आईए मन की गति से उमड़त-घुमड़ते विचारों के दांव-पेंचों की इस नई दुनिया मे आपका स्वागत है-कृपया टिप्पणी करना ना भुलें-आपकी टिप्पणी से हमारा उत्साह बढता है

रविवार, 29 नवंबर 2009

बिहाव के न्यौता खाव

महराज मन  के गणित ला देखौ, 
कतेक कम मुहूरत हे ये दारी 
करे बर बर बिहाव 
देख के न्यौतन के कारड ला 
पर जाथे सोचे बर भाई हो

काखर घर भेजौं रीत 
काखर घर खुदे जाँव 

जाके देख थन बिहाव घर माँ 
बिपतियाये घराती अपन काम बूता माँ 
हाय हेलो भर  कर लेथे, 
कहूँ बन के बाराती तैं गे हस त 
नचई  कुदई पेर देथे



मिल गे मंडली त बने लागथे 
नई तो हो जाथस तय बोर 
रीत दे के भागे के मन करथे
फेर बिन खाके जाय माँ लागथे
अन्याय हो जाही घोर 
काबर के 
किसिम किसिम के जिनिस बने हे 
जेला कथें आजकल बफेलो (बफे) 
फेर काहे  चूकौ संगवारी 
झन छोडो एको आइटम ला 
एक  एक करके गफेलो 
लेकिन ध्यान रहै
पेट तुंहर आय कोटना नो है 
सम्हल सम्हल के खाव
नई समझहू त हम का करबो 
दिखही रस्ता सुभीता खोली के 
उहाँ  हउरा फेट लगाव



ये दारी = इस समय 
बर बिहाव = शादी ब्याह 
खुदे = स्वयं 
न्यौतन कारड = निमंत्रण पत्र 
काखर घर = किसके घर 
रीत = उपहार 
बिपतियाये = व्यस्त 
काम बूता = काम में 
जिनिस = चीजें, व्यंजन 
गफेलो= खाओ, पेट में ले जाओ 
कोटना= मवेशी को चारा खिलाने का पत्थर का बना टब नुमा 
              चीज

हम का करबो = हम क्या करेंगे 
सुभीता खोली = जहाँ रोज सुबह जाया जाता है 
                        बताने कि जरूरत नहीं समझता 
हउराफेट= बार बार जाने कि क्रिया 






