(१)
बुझाने अपने पेट की आग
कमाने के चक्कर में
करती जनता भागम भाग
(२)
गरमी का मौसम, तप रही है धरती
दिमाग ठिकाने रहता नहीं,
क्या अच्छा है क्या बुरा है
जनता जरा भी परवाह नहीं करती
(३)
आदत नहीं सुधरती अपनी, बह रहा है नल से पानी बहने दें
क्यों करे स्विच ऑफ, कमरे की लाईट बुझी हो या जली
पानी की किल्लत होती है, गुल रहती है बिजली,
रात में नींद हराम, दिन में होवे नहीं काम,
कैसी मच जाती है खलबली.
(४)
सुबह सुबह कालोनी के एक घर में सुलग रही थी आग
कागज़ जलने की महक ने हमारी नींद को कहा तू भाग
उठ गए, देखे बाहर, आखिर क्या हो रहा है
पता चला घर के सामने वाले ब्लाक के ऊपर के क्वाटर में
उड़ रहा है धुआं, अन्दर रखे कागजातों का अंतिम संस्कार हो रहा है.
(जैसा कि पता चला उस क्वाटर में कोई रहते नहीं थे)
फैले न यह आग और कहीं, सोच दमकल तुरत बुलाये
घंटे भर की एक्सरसाइज से आखिर आग पे काबू पाए.
(आग लगने का सही सही कारण हमें ज्ञात नहीं हो पाया है.)
(५)
क्या करें इस भीषण गर्मी में सब का चढ़ा रहता है पारा
धीरज धर, जरा सोच समझ कर, करें काम का निपटारा
जय जोहार ................