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बुधवार, 17 नवंबर 2010

तुलसी विवाह/देव-उठनी अकादसी के गाड़ा गाड़ा बधाई

तुलसी विवाह/देव-उठनी अकादसी के गाड़ा गाड़ा बधाई 
कार्तिक मास की एकादशी तिथि, देव उठनी एकादशी (छोटी दीपावली) पौराणिक कथाओं में "देव" शयन से उठते हैं, मंगल कार्य,   खासकर "विवाह" संस्कार इस एकादशी के पश्चात मूहूर्त देखकर  सम्पादित किया जा सकता है. एक और प्रसंग का बोध होता है "वृंदा" का राक्षस जालंधर से विवाह, वृंदा के सतीत्व के बल पर अमरत्व प्राप्त कर उसके द्वारा चहुँ ओर भय हाहाकार का वातावरण उत्पन्न करना, भगवान विष्णु द्वारा  जालंधर वध व 'वृंदा/''तुलसी' के समक्ष जालंधर के रूप में उपस्थित होना, तुलसी से विवाह, तत्पश्चात श्राप से पत्थर बनना और इस युग में तुलसी के नीचे पत्थर की गोल आकृति बन तुलसी के नीचे रखा जाना और शालिग्राम के रूप में पूजा जाना. 
इस त्यौहार को व्रत के साथ मनाने का अपना अलग महत्त्व है. व्रत का तात्पर्य एक प्रकार की प्रतिज्ञा से है जिसके अंतर्गत मानव कोई भी असंयमित/दुष्कर्म नहीं करने का प्रण लेता है. आहार न लेना, ताकि  तामसिक विचार  उत्पन्न न  हो, ऋत्विक फसल गन्ने का  मंडप बना  तुलसी विवाह का आयोजन, नई फसल, शाक सब्जी फल (सभी जो इस ऋतु में ही पहले प्राप्त होती थीं) का पूजन इत्यादि कर यह त्यौहार मनाया जाता है.  इस दिन एक और ख़ास बात होती थी कि रात में अपने घर के टूटे टोकने, और भी बांस के बने टूटे सूप, बेकार लकड़ियाँ (इसी को छितका कहते हैं.) आदि जलाई जाती थी  और ठण्ड भगाई जाती थी. हमारे प्रांत की बोली में इसीलिए इसे "छितका अकादसी" कहा जाता है.
वस्तुतः किसी भी व्रत या त्यौहार का एक निश्चित तिथि में मनाया जाना मेरे मतानुसार केवल पौराणिक कथा का अनुसरण नही होना चाहिए. कुछ न कुछ प्रकृति में होने वाले परिवर्तन  और मानवीय आचरण/स्वास्थ्य में परिवर्तन को भी आधार मानकर मनाया जाता होगा. क्वार महीने से शीतलता का आभास होने लगता था. कार्तिक में ठण्ड किशोरावस्था में पहुँच मार्गशीर्ष, पौष महीने में अपने यौवन से  सभी को मजा चखाता था.  वर्तमान में कार्तिक में भी गर्मी सता रही है.  परम्परा अभी भी कायम है. अच्छा लगता है.  सभी ब्लॉगर बंधुओं को इस पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाएं. 
जय जोहार..............