बुधवार, 25 नवंबर 2009

रेल गाड़ी के जनरल डब्बा

भाग - २
मैं सबले पहिली मोर ब्लॉग के अउ बिन ब्लॉग के घलो जम्मो संगवारी मन ला जयरामजी की कहत हौं.  भाग्ग-२ के संपादन बर अब्बड अगोरवायेवं तेखर खातिर माफ़ी चाहत हौं.  तौ टेशन ले पहुचेवं सम्मलेन के जघा माँ. सम्मलेन हा युवक युवती परिचय सम्मलेन रहिसे.  अइसन सम्मलेन माँ अपन अपन जोड़ा जोड़ी खोजे माँ सहूलियत रथे.  अरे बिहाव नई करैं त का होगे दाई ददा मन ला पता तो चल जाथे के काखर  टूरी अउ काखर टूरा बिहाव के लाइक हो गे हे.   देखत हौं लाव लश्कर के संग  अइसन गाड़ी(चमचमावत  कार) ले जेखर  मुड़ी माँ लाल लाईट लगे हे ओमा ले बढ़िया  जग जग ले उज्जर सफेद कपडा (पजामा अउ आधा बाँही के कुरता) पहिने एक झन  मनखे उतरिस. ओखर संग माँ लंगुरवा घलो रहिसे. अब बताये के जरूरत नई ये. तभो ले बता देथवं.  ओ मनखे रहिसे बेलासपुर के रहैया अउ आज जउन  अपन राज के खजाना मंत्री हे भाई अमर अग्रवाल. संग माँ ओखर बेलासपुर शहर के देख रेख करैया वैसे ओला शहर के प्रथम नागरिक माने जाथे महापौर जी भी रहिन अउ फेर मंत्री महोदय के चेला चपाटी. अब सम्मलेन के स्वागत दुआरी ले ओला परघावत हमर समाज के नगर अध्यक्ष अउ बड़े बड़े कार्यकर्ता मन मंच तक लेजिन.  ये दारी बने बेवस्था करे रहिन हमर समाज के करता धरता  मन. ओतकेच जुअर महू दुआरी माँ पहुँच गेवं. ऐसे लागिस महू तर गेंव. मोरो ऊपर फूल गिरिस तिलक घलो  लगाइन दुआरी माँ खड़े नोनी मन.  मंत्री जी  मेरन समय के कमी रहिसे.  कइसनो  कर के मंच माँ बैठारे गइस. हमर समाज के राष्ट्रीय स्तर के अउ प्रदेश स्तर के बड़े बड़े पदाधिकारी मन घलो मंच माँ मंत्री मन के संग माँ बइठिन.  मैं अपन एक जघा माँ कोंटिया गे रेहेंव. अब शुरू होईस मंच माँ बैठे मंत्रीजी समेत  जम्मो झन ला पुष्पहार से स्वागत करेके पारी. झन पूछौ भैया हो. मंत्री के स्वागत करैया कोरी खैरखा के  मात्रा माँ जी. करीब पौन घंटा ओही माँ बीत गे. फेर समाज के करता धरता के स्वागत करे माँ अलग. हड़बड़ी माँ अपन गोत्र ऋषि  कश्यप जी के पूजा ला घलो भुला गे रहिन. सुरता आये के बाद ओखर फोटो माँ दिया ला जलाइन.  कोनो समाज होए अपन समाज के एक ठन बने भवन के बेवस्था करथे. ओखर बर एडी चोटी एक करे ला परथे. एक तो अतेक दानवीर नई रहैं जउन  अकेल्लेच बनवा दै. फेर आज के तारीख माँ जमीन खोजे नई मिलत  हे. अउ मिलतो हे त भाव आगी लगे बरोबर हे. तौ अइसने बेरा माँ थोकिन कंत्री बन के नजूल उजूल के भुइंया मिल जाय कहिके मंत्री जी के सुरता करथन. वैसे तो जाने बात ए के कंत्री कोन आय. अतके माँ काम नई चलै.  बने भीड़ जोरे ल परथे त मंत्री जी पतियाथे के हाँ भविष्य माँ मोर बोट (वोट) के एक बहुत बड़े हिस्सा इंखर मेरन हवै.
तौ सबो झन (महिला सभा अउ तरुण सभा दुनो के बड़े बड़े पदाधिकारी मन ) अपन अपन गोठ बात रखिन. फेर मंत्री जी भी हां शुभ कामना के अपन दू शब्द कहिके ये परिचय सम्मलेन के महत्व  बताइन अउ भरोसा दइन के हमर समाज के भवन जउन अभी भूतल भर माँ बने हे ओला दुमंजला बनाये बर सहयोग मिलही सरकार ले.
मंत्री जी के बिदा होए के बाद समाज के सब बिहाव के लाइक नोनी बाबु के परिचय के सिलसिला शुरू होईस. संगे संग उनखर पंजीयन घलो. चाय नास्ता भोजन सबो के बेवस्था रहिसे. अरे हाँ एक ठन जउन बने बात अउ होईस ओ आये हमर समाज के हिंदी साहित्य के नामी शख्सियत स्वर्गीय प्यारेलाल जी गुप्त (जन्म १७ अगस्त १८९१ अउ निर्वाण १४ मार्च १९७६)  जेखर द्वारा  किताब लिखे गे हे; "प्राचीन छत्तीसगढ़(इतिहास ग्रन्थ) सुखी कुटुंब (उपन्यास) सरस्वती (मराठी से अनुदित) लबंगलता (उपन्यास) फ्रांस की राजक्रान्ति का इतिहास, ग्रीस का इतिहास, बिलासपुर वैभव (हिंदी गजेटियर) पुष्पहार (कहानी संग्रह) एक दिन (नाटक)" के स्मरण माँ जारी त्रैमासिक पत्रिका "पाठ"  के विमोचन माननीय मंत्री जी द्वारा करे गइस.  मैं खुद नई जानत रहेंव. ओ दिन जानेंव. बने लागिस. महू करीब सांझ के साढ़े पांच छै बजे तक रहेंव फेर अपन भेलाई बर ओही रेलगाड़ी माँ (आये के बेरा पसिंजर) माँ आयेवं अउ करीब ११ बजे रात के घर पहुचेंव.  लिखे बर तो अब्बड अकन ले चीज हे जी फेर जादा माँ आदमी बोरिया जाथे कहिके इहें समापन करत हौं. 
जय जोहार.     






