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शनिवार, 25 जुलाई 2015

अकाल अंदेसा




जब बरसा रानी रूठी रूठी लग रही थे तब की रचना;

बेइमान मौसम ‍बेरहमी ।बाढ़े हे कुहरन अउ गरमी।।
बादर हवे कहाँ तिरियाये। मानसून तैं बड़ भरमाये।।

देवत मौसम इही संदेसा।  होवत फेर अकाल अंदेसा।।
कुदरत संग खिलवाड़ नतीजा। तैं किसान मर मर के जिएजा।।

घोटालों की बाढ़



ऋतु बरखा बिन मेघ के, सूरज ताप दिखाय।
घोटालों की बाढ़ से, देव वरुण शरमाय।।
मेघ जब बरस नहीं रहे थे तब का है  ये .... 

असली बेसुध सोय

असली बेसुध सोय 

घोटाले करते फिरें, भले उजागर होय।
नकली पकड़े जात हैं, असली बेसुध सोय।।

बदतर बस्तर



बदतर बस्तर 

कुछ दिन पहले जवानों  की ह्त्या के सन्दर्भ में उमड़े  विचार …

अगुआ चार जवान ला, करके ले लिन जान।
वाह रे निर्दयी नक्सली, मुखिया घलो महान।।

टी वी चेनल मा दिखैं, करतेच एके बात।
छोड़वाये बर लगे हें, बिन रूके दिन रात ।।

छोड़वाये के मायने, होथे का हर प्रान।
कतको बलि चढ़ जात हें, मोरे राज महान।।

काबर एकर खातमा, कर सकैं न कोय।
घड़ियाली आंसू बोहा, पाप अपन सब धोंय।।

बस्तर बदतर होत हे, तर तर खून बोहाय।
पिटे ढोल के बोल हे, अब नई बख्शे जाय।।

बोली सुन सुन फाट गे, हिरदे तोरो ढोल।
नाक सवाया बाढ़थे, कतको खोलौ पोल।।

शहीद होय आत्मा बर शांति के प्रार्थना करत....

फेसबुक तोर अद्भुत लीला

फेसबुक तोर अद्भुत लीला।
'पोस्ट' साल मा कतकोच लीला।।

एको ठन बने पोस्ट ला लील देथे ये थोथना पोथी हा तइसे लागथे....

मंजिल सबकी एक है




परम पिता परमात्मा, संतान आपकी हम।
मंजिल सबकी एक है, पंथ मात्र का भ्रम।।

बंधुत्व विश्व की भावना, रखने कहता धर्म।
मानवता को साथ रख, करता जा तू कर्म।।

जय जोहार....

चंचल मन

चंचल मन 

चंचल मन है दौड़ता, चाल पवन से तेज।
छोड़ें मन की दासता, सद्गुण रखें सहेज।।

वाणी पर काबू नही, यदि कर पाते आप।
काज सहज निपटे नही, होत शोक संताप ।।

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डिजिटल इंडिया

डिजिटल इंडिया राग मा रमे हवै सरकार।
नदिया नरवा मा घलो अब चलही सइकिल यार।।

जनता और मुखिया

जनता और मुखिया 

जनता मुखिया भेजती, मंदिर संसद जान।
झगड़त स्वान बिलार सम, बिरथ जतावत शान।।

जय जोहार ....

सोमवार, 13 जुलाई 2015

होइस बिहान तंहा हम धरेन धियान ..

होइस बिहान तंहा हम धरेन धियान ..


आज अकास ल मूंदे बादर। 

बिन बरसे झन जाबे बादर ।।


देव गनेस सुनौ जी अरजी।

समझावौ बादर ला सरजी।।


नाना किसम किसम जंजाला।

चर्चा चारों मुड़ा घोटाला।।


मरत जात छोटे आरोपी।

बड़का बइठे पहिरे टोपी।।


राजा संग परजा घलो, कहिथें स्वारथ साध।

बलि कतको चढ़ जात हें, किस्सा हवै अगाध।।

व्यापं अबै


व्यापमं व्यापकं व्यापं अबै,

कितनी लंबी है करतूतों की श्रृंखला।

फर्जीवाड़े में दुनिया क्या यूँ ही चलै,

काबिलों का कबाड़ा क्यूं करते भला।

क्यों न सोचते कभी हम हकीकत यही,

'उसके' आगे किसी का गणित न चला।

जय जोहार...सुप्रभात्