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रविवार, 15 नवंबर 2009

एक ठन जबरदस्त बीमारी

कोंजनी का बीमारी हा मोला जकड ले हे के छोडे के नाव नई लेथे। अपने च अपन माँ भुन्भुनावत रथौं। काहीं लेख ला पढ़हूँ चाहे किताब ला पढ़हूँ त बूजा हा सुरता माँ नई रहय। भुला जाथौं। कोनो भी विषय ला पढ़े के बाद ओखर बर तुरते विचार उपजथे। ओतके जुअर लिख ले त ठीक हे नई त आघू पाठ पीछू सपाट। कुल मिला के एला कथें भुलाए के बीमारी। अब का बतावं डागदर (अभी भी गवई माँ एही उच्चारन करथें उहाँ के मन, देखौ भाई डॉग डर याने कुकुर डेरा गे झन समझ लहू ) मेरन अपन इलाज बर गेवं। देख ताक के पूछिस कब ले हे ये बीमारी तोला। अब का बताओं ओतका जुवर सर्किट फ्यूज होगे दिमाग के उल्टा महि पूछे लगेवं डागडर ला "कउन बीमारी डागदर साहब। डागदर घलो भौंचक रहिगे। अब काय करबे ला इलाज होगे हे जी। अब बिहनिया ले जाय बर हे बेलासपुर। हमर समाज के राज्य स्तरीय सम्मलेन हावे। उठ पाहू के नही कहिके डेरावत हौं। अलारम हे न मोबाइल माँ। ओखरे आसरा माँ एला पोस्ट करे बर जागत हौं। अब जाथौं सोहौं। जम्मो झन ला सुग्घर रात अउ जय जोहार।

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