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गुरुवार, 16 अगस्त 2012

मेरी लेखनी क्यूं कुंठित हुइ जा रही

मेरी लेखनी क्यूं कुंठित हुइ  जा रही 
तुझे कागज़ की कोरी पन्नी क्यूं नही भा  रही 
सोचती क्या दिन-रात तू 
तेरी उकेरी चंद पंक्तियाँ 
क्यूं जन -आशीष नहीं पा रही 
शब्द सागर भंवर जाल में 
व्यर्थ  डूबती क्यूं जा रही 
सीने तक गहराई नाप पैठ क्यूं नहीं पा रही 
मेरी लेखनी क्यूं कुंठित हुइ  जा रही
जय जोहार......... 

बुधवार, 15 अगस्त 2012

स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक बधाई, सभी मित्रों को
 
आजादी की छः सठवी सालगिरह
सोचता हूँ ; आम आदमी से लेकर                                       
देश के कर्णधारों के बीच होती नहीं 
इस बात पर जिरह 
कि  खूब कमायें खूब खाएं 
पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान 
न पहुचाएं  
मानता हूँ  आम आदमी 
होता है तमाम घोटालों का शिकार 
लगा देता है झड़ी  आलोचनाओं की 
भूल जाता है उसके पास क्या है 
समाधान के लिए इलाज 
सोचता नहीं, 
लगी है उसी की रकम 
सार्वजनिक जन-सुविधा के लिए 
उपलब्ध कराये गए संसाधनों में 
फिर भी;  बजाय उसकी हिफाजत के 
लग जाता है ध्वस्त करने में .
क्या यही है स्वतंत्रता ?
 जय जोहार .......