मंगलवार, 17 नवंबर 2009

रेल गाड़ी के जनरल डब्बा

                                                             भाग - १
१४ तारीख के लिखी दे  रहेवं के मोला १५ के अपन बनिया समाज के प्रादेशिक सम्मलेन माँ जाए बर हे.  तौ एखरे बर १५ तारीख के बिहनिया बिहनिया करीब ६.४५ बजे  मैं बिलासपुर जाए बर घर ले निकलेवं. दक्षिण बिहार एक्सप्रेस हा तकरीबन ७.०५ के दुरुग ले छूट थे. अपन डुगडुगी (हीरो पुक ई जेड) माँ स्टेशन तक गेंव. गाड़ी ल स्टैंड माँ  रखेंव. एक्दमेच गाडी छूटे के टाइम हो गे रहिसे. गनीमत हे चार पांच ठन टिकट काउंटर खुल गे हवै. एक टिकट काउंटर माँ कम भीड़ भाड़ रहिसे  उंहचे टिकट लेंव अउ दउड़त  दउड़त पलेट फारम नंबर ४ माँ पहुचेंव.  गाड़ी खड़े रहय.  एकेच ठन ताराचंद (टी. सी.,टिकट चेक करैया) खड़े रहय. अउ ओखर मेर स्लीपर क्लास के टिकट बर एक्स्ट्रा पैसा देके टिकट लेवैया के भरमार. का पूछे बर हे . टी. सी. के चेहरा पसीना से तरबतर रहय. महू बिलासपुर बर स्लीपर के टिकट मागेवं त  कहिदिस लोकल टी. टी. आही त बनही. गाड़ी छूटे के टेम हो गे रहिसे गार्ड अपन भिसिल ला बजा दे रहिसे. अब  एक्सप्रेस गाड़ी माँ जेमा जनरल डब्बा गिने चुने रथे, बिना रिजर्वेशन जनरल बोगी माँ यात्रा करना  माने धक्का मुक्की ले हलकान होत जाव. सबो किसम के हलकानी, बैठे के जगा नहीं, चोरी अउ पॉकेट मारी के डर.....अउ कई किसम के खतरा जी. एखरे पाय के मैं रिजर्वेशन बोगी माँ इन्तिजाम करके जाथौं. पर का करौं  ओ दिन ताराचंद  घलो ला सुने के फुर्सत नहीं. गेंव पीछू के आधा ठन  बोगी माँ. असल माँ वो बोगी हा जनाना बोगी रहय फेर इहाँ कहाँ के नियम अउ कानून.  औरत मरद सबो घुसरे हें. झन पूछ ले दे के  महू घुसरेंव.  रेंगिस गाड़ी हा. गाड़ी के रेंगे ले जैसे गहुँ पिसवाय ला जाबे त आटा हा जब डब्बा माँ भराथे त डब्बा ला   हलाये के बाद ही  आटा एडजस्ट होथे. ओइसने गाड़ी के रेंगे ले हमन एडजस्ट होएन.  मैं सिंगल सीट वाले भाई ल अपन आधा डबलरोटी रखे बर निवेदन करके टिक गे रेहेंव.  अब पहुंचिस गाड़ी पावर हॉउस स्टेशन. का पूछे बर हे. एक तो आधा बोगी के डब्बा, पहिली च ले खच खच ले भरे रहय तभो ले सवारी घुसरते जाथे बेसुध होके. हमन सब जानथन के अइसन बेरा ल ताकत रथें अपन रोजी रोटी बर निकले बिचारा पाकिट मरैया  मन. तभो ले गाड़ी झन छूटे  कहिके लकर धकर चढ़ते जाथन. गाड़ी हा छूटे लागिस त ओ दिन तीन झन के बाट लग गे. एक झन के पर्स माँ पांच हजार रूपया अउ ए टी एम्  रहय बाकी दू झन के शायद चालीस पचास रुपिया भर. इंखर मन के २-३ के  ग्रुप रथे. एक झन ला देख डारिन. पीटीन घलो. फेर चोरी होए  समान हा तो पार्सल हो गे रहिसे दूसर ला, कहाँ ले मिलै. आखिर जेखर चोरी होए रहिसे ओ बिचारा हा भिलाई -३ माँ जी आर पी थाना माँ  रपट लिखवाए बर उतर गे.  अब इहाँ गाड़ी माँ खड़े पसेंजर मन बेंच माँ बैठे लोगन ले आघू के स्टेशन माँ जगा मिलही कहिके दीन हीन बरोबर देखत हे. पूछत घलो हे कहाँ उतरहू कहिके. जम्मो झन ले ओ मन ला "टा टा" मिलिस. ओ मन टाटानगर जवैया रहैं. एती डब्बा भीतर किसम किसम के बात. कहत हें,  "पुलिस ल बताये ले का फरक पड़ही, फिफ्टी फिफ्टी के सौदा रथे जी". "चोर चोर मौसेरे भाई"........ बाकी पाकिट मरैया मन एमा झूठ नई बोलय पुलिस मेरन ईमानदारी से बक देथें ...... किसिम किसिम के गोठ. महू गोठ बात के आनंद लेत पहुंचेवं बिलासपुर करीब १०.०० बजे. १०.१५ के सम्मलेन आयोजन स्थल माँ पहुँच गेंव. अब सम्मलेन के बात भाग-२ माँ लिखिहौं.
जय जोहार.  

