दहलीज़ (कुंडलियाँ)
आकर सब संसार में, करत पार दहलीज।
कहीं शत्रु से सामना, बनता मित्र अज़ीज।।
बनता मित्र अज़ीज, निभाता सच्चा नाता।
संकट में वह काम, आपके हरदम आता।।
लेंगे हम विश्राम, लक्ष्य को आखिर पाकर।
करत पार दहलीज, जगत में प्राणी आकर।।
स्वरचित
सादर
सूर्यकांत गुप्ता...
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)