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रविवार, 31 जनवरी 2010

आये नाग न पूजे, भिम्भोरा पूजे जाय


जम्मो संगवारी मन ल मोर जय जोहार. मैं हा ऊपर मा लिखे मोर राज के मिठ बोली के हाना (कहावत) ल एखर खातिर लिखे हंव के हमन घर मा आये नाग देवता के पूजा करेबर छोड़ के भिम्भोरा ल पूजे बर जाथन .  कुदरत हा अपन खूबसूरती ल कहाँ नई दे हे. जरूरत हे ओला सम्हाल के रखे के. हमर  देश माँ सबले बढ़िया सरग (स्वर्ग) उत्तर भारत माँ  हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तरांचल,  पूरब  मा दार्जिलिंग, सिक्किम, पश्चिम मा मुंबई अउ  गोवा  के बीच  सतारा उतर  के जाथें  जेला महाबलेश्वर कथें, अउ खंडाला माथेरान घलो, दक्खिन मा ऊटी,  कोडेकनाल  ये सब  बरफ वाले  पहाड़ अउ उहाँ के सुग्घर हरियर हरियर पेड़ पौधा से सजे कुदरत ल मानथन.  बात गलत नई ये. फेर इहाँ जाय बर सबके टेंटुआ मा मनीराम होना चाही. "चाहे वो दार्जिलिंग होवे या सिक्किम, काश्मीर होवे या ऊटी" लगत रथे सबोला जाँव येती ओती.  अउ एक दू जघा अउ  हे जेमा शामिल हे माउंट आबू.  ये सब जघा के बारे माँ सुन के मन ल नई कर सकन काबू.       लेकिन   हमरो छत्तीसगढ़ मा कुदरती सुन्दरता के कमी नई ये.                
हमन अपन समाज के दुरुग भिलाई के समिति "छत्तीसगढ़ी केशरवानी सेवा समिति दुरुग-भिलाई " बनाए हन. अब समिति डहर ले सोचेन के हमन तो येती ओती घूम फिर के अपन मन बहला लेथन. बपरी   घर गोसैनिन मन (अरे आजकल घर देखैया तो हवेच, घर बाहिर दुनो जघा देखैया घलो हे,  याने नौकरी वाले घलो हावे )   काम बूता मा बिपतियाये रथें. ओहू मन ल लागथे  के कभू बाहिर घूमे फिरे बर जाना चाही. अउ इही हा बने समाज के अउ परिवार संग जाए जाय त झन पूछ ओखर मजा ला. बीते साल ले हमन इही सब ला गुन के पिकनिक मनाये बर बाहिर जाए बर धरे हन. पउर साल राजिम चंपारन  गे रेहेन. घटा रानी तभो ले बांच गे रहिसे.  शिवरीनारायण, मैनपाट,  अचानकमार जंगल, बार नवापारा अभ्यारण, अउ सब के मन मोहैया जगदलपुर के चित्रकूट, तीरथगढ  झरना अउ कई स्थान हे जी जिहां प्रकृति हा ये धरती ला कतेक सुग्घर सजाये हे अपन हरियाली से, अउ नाना प्रकार के आकृति वाले झरना, पहाड़ चट्टान, जंगल के जानवर अउ कई जीव जंतु से . अच्छा रद्दा घलो कम घुमावदार नई ये चाहे आप केसकाल घाटी जाव चाहे चिल्फी घाटी जाव. ऐसे लगे  लगथे    जैसे हमन हिमाचल प्रदेश के घाटी माँ आ गे हन. ऐतिहासिक  अउ पौराणिक धार्मिक स्थान माँ शिवरीनारायण, रतनपुर, खैरागढ़, डोंगरगढ़, सकती, रायगढ़ , सारंगढ़, कवर्धा, भोरमदेव राजिम बेलासपुर के ही तालागांव मल्हार अउ कई ठन जघा हवे. एकदम से सुरता नई आवै. तव ए दारी कवर्धा, भोरम देव,  सरोदा दादर के चोटी, सूपखार जाए के पोरोगराम बनिस. वैसे ये सब स्थान के बारे माँ  हमर समाज के भूतपूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री अश्विनी केशरवानी जी हा शायद अपन ब्लॉग माँ जिक्र करे हे. अब पोरोगराम तो बन गे रहिसे. इतवार के दिन तय होय रहिसे. आधा ग्रुप ला हमर  घर  अउ आधा ला हमर एक झन अउ सक्रिय मयारू संगवारी घर  जुरियाना  रहिसे. शनीच्चर रात धुकपुकी लगे रहाय काबर के  सवा सौ - डेढ़ सौ किलोमीटर के यात्रा करना रहै. बिहनिया ले मोटर ला आना रहिसे. कैसनो करके सात बजे रवाना होए के फिक्स होए रहिसे.  ३२ सीटर मोटर के बेवस्था करे रेहेन. भिनसरहा ले उठे बर परिस. हमर तो नींद इसने खुल गे. जेखर नींद नई खुले रहिसे ओमन  ल अलारम हा जगाईस. जल्दी जल्दी नित्य क्रिया से निपट के नहा धो के तैयार होएन.   जाड़ कम नई होए रहिसे. कोहरा छाये रहै. कैसनो करके जुरियायेन. हमर घर ले रवाना होए के बाद दूसर पॉइंट कादंबरी नगर दुरुग  गेन. उहें ले बांचे खोंचे मन सकलाएन.  लम्बा दूरी के जात्रा मा देखे बर जाए वाले जघा मा बनाये खाए के  टाइम नई रहै. तेखरे पाय के घर घर ले कुछु कांही बना बना के धर ले रेहेन.  गाडी रवाना होए के पहिली बने बने रेंगे गाड़ी हा, रद्द मा कांही अड़चन झन आवै कहिके देवी देवता ल संउर के गाड़ी के चक्का तरी नरियर मड़ा के गाड़ी ल रेंगाएन. चरचरा के नरियर फूटिस त खुरहौरी के परसाद बांटेन. हमन लईका पिचका मिला के ३०-३२ झन होगे रेहेन. एमा एक ठन बिसेस बात ये रहिसे के माई लोगन मन एके टाइप के लुगरा पहिर के जाबो कहिके डिसाइड करे रहिन अउ बने लाल लुगरा म ललियावत रहिन. गाड़ी रवाना होगे. इहाँ शुरू होगे माई लोगन के अन्ताक्षरी, गीत भजन, लईका मन घलो शामिल होगे. उही मन ल त एक एक लाइन सुरता रथे गाना के . येती हमन अपन गोठ बात म मगन रेहेन. इहाँ एक बात ख़ास हे के जेन जघा म हमन गेन वो हा कवर्धा (जिला बन गे हे कवर्धा) ले  25-30 किलोमीटर हवे. कवर्धा हा समझ लौ तीन स्थान; रायपुर, राजनंदगांव अउ दुरुग ले करीब करीब समान दूरी म हे,  ओही करीब 116-120 किलोमीटर. हमन दुरुग ले धमधा गंडई रोड होवत गेन. धमधा -गंडई रोड म ५-६ किलोमीटर दूर बिर्झापुर  गाँव हे. ओ हा आज कल हमर छत्तीसगढ़ के शिगनापुर  होगे हे. उहाँ शनि देव ल बईठाए हें. मोटरेच मा बैठे बैठे दुरिहा ले हाथ जोड़ के परनाम करे लेन.  दुरुग ले धमधा 35 किलोमीटर, धमधा ले कवर्धा करीब 80 किलोमीटर होही. पहिली गंडई पहुचथे उहाँ ले राजनंदगांव कवर्धा रोड जुड़ जाथे. गंडई ले करीब 35-40 किलोमीटर होही. अब मोटर मा लाल लुगरा  वाले मन अउ लईका मन के अन्ताक्षरी चलिस. हमर मन के अपन अपने गोठ बात. कतका जुअर गंडई आगेन पता नई चलिस. उहाँ थोरकिन  सुस्ता  के चाय नाश्ता करेन. अउ करीब 10-30 बजे कवर्धा पहुच गेन. कवर्धा मा वापसी के समय के भोजन के बेवस्था एक भोजनालय मा करके आगू  बढेन.  हमन पहिली पहाड़ी एरिया मा सरोदा दादरी पहाड़ मा जाबो कहिके सोचे रेहेन. उहाँ जाए बर चिल्फी घाटी होके जाय बर परथे. अउ चिल्फी या तो बोडला होके जाव या भोरमदेव जउन ल छत्तीसगढ़ के खजुराहो कथें उहाँ ले होके जाय बर परथे. त हमन भोरमदेव वाले रद्दा (रस्ता) ल चुनेन. ओ मेरन ले वोइसे बड़े गाड़ी जाय बर मना हे.  फेर भैया कानून काखर बर आय, जन साधारण बर. वी आई पी बर थोरे आय. त हमू मन अपन  वी आई पी वाले जुगुत भिड़ा के  अपन गाड़ी ल ओही रद्दा ले लेगेन. बहुतेच बढ़िया घुमावदार रस्ता हे जी. ऐसे लगे  
जईसे हमन शिमला डहर घूमत हन. मोला तो जब नैनीताल गे रेहेंव त कैंची टेम्पल गे रेहेंव ओ रद्दा के सुरता देवा दिस. त चिल्फी अउ भोरम देव के ये रद्दा के बीच मा एक ठन टॉवर सरिक मचान बनाये गे हे. उहाँ ले चढ़ के बने पहाड़ी एरिया के दर्शन करौ. ऊपर देखौ त बढ़िया सीन अउ तरी डहर झान्कौ त गिरिच जाबो तैसे लगई. कइसनो  होय मजा आगे. एक ठन
 झलक देखावत हौं: देखौ पहाड़ी के सीन 

