने मनुष्य अपना स्वभाव नहीं बदल सकता, अरे भाई कुत्ते  कि पूंछ  तो उसकी शारीरिक संरचना के अनुसार है,  टेढ़ी ही रहनी है. मनुष्य क्यों नहीं बदल सकता अपना स्वभाव, अपनी सोच???..........
जय जोहार