रविवार, 15 नवंबर 2009

मृत्यु-भोज व दहेज़ प्रथा

बहुत हो गया अब। एक ही ढर्रे में चलते हुए। याने हँसी मजाक में कुछ कुछ पुडिया छोड़ते हुए. कुछ अन्य विषय पर भी चर्चा हो जाय। हम सब देख रहे हैं की आज समाज में मृत्यु भोज व दहेज़ प्रथा अभी भी कायम है। कायम ही नही मैं समझता हूँ ये दोनों कुरीतियाँ प्रतिष्ठा का विषय बन गयी हैं। बहुत लिखे जाते हैं इस पर। पर आप सभी से इस सम्बन्ध में राय जानने की अपेक्षा है। मैंने लोगों के बीच चर्चा करने पर पाया कि घर में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने के  दस दिन  बाद की शुद्धि के पश्चात् तेरहवें दिन समाज के लोगों को, मित्रों को अपने घर बुलवाकर भोजन करा घर में शोक संतप्त वातावरण से उबरने के लिए तेरहवीं के रूप में संपन्न कराया जाता है। पर जैसा कि आज देखा गया है कि इस अवसर पर भी एक विवाह समारोह के समकक्ष भोज का आयोजन किया जाता है क्या  यह उचित है? अब दहेज़ प्रथा के बारे में तो पूछिए मतलड़कों की पढ़ाई और जॉब के आधार पर दहेज़ तौला जाता है . ये सब बातें धनाढ्य वर्ग के लिए सहज है किंतु क्या समाज के गरीब तबकों के लिए इन चीजों का थोपा जाना वाजिब है? पत्रिका केसर ज्योति के संपादक के सम्मान में एक कविता तैयार कर  दहेज़ मृत्युभोज  दोनों को इसमे शामिल करते हुए (भाषा को सुसज्जित कर पंक्तिबद्ध करने में तो अभी समय लगेगा) अपनी भावना को कुछ इस तरह प्रकाशित करवाया था:


केसरवानी समाज कि ये बगिया सुरभित हो केसर से सदा
जलती रहे प्रेम कि ज्योति दिलों में सभी के
हम हों कभी किसी से जुदा
कर रहा राज हम सब के दिलों में
वह केसरवानी राज है
केसर ज्योति कि रश्मि प्रभा से
दीखता संगठित सुगठित
केसरवानी समाज है

