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शनिवार, 16 जनवरी 2010

आज अखबारी खबर जारी.......

पता नहीं कल मेरे मष्तिष्क में साइकिल के बारे में विचार  घुमड़ रहा था. क्यों हम आज कल इतने आलसी होते जा रहे हैं. यह बात मेरे दिमाग में उठ रहे दर्द के कारण और रह रह के उठ रही है. सुबह अखबार पढ़ा छोटी सी बात शीर्षक के अंतर्गत इसके बारे में लिखा पाया. सोचा वाह संपादक जी टेलीपेथी का कमाल आपने हमारी बात जान ली और छाप दिया
"भारत में साइकिल" .......लीजिये हम भी अपने ब्लोग्वा में उतार दिए देते हैं:
"बढ़ते वैश्विक तापमान और इंधन के घटते भंडारों की वजह से दुनिया में भले ही साइकिल को लेकर जागरूकता बढ़ रही, लेकिन हम इससे पीछा छुडाते जा रहे हैं. वेबसाइट आस्कमैन डोट कॉम ने हाल ही में साइकिल पसंद करने वाले दुनिया के जिन दस शहरों की सूची जारी की है, उनमे भारत का एक भी शहर शामिल नहीं है. दिक्कत यह है कि हमारे  यहाँ साइकिल को स्टेटस से जोड़ा जाता है और इसीलिए न तो साइकिल को सम्मान मिल पाता है और न साइकिल चालकों को. यही वजह है कि साइकिल चालकों के लिए सड़कों पर अलग ट्रेक शायद ही किसी भारतीय शहर में नजर आयेंगे." ........ है न पते कि बात.  
भैया कक्षा आठवी तक तो खूब चलाये. यहाँ तक  कि नौकरी में भी पहले चलाते रहे.  अब हांफ जात हैं. जे बात हौ अभी. ... अब तो चोर उचक्के (चार चके )  में ही आवे जावे को मन होवत रहो. औ जेइ आदत बदले के खातिर दिमाग (घुटना) में दर्द उठ जात हौ.    
चोर उचक्के लिखने का एक कारण है. हमारे यहाँ एक  सहकर्मी के परिवार सहित आगमन हुआ. वे थे तो बंगाली 
बातों बातों में ही उन्होंने पूछा "अरे साहेब चोर चाका कोब आयगा आपके घोर" मेरे सहपाठी भी उस समय बैठे हुए थे उनसे रहा नहीं गया मजाक में बोल बैठे "दादा क्या बोले आप? ....."चोर उचक्का" हम लोग खूब हँसे......



2 टिप्‍पणियां:

kavita verma ने कहा…

wah baat majak ki aur arth gahre.sahi hai ye char pahiye indhan bhandar ke chor-uchkke hi to hai.

Udan Tashtari ने कहा…

."चोर उचक्का" हा हा!! चार चक्का!!