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सोमवार, 25 अगस्त 2014

पोरा तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

                                                       


         मिल जुल के अब रहई नंदा गे…
         दइ बहिनी ल घर बलई नंदा गे…
      जम्मो बूता काम म फंदा गे…
      अब कहां दिखथे  बंधे बंधाये, ओइसन परेम के डोरी डोरा…
       बने हवे गांव वाले दई बहिनी मन
, मानथें सुग्घर तीजा पोरा……
      दिखत नइये  घर म ठेठरी खुरमी
          अब्बड़ बिटोवै उमस अउ गरमी
     ये फेस बुकेच म जम्मो ल देत बधाई,  
बइला पूजा के फोटू देखावत सब पकवान ल जोरा
बने हवे गांव वाले दई बहिनी मन,  मानथें सुग्घर तीजा पोरा…
                                              जय जोहार ……
पोरा तिहार के  गाड़ा गाड़ा बधाई…
 (चित्र गूगल से साभार)

रविवार, 24 अगस्त 2014

पर लगे अनाड़ी

पर लगे अनाड़ी

 क्रिकेट खेल के  बल पर होते कइयों मालामाल.
बात समझ नहि  आवे क्यों ये बाहर होत हलाल.
क्यों बाहर होत हलाल, खुद समझें ये खिलाड़ी
कहलाते हैं शेर पर   लगे अनाड़ी
हों पारंगत बॉलिंग मे चले भी इनका बेट.
भेजें इन्हे अभ्यास को बाहर, भारतीय बोर्ड क्रिकेट...

लाज लिहाज


 लाज लिहाज

अनुशासन की डोर हम कबसे दिये हैं ढील..
घर की इज़्जत आबरू कौन रहा है लील.
कौन रहा है लील, जानत  जग सारा.
आधुनिकता में डूब चला लाज लिहाज बेचारा.
करत नार का चीर हरण जंह तंह दुशासन.
घर की लाज बचाओ रख स्वअनुशासन..

गठबंधन

गठबंधन
गठबंधन की गांठ मे, रहा न कोई दम.
देख समय की चाल को, छूट जात हरदम.
छूट जात हरदम, नेता बदले पाला
राजनीति का धर्म यह अजब निराला
जनसेवा के नाम लूटते, नहि कोई बंधन
ढीली जिसकी गांठ वह कैसा गठबंधन..
जय जोहार.....

रविवार, 10 अगस्त 2014

मौसम, उमस व मच्छर

मौसम, उमस व मच्छर

मौसम पर डाले गये पोस्ट को कब डीलिट मिल गया(एक्चुअली गलती से डीलिट हो गया) समझ नही पाया...सोच रहा हूं वक्त न करूं जाया ...फिर से लिख मारूं भाया:-
मौसम का बदला था तेवर
इक दोपहरी बरसा जमकर
बादल ने दिखलाया ताव
भले बरसा वह घंटा पाव
(मात्र पंद्रह मिनट)

सूरज निकला गरमी लेकर
डूब चला वह ऊमस देकर
 

चंद घंटे बदरा छितराये
चमक चांद चांदनि इतराये
चला न इनका यूं इतराना
पुनि नभ बादल का छा जाना
उमस प्रभाव भये बड़ व्याकुल
तन बैठन मच्छर अति आकुल
मम शरीर खल कीन्ह चढ़ाई
रक्तपान करि तुरतहि जाई
बार बार यहि कृत्य ये करते
कछु भग जात मारे कछु मरते
बार बार करुं सोच बिचारा
कब मिलिहैं इनसे छुटकारा
लगा शयन-पट मच्छरदानी
तव सो पायेंव नींद सुहानी
मच्छरदानि लगाइये करें न म़च्छर तंग
बात हमेशा मानिये नहि होगी निद्रा भंग.
जय जोहार...

सम्प्रदाय बनाम धर्म

 सम्प्रदाय बनाम धर्म
केवल पल भर के लिये, मन मे लायें भाव.
नाम 'धरम' हम क्यूं करें, दिल में गहरा घाव.
बात हमेशा मानिये, संप्रदाय नहि धर्म.
जीव जगत मे भोगता, करता जैसा कर्म.


व्यर्थ कट्टर पंथवाद को बढ़ावा देना छोड़ प्रत्येक संप्रदाय की अच्छाइयों का निचोड़ निकाल सत्कर्मों की ओर बढ़ें. हां भई सैकड़ों समाचार चैनल अपने व्यवयाय की वृद्धि के लिये, ऊपर से विरोधी अंदर से मित्र का संबंध रखने वालों, समाधान के बदले समस्या का स्वरूप विकराल करने वालों को बिठाना और स्थिति यहां तक पहुंचा देना कि बस अब दोनो मे वाक युद्ध से आगे हस्त शस्त्र संग्राम न चालू हो जाय ऐसा प्रतीत होने लगे, आवश्यक समझते हों तो बात अलग है.
 

लगती प्रश्नों की झड़ी.
नहि मिलती उत्तर की कड़ी.
एक से पूछा जाता उत्तर
दूजा सोच से पाता इत्तर.
हो जाता वह भी शुरू
इतने से काम न चलता गुरू
चालू हो जाते सब के सब
मिल जातीं आवाजें,
कछु समझ न आये
कहता प्रश्नकर्ता नहि समय है अब....

कोई ये क्यूं नही समझता समझाता कि बिना किसी को नुकसान पहुंचाये, अपने अपने पथ पर चलें क्योंकि दावे के साथ कहा जा सकता है कि धर्म तो केवल एक है और वह है, इंसानियत, मानव धर्म...
जय जोहार...