अतएव है निवेदन भी करूँ ताकीद सभी को
होने देंगे समाज का विघटन
ठान लें मन में अभी से
पूरा हो थोड़ा ही सही
कर अर्पण अपना तन मन धन
खा लें कसम रुकें पल भर
पियेंगे पिलायेंगे
फ़ेंक देंगे उन शीशियों को
भरा हो जिनमे ईर्ष्या द्वेष भाव का जहर
ढाने देंगे कभी
पुत्र वधू वधू के पिता पर
उस गरीब के घर, जहाँ से
निकली है अर्थी लेटा है चिता पर
दहेज़ व् मृतभोज रूपी कुरीतियों का कहर
महका दें सदाचार व् सद्भाव की सुरभि से
इस समाज को अपने वतन की इस सरजमी को











एक ठन जबरदस्त बीमारी

कोंजनी का बीमारी हा मोला जकड ले हे के छोडे के नाव नई लेथे। अपने च अपन माँ भुन्भुनावत रथौं। काहीं लेख ला पढ़हूँ चाहे किताब ला पढ़हूँ त बूजा हा सुरता माँ नई रहय। भुला जाथौं। कोनो भी विषय ला पढ़े के बाद ओखर बर तुरते विचार उपजथे। ओतके जुअर लिख ले त ठीक हे नई त आघू पाठ पीछू सपाट। कुल मिला के एला कथें भुलाए के बीमारी। अब का बतावं डागदर (अभी भी गवई माँ एही उच्चारन करथें उहाँ के मन, देखौ भाई डॉग डर याने कुकुर डेरा गे झन समझ लहू ) मेरन अपन इलाज बर गेवं। देख ताक के पूछिस कब ले हे ये बीमारी तोला। अब का बताओं ओतका जुवर सर्किट फ्यूज होगे दिमाग के उल्टा महि पूछे लगेवं डागडर ला "कउन बीमारी डागदर साहब। डागदर घलो भौंचक रहिगे। अब काय करबे ला इलाज होगे हे जी। अब बिहनिया ले जाय बर हे बेलासपुर। हमर समाज के राज्य स्तरीय सम्मलेन हावे। उठ पाहू के नही कहिके डेरावत हौं। अलारम हे न मोबाइल माँ। ओखरे आसरा माँ एला पोस्ट करे बर जागत हौं। अब जाथौं सोहौं। जम्मो झन ला सुग्घर रात अउ जय जोहार।

शनिवार, 14 नवंबर 2009

नवा बैला के नवा सिंग चल रे बैला टींगे टिंग

मैं हा बने देवारी के दिन ये बलाग लिखे ला शुरू करे रेहेवं। ललित भाई अउ शरद भाई के आशीर्वाद अउ प्रेरणा मिले के बाद एकदम जोशिया गे रहेवं। तहां ले बस हर दिन बलाग लेखे के मन करै। ओइसने ताय ...."नवा बैला के नवा सिंग चल रे बैला टींगे टिंग"। अब सोचे बर परथे थोकिन। तौ गति हा धीरे हो गे हे लिखे के। करीब २-३ दिन ले सुभीता खोली माँ तो नही पर अइसने बइठे बइठे गुनत रहेवंभीतरे भीतर गुंगुवत रहिस मोर सोच हा के ये बलाग लिखे माँ का नफा हे का नकसानछत्तीसगढ़ी माँ तो नई सोच सकेवं। हिन्दी माँ सही लिखत हौं। बलाग के जोड़ तोड़ ला पहिली कर डरे हवं। (बला + आग)। कोनो गुसियाहू झन। हाँ आलोचना समालोचना कर सकत हौ ;
जब से आया है यह डब्बा (कंप्यूटर) नई नई चीजों के साथ ब्लॉग लेखन का अच्छा दौर चला है कवि साहित्यकार लेखक चिंतन करने वालों के लिए :- ब्लॉग लेखन एक कला है उन गृहिणियों के लिए जो अपने "उनको" पाते हैं इसमे व्यस्त सदा, उनके लिए बला है नव सीखिए, रखते हैं कुछ इसी तरह कर गुजरने की तमन्ना उनके ब्लॉग लेखन के लिए यह भला है और यदि इसे कोई तुलनात्मक दृष्टि से देखता हो और यदि कुछ हद नव सीखिए की भावना प्रकट हो रही हो उसकी चंद लकीरों से, प्रशंसनीय है हो रहा हो इसमे अग्रसर तो माहिर लोगों से कहूँगा आपका दिल क्यों जला है, उस नव सीखिए का लिखना आपको क्यों खला है
चाहिए इन्हे आपका आशीर्वाद अच्छे अच्छे सुझाव नव सिखियों को उनके मुकाम तक पहुचाव

