गरहन
गरहन सूरज चाँद ला, धरथे जी हर साल।
चंदा पृथवी रेंगथें, अलग अलग हे चाल।।
अलग अलग हे चाल, एक लाइन मा आथे।
धरती सूरज बीच, खड़ा चंदा हो जाथे।।
देस राज मा 'कांत', आय झन काँही अलहन।
जन मानस बर लाय, नतीजा बढ़िया गरहन।।
सादर......
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सूर्यकान्त गुप्ता, 'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
(चित्र गूगल से साभार)