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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

घाटे की अर्थ व्यवस्था

घाटे की अर्थ व्यवस्था 
          जहां देखिये घाटे की अर्थ-व्यवस्था। प्रत्येक समाज की अपनी सामाजिक पत्रिका छपती होगी। हमारे समाज में इसका बीड़ा एक ही व्यक्ति द्वारा मुख्य संपादक/प्रकाशक/मुद्रक सभी की  भूमिका निभाते हुए उठाया गया है जैसा कि "केसर ज्योति" नाम की त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन नियमित रूप से 11 वर्षों से किया जा रहा है। पत्रिका किसी प्रांत तक सीमित नहीं है। हर प्रांत में बसे स्वजातीय बंधुओं के पास पत्रिका पहुंचाने का प्रयास किया जाता रहा है। वैसे पत्रिका को छत्तीसगढ़ प्रांत से अच्छा प्रतिसाद मिला है। मगर बड़े दुःख की बात है कि प्रधान सम्पादक महोदय सदैव यही रोना रोते रहते हैं कि कभी 4.5 लाख  रुपये के घाटे पर चल रहा है पत्रिका के सम्पादन का कार्य तो कभी 6.5 लाख रूपये के घाटे पर। यह बात समझ में नहीं आई  कि वास्तव में यदि इतना घाटा  हुआ है तो 11 वें वर्ष का सफ़र कैसे जारी रख पाई है यह पत्रिका। इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी कार्य को अकेले सम्पादित करने पर कठिनाई तो आएगी ही। अब समाज में हर कोई चाहता है कि पत्रिका में उसका नाम अवश्य दिखे। केवल उसका ही नहीं पूरे परिवार का नाम दिखे। उसकी रचनाओं को प्रकाशित किया जाय। जब सहयोग के लिए निवेदन किया जाता है तब आना कानी। सदस्यता शुल्क दे देने मात्र से यह समझा जाता है कि सम्पादक उसकी हर बात माने।
           अभी अभी प्रधान सम्पादक महोदय से हुई मुलाक़ात ने मुझे कुछ बातें लिखने पर मजबूर कर दिया है। कोई व्यक्ति क्या सचमुच इतना घाटा सहकर अपना कारोबार जारी रख सकता है विशेष रूप से आय का और कोई जरिया न हो तब।  दूसरी बात पिछले साल तक इस क्षेत्र की जनता भरपूर सहयोग करती थी वह इस समय प्रधान सम्पादक महोदय से कटी कटी सी क्यों है? क्या उनके दवारा अपनाया गया सिद्धांत "घाटे की अर्थ-व्यवस्था" इसका कारण है या और कुछ। संपादक महोदय से पूछने पर कहा जाता है कि वे स्वतः हत्प्रभ हैं। "दीपावली विशेषांक" के नाम पर विज्ञापन संकलन (याने विज्ञापन के लिए राशि संकलन) हेतु सम्पादक महोदय जी विगत डेढ़ महीनों से यात्रा पर हैं। दुर्ग उनका आखरी पड़ाव था। आज ही अपनी इंदौर नगरी के लिए रवाना हुए हैं। हमने भी उनसे कह दिया कि जब पूरा देश "घाटे की अर्थ-व्यवस्था" पर चलाया जा सकता है तो आपकी पत्रिका क्यों नहीं चल सकती।
जय जोहार .......

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

शरद पूर्णिमा की बहुत बहुत बधाई

             शरद पूर्णिमा की बहुत   
                बहुत बधाई
जय जोहार ..... 

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

वे क्या मल्टीप्लाइड बाई टू थे

            क्या मानव द्वारा ईश्वर पूजा, ध्यान, योग, या कहें आज की तारीख में धर्मग्रंथों में लिखे उपदेश निहायत ही आज के जीवन में अनुपयोगी हैं? विजयादशमी के दिन चर्चा चल रही थी; क्या सचमुच रावण के दस शीश थे? और हाथ कान आँख याने मानव के कंधे से जुड़े व कंधे के ऊपर के अंग जो 2-2 होते हैं, वे क्या मल्टीप्लाइड बाई टू थे? आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा था कि कैसे देवियों/देवताओं की कभी अष्ट भुजाएं कभी सहस्त्र भुजाएं हो सकती हैं? कहा जा रहा था सब काल्पनिक है। यह भी हास्य का विषय बना हुआ था कि कैसे किसी एक व्यक्ति के सैकड़ों/हजारों बच्चे हो सकते हैं। मेरे मन में भी ऐसे प्रश्नों का उत्तर सूझ नहीं रहा है क्योंकि हक़ीक़त में हमने  किसी भी धर्मग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया है  किन्तु एक बात बार बार मन-मस्तिष्क को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि उस समय मनुष्य अपनी तप  साधना से, योग साधना से निश्चय ही उर्जावान रहा होगा। दीर्घ-जीवी रहा होगा। जहां तक उनकी संतानों की संख्या का प्रश्न है यह भी अविश्वसनीय नही हो सकता जैसा कि अभी तक किसी किसी घर में दर्जन भर सगे भाई-बहन हो सकते हैं तो औसत आयु के हिसाब से प्राचीन युगों में शत व सहस्त्र में संख्या हो सकती है। वैसे प्रवचनों में इन सबकी व्याख्या की जाती है कि इन देवी देवताओं के अंग हों या इनकी संताने, रानियाँ, पटरानियाँ,  ये सब ज्ञान, वेद, उपनिषद ही हैं अथवा इनकी शाखाएं हैं।   
             कर्मकांड को भी एक पाखण्ड कहा जाता है। वैसे इसकी आड़ में आज के तथाकथित ईश्वर-अभिकर्ताओं द्वारा लोगों को भ्रमित कर पैसे वसूलना, चमत्कारों का प्रदर्शन कर अनुयायी बनाकर  कुकर्म करना निश्चय ही दंडात्मक है।  मैं, चूंकि अपने मन की संतुष्टि के लिए ही क्यों न हों; थोड़ी बहुत पूजा-पाठ सम्पादित कर लेता हूँ। पता नहीं इसके बिना मन को सुकून नहीं मिलता। लेकिन दिन रात एक ही प्रश्न उठते रहता है, क्या प्राचीन धर्म ग्रन्थ उपनिषेद सब व्यर्थ हैं? क्या पूजा-पाठ सब व्यर्थ है?  बस इस बात का उत्तर मेरे समस्त मित्रों से प्राप्त होने की आशा में ....
जय जोहार  ........
              

