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बुधवार, 17 नवंबर 2010

दिल्ली का लक्ष्मी नगर, श्मशान बन गया

दिल्ली का लक्ष्मी नगर, श्मशान बन गया 
(1)
ढह गई पांच मंजिलों की  इमारत
सैकडों घायल हैं, दर्जनों ने दे डाली अपनी शहादत  
या अल्लाह, या ख़ुदा ! क्या कमी रह गई थी?
क्या  कर न पाए थे ये  पूरी तेरी  इबादत ?
(२)
रह रहे थे सैकड़ों, आत्मा में  इनका 
क्या तेरा वास न था
लगता है सचमुच तू सोता रहा 
इस अनहोनी का किसी को अहसास न था 
देखते ही देखते यह इलाका कब्रिस्तान बन गया 
दिल्ली का लक्ष्मीनगर श्मशान बन गया 
ईश्वर उन सभी की आत्मा की शान्ति व उनके परिवार को इस दारुण दुःख को सहने की शक्ति प्रदान करे 
जय जोहार........

तुलसी विवाह/देव-उठनी अकादसी के गाड़ा गाड़ा बधाई

तुलसी विवाह/देव-उठनी अकादसी के गाड़ा गाड़ा बधाई 
कार्तिक मास की एकादशी तिथि, देव उठनी एकादशी (छोटी दीपावली) पौराणिक कथाओं में "देव" शयन से उठते हैं, मंगल कार्य,   खासकर "विवाह" संस्कार इस एकादशी के पश्चात मूहूर्त देखकर  सम्पादित किया जा सकता है. एक और प्रसंग का बोध होता है "वृंदा" का राक्षस जालंधर से विवाह, वृंदा के सतीत्व के बल पर अमरत्व प्राप्त कर उसके द्वारा चहुँ ओर भय हाहाकार का वातावरण उत्पन्न करना, भगवान विष्णु द्वारा  जालंधर वध व 'वृंदा/''तुलसी' के समक्ष जालंधर के रूप में उपस्थित होना, तुलसी से विवाह, तत्पश्चात श्राप से पत्थर बनना और इस युग में तुलसी के नीचे पत्थर की गोल आकृति बन तुलसी के नीचे रखा जाना और शालिग्राम के रूप में पूजा जाना. 
इस त्यौहार को व्रत के साथ मनाने का अपना अलग महत्त्व है. व्रत का तात्पर्य एक प्रकार की प्रतिज्ञा से है जिसके अंतर्गत मानव कोई भी असंयमित/दुष्कर्म नहीं करने का प्रण लेता है. आहार न लेना, ताकि  तामसिक विचार  उत्पन्न न  हो, ऋत्विक फसल गन्ने का  मंडप बना  तुलसी विवाह का आयोजन, नई फसल, शाक सब्जी फल (सभी जो इस ऋतु में ही पहले प्राप्त होती थीं) का पूजन इत्यादि कर यह त्यौहार मनाया जाता है.  इस दिन एक और ख़ास बात होती थी कि रात में अपने घर के टूटे टोकने, और भी बांस के बने टूटे सूप, बेकार लकड़ियाँ (इसी को छितका कहते हैं.) आदि जलाई जाती थी  और ठण्ड भगाई जाती थी. हमारे प्रांत की बोली में इसीलिए इसे "छितका अकादसी" कहा जाता है.
वस्तुतः किसी भी व्रत या त्यौहार का एक निश्चित तिथि में मनाया जाना मेरे मतानुसार केवल पौराणिक कथा का अनुसरण नही होना चाहिए. कुछ न कुछ प्रकृति में होने वाले परिवर्तन  और मानवीय आचरण/स्वास्थ्य में परिवर्तन को भी आधार मानकर मनाया जाता होगा. क्वार महीने से शीतलता का आभास होने लगता था. कार्तिक में ठण्ड किशोरावस्था में पहुँच मार्गशीर्ष, पौष महीने में अपने यौवन से  सभी को मजा चखाता था.  वर्तमान में कार्तिक में भी गर्मी सता रही है.  परम्परा अभी भी कायम है. अच्छा लगता है.  सभी ब्लॉगर बंधुओं को इस पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाएं. 
जय जोहार..............

