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बुधवार, 14 जनवरी 2009

सूक्तियां जीवन में कितनी अनुकर्णीय

सूक्तियां जीवन में कितनी अनुकर्णीय

श्री राम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक महाकाव्य जिसके माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जीवनी उनके पूर्वज से लेकर उनकी अगली पीढी का वर्णन इस महाकाव्य के सात कांडों/सोपानों में वर्णित कर आज के युग में उनके आदर्शों पर चलने की शिक्षा दी गई है, इस महाकाव्य में गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा मानव की महिमा का बखान इस तरह किया गया है;

'बड़े भाग मानुष तन पावा' क्यों?

मानव ही ऐसा प्राणी है जिसमे बुद्धि व विवेक दोनों होता है। बुद्धि तो इस जगत के सभी प्राणियों में है। यह अलग बात है की आज का मानव अपनी अनंत अभिलाषाओं की पूर्ति के चक्कर में अपना विवेक ग़लत रास्ते पर दौडाने लगा है। परिणाम तनाव उत्कंठा व अनेक व्याधियों को निमंत्रण। ऐसी स्थिति में हम क्षण भर ऐसा साहित्य ऐसी किताबें ऐसा शास्त्र पढ़ें जो पग पग में हमें जीवन जीने की कला से परिचित करावे। उनमे उद्धृत सूक्तियों को गांठ बाँध कर जतन लें और वक्त बेवक्त उन सूक्तियों को याद कर अपनी जीवन शैली में सुधार ले आयें तो कितना अच्छा होगा। इसी उद्देश्य के साथ कुछ सूक्तियों का उद्धरण यहाँ प्रस्तुत है।

१ हमेशा भाग्य के धागों को कौन देख सकता है? क्षण भर के लिए हितकारी अवसर आता है हम उसे खो देतेहैं।

२ सहानुभूति एक विश्वव्यापी भाषा है जिसे सभी प्राणी समझते हैं।

३ आलोचना रूपी वृक्ष फल और कीड़े दोनों को ही अलग कर देता है।

४ शत्रु केवल देह पर आघात करता है किंतु स्वजन ह्रदय पर।

५ प्रत्येक पत्थर कुछ बनना चाहता है और वह अपने आपको प्रसन्नता से उन हाथों में सौंप देता है जिनमें छेनी हथौड़ी रहती है।

६ न अतीत के पीछे दौड़ो और न ही भविष्य की चिंता में पडो, क्योंकि अतीत है वह तोनष्ट हो गया है और भविष्य अभी आया नही है।

७ मौन वृख्स पर शान्ति के फल फलते हैं।

८ जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नही।

९ जो लक्ष्मी प्राण देने पर प्राप्त नही होती, वह चंचल होती हुई भी नीतिज्ञ मनुष्यों के पासअपने आप दौड़ी चली आती है।

१० मृत्यु जीवन से उतनी ही सम्बंधित है जितना जन्म।

११ जो कुछ तुम इच्छा करते हो, यदि वह तुम नही कर सकते तो वही इच्छा करो जो तुम कर सकते हो।

१२ सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है और धर्म से आयु बढती है।

१३ आत्मा का आत्मा से मिलन होना अच्छा है। इस मिलन को संसार की कोई सत्ता रोक नही सकती।

१४ कुपठित विद्या विष है, असाध्य रोग विष है, दूसरों दूसरों के लिए साधन है और वृद्ध पुरूष के लिए तरुणी विष है।

इस प्रकार बड़े बड़े संत महात्माओं व विद्वानों द्वारा अनेको सूक्तियां लिखी गयी हैं जिन्हें प्रकाशित करना

सहज नही है। जो उपलब्ध होते हैं उन्हें ही याद कर लिया जाय साथ ही साथ अमल में लाया जाय

धन्यवाद् जय हिंद