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रविवार, 9 जुलाई 2017

आँचल

                    आँचल

माँ का आँचल ढाँकता, बेटे का हर दोष।
कितनी भी हो गलतियाँ, उपजे कभी न रोष।।
उपजे कभी न रोष, प्रेम की सरिता बहती।
ममता अपरंपार, कष्ट वह सब कुछ सहती।।
वृद्ध आश्रम आज, पुकारत कहता आ चल।
क्यों जाते हम भूल, मातृ ममता का आँचल।।

जय जोहार....

सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)

ज़रूरत और ज़ररूरती

                    ज़रूरती

जाहिर करें ज़रूरती, चीजें क्या हैं खास।
अन्न वस्त्र घर और क्या, रखते अपने पास।।
रखते अपने पास, आज क्या गैर ज़रूरी।
आता हमको त्रास, देख सबकी मज़बूरी।।
रह रत भोग विलास, सकेलन में सब माहिर।
राज करत अन्याय, देखिये जी जग जाहिर।। 

                       ज़रूरत

रहता इस संसार में,  कौन ज़रूरतमंद।
निम्न उच्च मध्यम यहाँ, शब्दजाल में बंद।।
शब्दजाल में बंद, वर्ग मध्यम फँस जाता।
उच्चवर्ग को ऐश, निम्न को माँँगन भाता।।
किंतु ज़रूरत तोरि, वर्ग बिन देखे कहता।
आज ज़रूरतमंद, कहूँ हर कोई रहता।।
(स्वरचित)
सादर.......
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)