सोमवार, 15 नवंबर 2010

विद्या ददाति विनयम विनयाद याति पात्रताम

विद्या ददाति विनयम विनयाद याति पात्रताम
पात्रात्वात धन्माप्नोति धनाद धर्म ततः सुखम
सरल शब्दों में उक्त स्त्रोत का अर्थ शायद "विद्या से विनय, विनय से  धनार्जन की पात्रता और धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है.  उपरोक्त संस्कृत की सूक्ति पर वार्तालाप चल रहा था कि " क्या धन के बिना प्राप्त धर्म से सुख प्राप्त नहीं होता. क्या धन प्राप्त होने पर ही धर्म का पालन होगा आदि आदि. मेरे विचार से कोई भी सूक्ति बनती है तो उसका उद्द्येश्य गलत नहीं होता. लोग उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि धन तो झगड़े की जड़ है. बिलकुल सत्य है किन्तु किस प्रकार का धन? अपनी जीविकोपार्जन के लिए परिश्रम, बुद्धि के बलबूते से प्राप्त अथवा चोरी डकैती व अन्य अनुचित साधनों के दवारा प्राप्त.  श्लोक में लिखी पंक्तियों का अभिप्राय " चोरी डकैती व अन्य अनुचित साधनों के दवारा प्राप्त" कतई नही होगा.  किसी भी ग्रन्थ में, शास्त्र में विद्वजनो द्वारा एक ही विषय पर विरोधाभाषी विचार प्रकट किये जा सकते हैं किन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं लेना चाहिए कि दोनों ही गलत हैं अथवा एक गलत है. हो सकता है भिन्न भिन्न विचारधारा देश काल  परिस्थिति को देखते हुए बनी हो.  यह तो हुई सूक्तियों की व्याख्या की बात. 
नवम्बर का महीना चल रहा है. कहने को तो शीत ऋतु है पर नवम्बर में अम्बर की ओर सिर उठा के देखते हैं, पता चलता है बदली छाई है, बारिश हो रही है. जरा भी धूप निकली तो गर्मी से लोग हलाकान. मन में उमड़ते घुमड़ते विचारों में से इन पंक्तियों को लिखने से अपने आपको नहीं रोक पाया;
कार्तिक माह की हो रही रवानगी 
शीतलता का एहसास नहीं 
होता देख खिलवाड़ "प्रकृति" संग  
 क्रूर होती "प्रकृति" का हमें जरा भी आभास नहीं 
मालूम है  यह कलयुग है,  कलपुर्जों का रहेगा जोर 
वन-उपवन उजड़ने लगे हैं, ध्वनि धूल धुंआ विसरित चहुँ ओर
कर प्रयास रोकें वन की कटाई, वृक्षारोपण बढ़ाना है 
पर्यावरण बचाना है जलवायु-संतुलन लाना है 
जय जोहार..........