"शून्यं चाशून्यं च"

                             शून्यं चाशून्यं च 

            माँ भगवती की अराधना के अभी अभी बीते वे नौ दिन थे। श्रद्धा, विश्वास, आस्था के सम्पूर्ण दर्शन कराने वाले ये नौ दिन। एक तरफ माँ शक्ति के उपासक की उपासना, दूसरी और "आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी" की अवधारणा के साथ पहाड़ावाली माँ बमलेश्वरी के दर्शन की लालसा लिए मीलों पैदल चलने वालों की श्रद्धा व आस्था। माँ भगवती भक्तों को अपने किसी न किसी स्वरूप का दर्शन अवश्य कराती है। लगता है हमने भी माँ के विभिन्न स्वरूपों में से एक "शून्य" स्वरुप का ब्लॉग के माध्यम से दर्शन किया। मन को रोक नहीं पाए। ध्यान आया माँ भवानी की नवरात्रि में स्तुति के लिए पढ़े जाने वाले श्लोकों का। ये श्लोक पुस्तक "दुर्गा शप्तसती" में उपलब्ध हैं। "श्रीदेव्यथर्वशीर्षम" स्तोत्र में माँ भगवती अपने स्वरूपों का वर्णन करती हैं। उन स्तोत्रों में एक है "अहम् ब्रम्हस्वरूपिणी। मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत।शून्यं चाशून्यं च।" माँ कहती हैं; " मैं ब्रह्मस्वरूप हूँ। मुझसे प्रकृति-पुरुषात्मक सद्रूप और अस्द्रूप जगत उत्पन्न हुआ।"

            हमने देखा अपने ब्लॉग में पूर्व में लिखे कुछ पोस्ट को। पाया की माँ भगवती "शून्य" रूप में न केवल टिपण्णी कॉलम में बल्कि पोस्ट देखने वालों की संख्या वाले कॉलम में भी पधारी हुई हैं।  माँ भगवती को सादर साष्टांग प्रणाम!
मेरे समस्त ब्लॉगर मित्रों को अमृत बरसाने वाला पर्व "शरद पूर्णिमा" की अग्रिम बधाई सहित .......
जय जोहार ...... 

 

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

दशहरे की बहुत बहुत बधाई


हन - दुर्गुणों का करें 
क्ति का संचार हो 
      "रि" रे जन जन की पीड़ा
  राष्ट्र-हित ही सार हो  
दशहरे की बहुत बहुत बधाई

जय जोहार...........

"विजयादशमी" की बहुत बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई


 


समस्त मित्रों को दुराचार पर सदाचार की विजय का प्रतीक 

पर्व "विजयादशमी" की बहुत बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई 
जय जोहार----------

कद रावन का बढ़ता जाय


मन का रावन मारें पहले
पुतला बाद में लियो जलाय
 देखत जग हर साल नज़ारा 
 कद रावन का बढ़ता जाय
रावन  मारन रावन  आवें 
रामचंद की जय बुलवाय
 था रावन  पंडित बड़ ग्यानी 
   नीत कुनीत का गुर लछमन को 
 आखिर क्षण में दियो बताय
  कलजुग-रावण राज करत हैं 
   मति जनता का नित भरमाय
   बिनती "सूरज" की जन जन से
  ताक़त अपनी दियो बताय
   करें न घोटाला होय न हवाला
     अरु गरीब का छिने न निवाला  
      मार काट सब बंद होइ जाय
......जय जोहार 
विजयादशमी के पावन पर्व में आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं  