  उहाँ चढ़ के देखौ चारों मुड़ा ल. निहारते च रहौ लगइया नयनाभिराम दृश्य हवै. त उहाँ चढ़ के फोटू खीचेन. उहाँ ले थोरकिन देरी मा चिल्फी बर चलेन. चिल्फी पहुचे के बाद सरोदा दादरी बर बड़ अन्दर मा गाड़ी ल घुसेरे के कोशिश करेन एक जघा मोटर सटक गे रहिसे त जम्मो जात्री मन उतर के फेर ओला ओ पॉइंट मेरन लेगेन. उहाँ के एक बिसेसता बताइन के हमर देस के बीचो बीच ले गे कर्क रेखा ए जघा ले गुजरे हे. एक ठन टीला असन ओला पॉइंट बना के संकेत करे गे हे. ए जघा ल पर्यटन स्थल बनाये के सरकार के योजना ल रोके बर परत हे काबर के इहाँ साइंटिस्ट मन कुछ परयोग करेके सोचत हें. अइसे चर्चा चलत रहिसे. अब इहाँ घलो काये भियु (दृश्य) देखे बर गोल छापरी बरोबर ऊंचा बनाये हे उहाँ ले देखथें ओखरो फोटू हवै येदे  देखौ;
  अरे इहाँ तो पर्यटक मन के रुके के घलो बेवस्था करे बर रेस्ट हाउस जैसे बनाये के  प्लानिंग रहिस  हे जी. ओहू ल देख लौ 
 
अब इहाँ चारो मुड़ा घुम फिर लेन. कुदरती सुन्दरता के आनंद लेन. फेर ये पापी पेट, अउ बिचारी जीभ जउन ल नाक हा आनी बानी के खाए के आइटम के सुगंध लेके  उकसावत रहिसे के अब झन रुक मांग खाए बर, के मांग पूरा करे बर दरी बिछाएन. माई लोगन मन अपन अपन घर ले लाये माल पानी ल मढ़ावत गइन. पेपर प्लेट ले गे रेहेन. अउ पिऔ पानी अउ फेंकौ गिलास वाले गिलास. परसत गिन ललवाइन मन अउ जम्मो झन चटकार चटकार के ख़त गेन.  हाँ एक बात के हमन कसम खा के आये रेहेन के पर्यटन स्थल मा गंदगी नई फैलाना हे. तेखर पाय के जम्मो पेपर प्लेट, गिलास अउ कांही वेस्टेज निकलिस ओला एक ठन बोरा मा भर के कचरा फेंके के जघा मा  ही फेंकेन.  लव खवई के घलो दृश्य देख लौ; अरे ये खवई के नोहे ओखर तैयारी करे के आय.
                                                                                                         
 

 इहाँ सुरता बर जम्मो झन जुरिया के अलग फोटो खिचवाइन 

  अब इहाँ ले जी भर गे त सूपखार बर निकलेन उहाँ जादा घूम त नई पायेन काबर के जल्दी वो भोरमदेव चिल्फी वाले रद्दा हा बंद हो जाथे कहिके. अच्छा सूप खार मा जादा घूमन नई दे उहाँ के रेंजर मन. जंगली जानवर के खतरा हे कहिके. उहाँ के गेस्ट हाउस ल देखेके लाइक हे कहिके उहें थोरकिन देर बइठेन पानी पी के आजू बाजू के  सीन देख के भोरमदेव बर रवाना होगेन. सूपखार के गेस्ट हाउस देखौ: एखर बारे मा कहे जाथे के ये अंग्रेज जमाना के आय बिजली नई रहिस त झुलावन पंखा लगे रहिसे शायद अभी भी लगे हे. अउ ओखर घास फूस के छपरा दिखते हे. ओइसे अन्दर बहुत सुन्दर हे भरपूर सुविधा जनक अउ काहे जाय लक्जरियस हे. 