रविवार, 7 नवंबर 2010

पञ्च दिवसीय दीपोत्सव व लोक संस्कृति

यद्यपि भारतीय हिन्दू संस्कृति  के अनुसार प्रत्येक माह की प्रत्येक तिथि अपने आप में एक पर्व  है, कार्तिक का महीना सभी दृष्टिकोण से पावन माना जाता है. कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष दोनों ही त्योहारों से परिपूर्ण है. चारों ओर खुशियाँ बिखेरे हुए. क्यों न हो. यह सब अकारण नहीं है. बरसात का मौसंम विदा ले चुका होता है. शीत ऋतु का आगमन. स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सामान्यतया रोगों की विदाई का समय. चिकित्सकों के लिए बीमार सीजन.  खेत खलिहानों में भी खुशहाली का वातावरण. पञ्च दिवसीय दीपोत्सव का तो कहना ही क्या.  तरह तरह के पकवान. उत्साह प्रदर्शित करने का भिन्न भिन्न तरीका, मजा ही आ जाता है. यह कहना भी अनुचित नही होगा की अपनत्व महज औपचारिकता में परिवर्तित होता दिखाई पड़ने लगा है. शहरों में लोक संस्कृति भी लुप्त होती नजर आ रही है. धनतेरस से अमावस्या तक अपने ही घर में इस पर्व का आनंद लिया गया. विस्तृत तकनालोजी की देन चलित दूरभाष से शुभकामना  सन्देश का आदान प्रदान. लक्ष्मी पूजा. तत्पश्चात चल पड़े अपने ननिहाल जहाँ प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्चतर माध्यमिक की शिक्षा पूरी हुई है.  एम बी बी एस स्व वाहन से जा रहे थे. रास्ते में कई गाँव पड़े जहाँ यादवों का पारंपरिक पोशाक में पारंपरिक नृत्य चल रहा था. पुरानी यादें ताजा हो आई. बच्चे पूछते गए जहाँ तक बन पड़ा बताये. बचपन में अपन भी उनके नृत्य में शामिल हो जाया करते थे. उनकी कुल देवी या कुल देवता कहें उन्हें जगाया जाता है, जिसे मातर जगाना कहते हैं.   (शायद आह्वान किया जाना इसका पर्यायवाची हो सकता है) इसमें बलि प्रथा का भी प्रचलन था पहले अभी भी है की नही मैं कह नहीं सकता.  अपनी प्यारी छत्तीसगढ़ी बोली में दोहे गा गा के यादव लोग नाचते हैं एक तरफ ईश्वर भक्ति की ओर ले जाता हुआ दोहा तो एक तरफ हास्य का पुट देता हुआ । वाद्य यंत्र भी अलग किसम का जिसे  "गंड़वा बाजा "कहा जाता है, के साथ नाचते हुए नर्तक  जिसमे एक या तो महिला भी होती थी या कोई महिला पात्र बनकर नाचता था। अभी शहरों में यह दृश्य देखने में कम आता है.  देखिये दोनों प्रकार के दोहों की एक झलक;

"राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट 
अंत काल पछतायेगा प्राण जाएगा छूट 
(२)
सबके बारी म अताल पताल मोर बारी म केला रे 
अउ सबके डउकी कानी खोरी मोर डउकी अलबेला रे .......                                                                                                                                              राम राम सब कोई कहे, दसरथ कहे न कोय अउ                                                                                                                                        एक बार दसरथ कहे तो घर घर लइका होय
बलि प्रथा के ऊपर निम्न लिखित पंक्तियाँ लिखने को सूझ बैठा:-
धनतेरस, नरक चतुरदस, सुरहुत्ती देवारी अउ भाई दूज 
अपन अपन देवी देवता संवुर के बोकरा बोकरी कुकरी पूज 
जय जोहार ...........

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

करें माँ लक्ष्मी का वंदन




आई दिवाली की शुभ संध्या 
करें माँ लक्ष्मी का वंदन 
आयें ज्ञान की ज्योति जलाएं 
मनः विकार का तिमिर हटायें
स्वीकारें अभिनन्दन 
करें माँ लक्ष्मी का वंदन 
                                         करें माँ लक्ष्मी का वंदन 
                                       "शुभ दीपावली"

"दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं"

"दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं"
उर उत्साह उमंग के संग 
जीतें जीवन की हर जंग 
काम क्रोध मद लोभ ईर्ष्या 
अरु बैर भाव का तिमिर हटे
दुःख दारिद्र्य मिटे सबका 
संताप, ताप, सब पाप कटे
दीपोत्सव की रोशनी 
घर घर लाये उजियारा
दीप कतार है छटा बिखेरे 
प्रासाद कुटीर हर गलियारा  
सभी मित्रों को पुनः  दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 
जय जोहार..........