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

प्रथमं शैलपुत्री

"ॐ नमश्चंडिकायै"
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी 
तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्मांडेति चतुर्थकं 
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीतिच  
सप्तमं कालरात्रेति महागौरीतिचाष्टमं 
नवमं सिद्धिदात्रीच नवदुर्गा प्रकीर्तिता  
उक्तान्येतानि नामानि ब्रहमणैव महात्मना 
माँ शैलपुत्री सबका कल्याण करे  
जय जोहार।।।।।।।।
    
" ॐ नमश्चंडिकायै "
 "ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी 
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा सुधा नमोस्तुते" 
माँ भगवती सबकी मनोकामना पूरी करें
 जय जोहार 

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

"नवरात्रि " की आप सभी मित्रों को बहुत बहुत बधाई."

jay maa durge
"देवी प्रपन्नार्ति हरे प्रसीद प्रसीद मातर्रजगतोखिलस्य 
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमेश्वरी देवि चराचरस्य "
"विश्व शान्ति  की कामना  सहित "नवरात्रि " की आप सभी मित्रों को बहुत बहुत बधाई." 
              जय जोहार....................
 

इत उत चित दौड़ाइ बिनु


"साहित्य का "सा" नहीं जानू 
अपने को कवि कैसे मानू"
      इस बात का आभास अंतरजाल की इस आभासी दुनिया में प्रशंसकों की प्रशंसा के बीच खोये रहने के कारण नहीं हो पाया था। कितनी भी उम्र हम पार कर लें किसी न किसी रूप में "गुरु"/मार्ग दर्शक की आवश्यकता पड़ती है। धन्य हैं अरुण निगम भैया। कुछ ऐसे टिप्स दिए कि अपने आप को निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखने से नहीं रोक पा रहा हूँ। साथ ही माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के दौरान हिंदी व्याकरण में बताये गए सूत्र की भी पुनरावृत्ति हो गई।
शबद संयोजन मात्रा कविता का आधार।
याद न आवे सूत्र यदि, रचना सब बेकार।।
सूत्र संग यह होय, सही भाव प्रकटीकरन।
समझ सके हर कोय, इत उत चित दौड़ाइ बिनु।।
जय जोहार.............

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

घुट घुट जन जो जी रहा

देखते पढ़ते हर पोस्ट चेहरा-ए-किताब में
उमड़ते घुमड़ते भावों को, उकेरते हैं ख़्वाब में
राजनीति से नीति हटी, बच गया केवल राज 
घुट घुट जन जो जी रहा रास न आया काज 
मंहगाई, कितनी बढ़ रही, कौन हरे गरीब की पीड़ा
पिशाच "भ्रष्टाचार" हनन का का कौन उठावेगा बीड़ा
"शक्ति"-साधना दिवस "नवरात्रि" होगी सोलह (अक्टोबर) से प्रारम्भ
सोचूं,  हत होगा "भ्रष्टाचार" भी, संग संग शुम्भ-निशुम्भ
नौ दिन का त्यौहार "नवरात्रि" रख संयम सभी मनावें 
विश्व शान्ति की करें कामना, माँ को श्रद्धा सुमन चढ़ावें 
नवरात्रि की अग्रिम बधाई सहित
.............जय जोहार।।।।

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

साबुन अउ शेम्पू लगा के नहाये

साबुन अउ शेम्पू लगा के नहाये 
घूमे एती ओती टुरी चूंदी ला छरियाये
तभो ले चूंदी अरझैच नहीं
गोठियावै काखरो मेरन, कोनो ओरझेच नहीं
काबर के मुह कान जम्मो रथे गमछा भीतर
गोठियाने वाला सोचथे, मारत हौं तीतर  
करलई हे इही बात के ददा अउ दाई ला
कउन आय बहिनी नइ चिन्हावै भाई ला
संगे संग काम करथें टुरी-टूरा तहां हो जथे पियार
दाई ददा ल कथें अपन मन ल मार डार
बदल गे हे अब के सब रीति रिवाज
झुका देथे माँ बाप ल इंखर मिजाज
दुनो के परिवार माँ यदि माड़ जथे जोंगा
बाजे लगथे गुदुम बाजा(आज के डीजे), लमा के चोंगा
अउ बिगड़ गे बात, तभो इन ल नई ये कौनो बात के फिकर 
जुग बदल गे हे कायच कर लेबे, अउ कतेक करबे,
अइसन बात के जिकर.......
जय जोहार............... 
एती-ओती = इधर-उधर। चुंदी = बाल, केश। छारियाये=बिखेरे। अरझैच नहीं= बाल उलझता नहीं।
गोठियावै काखरो मेरन = किसी के साथ भी बात कर रहे हों। कोनो ओरझेच नही = इन से कोई नही लगता(उलझता). काबर के = क्योंकि। मुह कान जम्मो = मुह कान सभी (पूरा चेहरा). गमझा = साफा या स्कार्फ। मारत हौं तीतर = याने तीतर मार रहा हूँ। करलई हे = अफ़सोस है। ददा दाई = माँ बाप। नई चिन्हावै = पहचान नहीं आते। टुरी-टुरा = लड़का लड़की। माड़ जथे जोंगा = बात बन जाती है। कायच कर लेबे = क्या कर सकते हैं। कतेक कर लेबे = कितना कर सकते हैं। 
अइसन बात के = इस प्रकार की बातों का।