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शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

"गाँव का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध"

कहावतों को चरितार्थ करने के लिए हमारा देश अग्रणी है. मसलन "गाँव का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध" जरा गौर फरमाइए आज के अखबार में छपी खबर "देश के संस्थान ने की उपेक्षा, सर्न (यूरोपीय ओर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लिअर रिसर्च (सर्न) ने सराहा.  अफ़सोस होता है देश की प्रतिभा की उपेक्षा देश में ही होने पर. केरल के छात्र सी वी मिथुन को बहुत बहुत बधाई. हमने सोचा इस अंतरजाल में इस समाचार को प्रकाशित किया होगा मगर गायब है.  खैर इनकी उपलब्धि क्या है संक्षिप्त में प्रस्तुत कर देते हैं; 
"     मिथुन ने वैज्ञानिक सिद्धांत के जरिये दावा किया था कि बिग बैंग प्रयोग के दौरान जब प्रोटॉन टकरायेंगे तो इससे ब्लेक होल नहीं बनेंगे और इसलिए इससे दुनिया को कोई खतरा नहीं है. यह बालक मलारपुरम जिले में स्थित मजलिस आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज  में  बीएससी प्रथम वर्ष  का छात्र है.  मिथुन ने अपने प्रयोग के दौरान  कणों के टकराने के कारण निकलने वाली किरणों से पैदा हुई उर्जा की तुलना सूर्य किरणों की ऊर्जा से की. मिथुन का सिद्धांत था कि सूर्य किरणों से निकलने वाली उर्जा सर्न के लार्ज हेड्रोन  कोलाइडर (एल एच सी) में कण के टकराने से निकलने वाली किरणों के कारण पैदा हुई ऊर्जा से कहीं अधिक ज्यादा होती है.  मिथुन ने बताया कि उसने करीब छः महीने पहले अपने सिद्धांत को इ मेल के जरिये बेंगलुरु स्थित आईआईएससी के प्रोफ़ेसर एम्. विजयन को भेजा था. विजयन ने इसे इंस्टिट्यूट के हाई एनर्जी फिजिक्स विभाग को भेज दिया, लेकिन मिथुन को संस्थान की ओर से कोई जवाब नहीं मिला. मिथुन ने दो महीने के इन्तेजार के बाद अपने सिद्धांत को सीधे सर्न को भेजा और वहाँ के परमाणु भौतिकविद अब्दुल गुरडु की तरफ से तुरंत जवाब भी आ गया. मिथुन को सर्न की ओर से न सिर्फ सराहना मिली बल्कि अब उसे बिग बैंग प्रयोग की ताजा जानकारियाँ भी इ मेल और मोबाइल के जरिये मिल रही है"
हमारे देश के वैज्ञानिकों को ऐसे छात्रों को प्रोत्साहित करना चाहिए 
जय जोहार...........

1 टिप्पणी:

Anil Pusadkar ने कहा…

यही तो दुर्भाग्य है इस देश का।