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

छोटी दीपावली की बहुत बहुत बधाई

पौराणिक कथाओं के अलावा ऐसा प्रतीत होता है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से शरीर में चरम रोग न होने पाए साथ ही रक्त प्रवाह सुचारू रूप से होता रहे इसलिए प्रकृति प्रदत्त द्रव्यों यथा तिल, चिचड़ा आदि का उबटन लगा व मालिश कर स्नान करना वर्णित है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित प्रतीत होता है.
नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है।
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समझ यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राज की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।

दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उपरोक्त कारणों से नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से जाना जाता है.
मेरे सभी ब्लॉगर मित्रों को पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं. 
स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं है यदि अनुभव यह कर पाए 
सन्मार्ग पर रखें कदम,  पग में  कांटे न चुभने पाए
दुःख सुख में बन सबके सहभागी सहृदयता का अलख जगाएं
"प्रकाश" के इस पावन पर्व में अवगुण का अँधेरा मिटायें 
हम ऐसी दिवाली मनाएं 
जय जोहार .........

बुधवार, 3 नवंबर 2010

जीवन के चढ़ते उतरते ग्राफ

जीवन के चढ़ते उतरते ग्राफ 
जीवन में लक्ष्य निर्धारण और उस लक्ष्य को पाने के लिए किया गया प्रयास मायने रखता है वरना रोजमर्रे की जिंदगी तो सब जी रहे हैं.  चाहे विद्वजन हों, विद्यार्थी हों, साधारण मनुष्य हो सभी चाहते हैं जानना; जो भी कार्य वे कर रहे हैं वह किस स्तर का है ? मसलन विद्योपार्जन में निर्धारित पैमाना होता है लिखित व मौखिक परीक्षा जिसका आंकलन पूछे जाने वाले सवालों के लिए निर्धारित अंक में से कितना प्राप्त करने योग्य है यह विचार  कर किया जाता है .  अंक गणित का महत्त्व जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है.  तुलनात्मक अध्ययन के लिए तो शत-प्रतिशत. जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव के लिए भी.  अब यहीं देख लीजिये; आपका सक्रियता क्रमांक कैसे नंबर वन को छू ले इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं. अच्छी बात है कम से कम स्तरीय लेख-प्रलेख-आलेख (लिख तो दिया किन्तु यदि इनके अलग अलग मायने पूछें जाँय तो नही मालूम, कृपया संक्षिप्त में जानकारी जरूर दीजियेगा), सहित मन में  उपजते तरह तरह के सुविचारों के प्रस्तुतिकरण में निरंतरता बनी रहती है जो पठन पाठन के लिए बहुत उपयोगी है. इन आंकड़ों के अनुसार बनते ग्राफ और मन में उमड़ती प्रतिक्रियाएं कुछ इस तरह बयाँ की जा सकती है

बारहवीं की परीक्षा का
निकल चुका है नतीजा
"प्रथम" आया है अपनी कक्षा में 
अपने प्यारे चाचा का भतीजा 
बंट रही है मिठाई घर में 
अवसर है, खुशियाँ  बांटने का 
अगले पाय दान में अच्छी फेकल्टी 
के साथ कॉलेज छांटने का 
(२)

मिल गया मनचाहा विषय, मनचाहा कॉलेज
बस देते हैं यही समझाइश 
जी भर के मेहनत करो बढ़ाओ अपना नॉलेज
(३)
नए कॉलेज में प्रवेश किये. बीता था एक महीना
 कॉलेज की रेगिंग परिपाटी ने सारा सुख -चैन छीना
"अवसाद" के लक्षण दिखने लगे थे चेहरे पर साफ़ साफ़
चंद दिनों में उतर गया था खुशियों का यह ग्राफ.

यह तो महज एक महाविद्यालय का दृश्य था. ऐसे कई अवसर आते हैं जो पल में खुशी दे जाते हैं  व पल में दुखों का पहाड़ खडा कर देते हैं. यही जीवन चक्र है. दुःख से सामना ना हुआ हो तो सुख की अनुभूति कैसे हो सकती है. 
                आज है धनतेरस : सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं. माँ लक्ष्मी की कृपा से सबके घरों में धन बरसे, सुख समृद्धि वैभव से भर दे. 
जय जोहार...........