वाकई हम फेसबुक व ब्लॉग दोनों से दूर चल दिए थे । चाहे वह छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी की नक्सलियों द्वारा किये गए भीषण नरसंहार की खौफ़नाक घटना हो या शिवधाम "केदारनाथ" का तांडव। मन में विचार उमड़ते घुमड़ते जरूर थे पर हम जड़वत रह अपने कर-अंगुष्ठ व अंगुलिकाओं को कंप्यूटर के कुंजीपटल पर चलने नहीं दिए । नतीजा; विचार उमड़े घुमड़े जरूर पर बरसे नहीं। बड़ी मुश्किल से आज मन कह रहा है प्रायश्चित स्वरूप ही सही, कुछ तो लिख।
फेस बुक अरु ब्लॉग से, हो गए थे तनि दूर।
घटना नर संहार की , बरनि न जाइ हुजूर।।
पहली घटना अपने प्रांत छत्तीसगढ़ की "झीरम घाटी में "नक्सलियों का ताण्डव", और दूसरी घटना देवभूमि उत्तराखंड में प्रकृति प्रकोप या कहें भगवान् भोलेनाथ का कुपित होना …. हजारों की संख्या में जनता का अकाल काल के गाल में समां जाना । विनाश लीला नहीं तो और क्या … केदारनाथ धाम के प्रलयंकारी बाढ़ की विभीषिका का सामना कर बचे लोगों का अपनों को खो देने के दुःख में विव्हल हो विलाप करना …. निरंतर टी वी चेनलों में दिखाया जाना मन को झकझोर देता था। आंखों में आंसू डबडबा जाते थे । घटना के पहले सब कुछ सामान्य । पर बाद में !!!!! एक दूसरे पर कीचड़ उछालना शुरू ("किनका किनके ऊपर" बताने की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई )। इसी परिपेक्ष्य में काफी दिनों पहले इस नाचीज द्वारा अपने उमड़ते विचारों की श्रंखला के अंतर्गत "तवा गरम है सेंक लो रोटी" शीर्षक वाली रचना ब्लॉग मंच पर रखी गयी थी। ऐसी ह्रदय विदारक घटनाओं में आहूत हुई आत्माओं को शत शत नमन व अश्रुपूरित श्रद्धांजलि के साथ झीरम घाटी की घटना के दौरान उपजे मन के विचार:-
"नक्सलियों का ताण्डव"
नकेल नाक नक्सली के कोउ कस नहि पावै
सवा सवा हाथ हर दिन बढ़ जात है
खादी खाकी वर्दीधारी देख नथुना फुलावे
छिप छिप के करत जात प्रान घात है
"अपनों" का खोना परिवार कैसे सहि पावै
गहराई सदमे की नापे न नपात है
बार बार याद करि सिसक सिसक रोवै
आंसुओं की धार रोके रुकत न जात है
कोउ के नयन-नीर लगे घड़ियाली आंसू
कहत कहत "कृत्य निन्द्य" न अघात है
नक्सली समस्या से निजात कैसे देश पावे
कोउ काहे कोई समाधान न सुझात है
…… जय जोहार……