आँचल
माँ का आँचल ढाँकता, बेटे का हर दोष।
कितनी भी हो गलतियाँ, उपजे कभी न रोष।।
उपजे कभी न रोष, प्रेम की सरिता बहती।
ममता अपरंपार, कष्ट वह सब कुछ सहती।।
उपजे कभी न रोष, प्रेम की सरिता बहती।
ममता अपरंपार, कष्ट वह सब कुछ सहती।।
वृद्ध आश्रम आज, पुकारत कहता आ चल।
क्यों जाते हम भूल, मातृ ममता का आँचल।।
जय जोहार....
सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)