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बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस -- 24 फरवरी

 कोई भी राष्ट्र बिना किसी मजबूत अर्थ व्यवस्था के प्रगति नहीं कर सकता. अर्थ व्यवस्था मजबूत तभी हो सकती है जब हम अपनी जिम्मेवारी राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए पूरी निष्ठा के साथ निभा पायें.  चाहे वह राज नेता हो, शासकीय अधिकारी/कर्मचारी  हो  चाहे वह आम आदमी क्यों न हो.  हमारे देश का वित्तीय प्रबंध पूर्ण रूपेण जनता से वसूले जाने वाले विभिन्न करों (टेक्स) पर निर्भर है. चाहे वह आय कर हो, विक्रय कर हो, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क हो, सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) हो आदि आदि. केंद्रीय उत्पाद शुल्क के बारे में आम जनता उतनी भिग्य नहीं है क्योंकि यह अप्रत्यक्ष कर है. खेती करके उगाये गये पदार्थों को छोड़ कारखानों में निर्माण किये जा रहे प्रायः सभी वस्तुओं पर उत्पादन शुल्क लगता है जिसकी शुरुवात २४ फरवरी १९४४ से हुई. अतएव २४ फरवरी को केन्द्रीय उत्पाद शुल्क "दिवस" के रूप में मनाया जाता है.   लगभग देश की समूची आमदनी का १ तिहाई हिस्सा उत्पादन शुल्क से प्राप्त होता है.  सन १९९४ से विभिन्न प्रकार की सेवाओं को भी कर योग्य सेवाओं की श्रेणी में रखा गया है जैसा कि सेवा प्रदाता द्वारा उन सेवाओं  के एवज में  बड़ी राशि चार्ज की जाती है. यह सेवा कर संग्रहण का दायित्व भी केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के पास ही है.  यह विभाग केन्द्रीय वित्त मंत्रालय के अधीन ही कार्य करता है. भ्रष्टाचार तो इस देश में केंसर से भी  खतरनाक  बिमारी का रूप ले चुका है.  आरोप तो नेताओं पर शासकीय अधिकारियों/कर्मचारियों पर लगाने में हम देर नहीं करते. पर क्या आज देश का प्रत्येक व्यक्ति इस बात की ओर गौर किया है कि आखिर क्यों यह नासूर बन चुका है? जब तक जनता ही इसे बढ़ावा नहीं देगी, इसका स्वरुप इतना विकराल नहीं हो सकता. मसलन एक व्यक्ति जाता है बिजली बिल/टेलीफोन बिल  का भुगतान करने. देखता है अरे यहाँ तो लम्बी कतार है. वह अपनी तार जोड़ता है काउंटर पर बैठे कर्मचारी से, उसे प्रलोभन देता है, प्रलोभन ही नहीं कुछ अतिरिक्त राशि भी देता है, उसका काम जल्दी निबट जाता है.  तात्पर्य अपना स्वार्थ सध गया बाकी जाय भाड़ में.  हाँ यहाँ उस काउंटर पर बैठे कर्मचारी को प्रतिरोध करना था. पर लक्ष्मी की माया ही कुछ ऐसी है. वैसे वह कर्मचारी अपने से माँगा तो नहीं था. यदि आम जनता ठान ले कि नहीं पूरे तंत्र को सुधारने की जिम्मेवारी अपनी स्वतः की है, और कैसे, याने अनुशासन के साथ तो मजाल है कोई इस मार्ग की ओर अग्रसर हो सकता है. वह दिन अवश्य आएगा यह बीमारी पूर्ण रूपेण ख़तम भले न हो, कुछ हद तक कम तो जरूर हो सकेगी. सोचता हूँ केवल शासन पर निर्भर न रहकर यदि अपने मोहल्ले में कोई रचनात्मक कार्य यथा रोड निर्माण, सफाई की व्यवस्था सक्षम व्यक्तियों की  संस्था की मदद से  संपन्न करा लिए जाएँ और इमानदारी से उस पर हुए व्यय का ब्यौरा स्थानीय निकाय में प्रस्तुत करते हुए वहां से उक्त राशि संस्था के लिए स्वीकृत करा ली जाय तो "निगम" जिला पंचायत, ग्राम पंचायत के भरोसे नहीं बैठना पड़ेगा. संपन्न कराये गए कार्य की गुणवत्ता भी बेहतर रहेगी.  यदि ऐसा कानून में नही है तो तदाशय का बिल पारित करा लिया जाय. केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क व सेवा कर, इन तीनो के प्रावधान विस्तृत हैं. अतएव एकदम संक्षिप्त में कहिये केवल विभाग के नाम से अवगत कराया गया है.
जय जोहार



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