बुधवार, 11 नवंबर 2009

मनखे मन के विचार हा कहाँ जादा उमड़ थे

वैसे तो दिन भर आदमी हा सोचते रहिथे। तभे यक्ष हा युधिष्ठिर ले प्रश्न करे रहिसे के हवा ले भी तेज काखर गति हवे। ओला जवाब मिले रहिसे "मन"। तौ भाई मन ताय दिन भर सोझ बाय नई रहे। फेर मैं समझथौं आनी बानी के सोच हा सुभीता ले एकेच ठउर माँ दिमाग ला कुरेदत रथे। वो ठउर आय रे भाई हो लोटा परेड करेके स्थान। अब जादा विस्तार ले समझाए के जरूरत नई ये मैं समझ थौं। बस एके बात के चिंता रथे के जैसे कचरा हा उपयोगी नई रहे तिसने दिमाग ले मन ले उपजे बने विचार ला कचरा मत बनाए जाय अउ वो सुभीता खोली से गुनत गुनत निकले के बाद तुरते अपन डायरी माँ लिख डारे जाय। अउ फेर ए मेरन लिख मारे जाय।

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

भगवान आखिर तही हा जीत थस

खेल के मैदान होवे चाहे होवे राजनीतउतरे के बाद मैदान माँ हो जाथे तोर ले प्रीत अभी अभी होए रहिस इहाँ उपचुनाव१५ झन मनखे मन लगाये रहिन अपन दाँव लेकिन देवत रहिन दुए झन अपन अपन मेछा माँ ताव एक झन हा कहत हे हे ईश्वर जागले दे के चांस मिले हे जगा दे मोर भाग दूसर हा कहत हे मैं तो अतके जानथौं। तय हस निराकार येला मैं मानथौं उतरे हौं मैदान माँ तबले रेगुलर करथौं मैं भजन तोरलगाबे नैया पार, मत देबे तय नरवा माँ मोला चिभोरवो तारीख रहै सात होगे इंखर किस्मत हा इ. व्ही. एम्. माँ बंद दिन ले शुरू होगे इंखर मन माँ अंतर्द्वंद। अगोरत अगोरत होगे दस तारीख के बिहन्हा। नेता जनता दुनो पहुचगे पालीटेक्निक कालेज जाने चुनाव रिजल्ट, हलावत अपन कनिहा। निराकार के जीत होईस हार गे साकार। अरे दुनो माँ त तही हस तोर लीला हे अपरम्पार। अउ जम्मो छत्तीसगढिया मन ला मोर जय जोहार।

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

बला के आग

अपन ऑफिस माँ बइठे ब्लॉग माँ अपन लिखे चीज ला देखत रेहेंव। हमन एला बलाग कथन। देखत देखत सोचेंव के शरद भाई मेरन बात कर लेना चाही। घनघनवायेवं ओखर मोबाइल के घंटी। जन मानस के एक ठन स्वाभाविक प्रवृत्ति होथे के पहिली जउन काम ल करना हे, बेरा कुबेरा कोनो ल पेरना हे त फोनिया के पेरलौ, अउ दखल डारे के बाद सामने वाले ला कहौ के आप ला तकलीफ थोरे होईस। लोक लाज माँ बिचारा का केहे सकही। झक मार के कइही ... नही नही कोनो तकलीफ नई हे, ले गोठिया। अइसने तंग मैं हा शरद भाई ल करेवं। जम्हाई लेवत रहिसे ओतके माँ मैं फोनिया देवं। खैर ओ हा घर परिवार के मनखे बरोबर हे। गारी देही त दे लेही। करीब आधा घंटा ले गोठियाएन। एही बीच माँ मोर मुह ले निकल गे ये ब्लॉग हा यदि बलाग कहिबो त बला के आग हो जाही। अउ ये ओ आग आय जेन मेरन ले हटे के मन नई लगे जैसे जाड के दिन माँ पहिली गोरसी के आगी तापत बैठे रहन. त ये विचार ल भाई शरद कहिस के तुंरत तैं पोस्ट कर दे। येदे कर देवं जी पोस्ट.......

