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शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

दीपावली मंगलकारी योग

नजदीक आती है दीपावली
 मच जाती है सबके जेबों में खलबली
 एक वर्ग समाज का मनाता है धन-तेरस
 दूसरे के लिए होता है धन-तरस देखता हूँ बाजार का परिदृश्य
 शुरू होता है दुकानों की उस कतार से 
जहाँ बैठे होते हैं बताने वाले हम सबका भविष्य
 घंटा मिनट सेकण्ड गिन 
कहते हैं फलां - फलां दिन 
कर लो खरीदारी योग है मंगलकारी
 नक्षत्र है पुष्य 
मंगलकारी योग किनके लिए है बना 
 ज्योतिषियों ने त्योहारों को ही क्यों चुना 
व्यवसाइयों ने सोचा आ रहा त्यौहार बाजार ठंडा है
कौन लेगा इससे उबार इसका क्या फंडा है 
सूझी इन्हे एक तरकीब, सोचा आयेंगे कब काम 
 ये ज्योतिष मनीषी भविष्य वक्ता
बताके जो दूसरों का भविष्य 
करते अपनी अर्थ व्यवस्था पुख्ता
पहुचते  इनके दरबार ये निराश व्यवसायी 
लगाते इनसे गुहार, निकलवाते मुहूरत फलदायी
कर अर्पित दक्षिणा इन्हे करते इनकी जेबें भारी
बनता पहला योग ज्योतिषियों का मंगलकारी 
पर चले न इतने से ही काम 
जब तक जान न ले मुहूर्त जनता आम 
अतएव जाता यह संदेश मीडिया धाम है
\मंगलकारी योग दूसरा बनता मीडिया के नाम है
डेली न्यूज़ पेपर में छपते ही
 बाजार में बढती है भीड़ भारी
जनता जनार्दन लुटावे  पैसा 
कर धन  संचय व्यापारी,
स्वयोग बनावे मंगलकारी 
धन- तरस वर्ग के लोगों , सोच में न पड़
जी न चुरा श्रम से समय नही है यह धन-तरस का
गर कर ले कुछ काम उठा ले फायदा
 यह समय है धन बरस का 
जलेंगे दिए घर  घर में, बंद होगी सिसकारी 
होगा यह पावन पर्व सबके लिए मंगलकारी 

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