बुधवार, 4 नवंबर 2009

ब्लॉगर बैठकी माँ बुलावा

सबो आदरणीय ब्लॉगर कवि, साहित्यकार मन ला मोर नमस्कार ! परन्दीन मैं रायपुर गे रेहेवं। संझा के बेरा रहय। अपन ममा इहाँ बैठे रहेवं। ओतके जुअर मोर मोबाइल के घंटी हा घन घनाईस। देख्थौं के संजीव तिवारी महराज के फरमान आय। तिवारी महराज हा कहिस के भिलाई के हिमालय काम्प्लेक्स माँ बड़े बड़े मन आय हवै। विशेष करके शरद कोकास भाई अउ ललित भाई। लेकिन का करों अपन परिवार संग गे रेहेवं। ओती राज्योत्सव मेला देखे ल जाना हे कहिके मोर नोनी के फरमाइश रहिस। बड अखरिस जी। अतेक सुग्घर मौका ला खो देवं अइसे लागिस। खैर उम्मीद हे ऐ मौका फेर मिलही जरूर। मोला सुरता करेव आप मन ओतके माँ मैं अपन आप ला धन्य समझे लगेवं। अब थोकन महूँ एक बात के मन माँ कल्पना कर डारेवं मुंगेरी लाल बरोबर ओला ऐ मेरन लिखत हंव। ओ दृश्य ला देखत हंव के हमन जम्मो झन बइठे हन अउ सब झन अपन अपन विचार व्यक्त करत हन। ले दे के मोर नंबर लागिस। मोर संबोधन शुरू होईस " आदरणीय भाई ललित शर्मा जी, शरद कोकास जी संजीव जी सहित जम्मो ब्लॉग जगत के बड़े बड़े महात्मा मन। मैं बहुत धन्य हो गेंव, आज आप मन मोला बलाएव। भाखा अउ बोली ताय बने लागिस त ठीक हे नइ त तोर जघा का रइही झन पूछ। एखरे खातिर मोर एक बिनती हे के कोनो के विचार ओखर रचना ला पहिली पढौ अउ सुनौ सुन के ओला गुनौ, बने लागिस त मंच बर चुनौ नइ त अइसे ओला धुनौ, के धुनें माँ पोनी हा कैसे बनथे सब झन बर उपयोगी गद्दा सुपेती अउ रजाई (अउ बहुत उपयोगी समान घलो बनथे, फेर अपन तुकबंदी खातिर लिख परेवं) ओइसने एखरो बिचार हा सबके काम आवै भाई कतेक बढ़िया दिन हे आज मोला आप मन संग बइठे के मौका मिलिस। पायेवं अपन बीच मा भाई संजीव ललित अउ शरद कोकास अपन प्रदेश बर कुछ करेके, ख़ुद के आगू बढे के जगिस मन माँ आस बिस्वास हे मोला पूरा नइ करहु मोला निरास जय छत्तीसगढ़

सफल और असफल व्यक्ति में अन्तर

भले ही ये बातें जगह जगह दुकानों पर, कार्यालय में अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों की तरह फ्रेम में बंधे अथवा पोस्टर की भांति चिपकाए हुए देखे जा सकते हैं किंतु मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नही है की मनुष्य थोडी देर के लिए ही सही यदि किसी कार्य में अड़चन महसूस कर रहा हो तो इन बातों को थोड़ा पढ़ ले इससे निराशावादी सोच से मुक्ति मिलती है। १- सफल व्यक्ति के पास समाधान होता है, असफल व्यक्ति के पास समस्या २- सफल व्यक्ति के पास एक कार्यक्रम होता है, असफल व्यक्ति के पास एक बहाना ३- सफल व्यक्ति कहता है यह काम मैं करूँगा, असफल व्यक्ति कहता है यह काम मेरा नही है ४- सफल व्यक्ति समस्या में समाधान देखता है, असफल व्यक्ति समाधान में समस्या ५- सफल व्यक्ति कहता है ये काम कठिन है लेकिन सम्भव है, असफल व्यक्ति कहता है कार्य सम्भव है लेकिन कठिन है