 
 
भोरम देव के दरसन बर अब रवानगी करेन. बेरा बूडत रहिसे. मडवा  महल देखेच नई पायेन. हाँ त भोरम देव पहुचे के बाद 
मंदिर मा दरसन करेन अउ तारीफ के बात ये हे के सरकार हा इहाँ बने बगीचा बनवा दे हे. भोरम देव हा बहुत प्राचीन ऐताहिसक जघा आय. एखर इतिहास बर मैं अत्केच लिख सकथौं के ये हा नौवी सदी से लेके चौदहवी सदी तक शासन करे नागवंशी राजा मन के बनवाये मंदिर आय. राजा गोपाल देव के शासन काल मा राजा लक्ष्मण देव हा बनवाए रहिसे. ये मंदिर हा खजुराहो अउ कोणार्क मंदिर के समान हे. एखर पूरा जानकारी ल हिंदी मा चस्पा कर दे हंव. इहाँ के मंदिर के अउ सरकार द्वारा ए जघा ल बढ़ावा दे बर बनवाये गे बगीचा के सुन्दरता के घलो हमन फोटो ले हन ओहू ल देखौ; वैसे   संझा पांच साढ़े पांच बजे पहुंचे के बाद सीधा भोरमदेव मंदिर मेरन लगे  बजार ले ताजा ताजा सब्जी ल देख के अउ सस्ता मिलत  रहै ते पाय के पहिली दू किलो पताल  (टमाटर) लेंव मैं हा. फेर मंदिर मा जाके भगवान् शंकर के पूजा अर्चना करेन. नवा बने बगीचा के भी घूम घूम के आनंद लेन. का होथे लउटत खानी के जर्नी मा लरघियाये (अलसाए) बरोबर लगे लागथे तभो ले हमन कस के मजा लेन पिकनिक के. पूरा कार्यक्रम जोरदार रहिस. देखते देखत कइसे बेरा बूड़ गे पता नई चलिस. रात हो गे रहिसे करीब सात बज गे रहिसे. अब दुरुग पहुचे बर कम से कम तीन घंटा लगतिस. कहूं भोजन बेवस्था नई होय रहितिस त सबके घर गोसैनिन मन का सोचतिस. अतेक दुरिहा ले घूम के आव अउ फेर रान्धौ. भोनालय मा खाएन मोटर स्टैंड मा मारवाड़ी भोजनालय हे उंहचे.  सब झन बैठ गेन मोटर मा अउ करीब ८   बजे रवाना होयेन. दुरुग पहुचत ले ग्यारा बज गे रात के. सबो झन अपन अपन घर पहुचेन. हम तो नींद के देवी के शरण मा जल्दी  चल देन. 
                                 ये पिकनिक खातिर हमर कहना हे के हमर राज मा घलो देखे के लाइक अब्बड़ अकन जघा हे. प्रचार प्रसार के आभाव मा ये मन ल बढ़ावा नई मिलत हे. भले बर्फीला जघा के मजा अलग होथे पर ओतेक दुरिहा जाए बर एक सामान्य आदमी के खीसा (जेब) ल घलो देखे बर परथे. सुरता कर कर के जतका खियाल आइस ओतका लिहे हंव जी. 
जय जोहार!

 
      

    

छत्तीसगढ स्थापत्य कला के अनेक उदाहरण अपने आंचल में समेटे हुए हैं। यहां के प्राचीन मंदिरों का सौंदर्य किसी भी दृष्टि से खजुराहो और कोणार्क से कम नहीं है। यहां के मंदिरों का शिल्प जीवंत है। छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर से लगभग 116 किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर सकरी नामक नदी के सुरम्य तट पर बसा कवर्धा नामक स्थल नैसर्गिक सुंदरता और प्राचीन सभ्यता को अपने भीतर समेटे हुए है। इस स्थान को कबीरधाम जिले का मुख्यालय होने का गौरव प्राप्त है। प्राचीन इतिहास की गौरवशाली परंपरा को प्रदर्शित करता हुआ कवर्धा रियासत का राजमहल आज भी अपनी भव्यता को संजोये हुए खडा है।
   कवर्धा से 18 किलोमीटर की दूरी पर सतपुडा पर्वत श्रेणियों के पूर्व की ओर स्थित मैकल पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे सुरम्य वनों के मध्य स्थित भोरमदेव मंदिर समूह धार्मिक और पुरातत्वीय महत्व के पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। भोरमदेव का यह क्षेत्र फणी नागवंशी शासकों की राजधानी रही जिन्होंने यहां 9वीं शताब्दी ईस्वी से 14वीं सदी तक शासन किया। भोरमदेव मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में फणी नागवंशियों के छठे शासक गोपाल देव के शासन काल में लक्ष्मण देव नामक राजा ने करवाया था।
   भोरमदेव मंदिर का निर्माण एक सुंदर और विशाल सरोवर के किनारे किया गया है, जिसके चारों ओर फैली पर्वत श्रृंखलाएं और हरी-भरी घाटियां पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। भोरमदेव मंदिर मूलत: एक शिव मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि शिव के ही एक अन्य रूप भोरमदेव गोंड समुदाय के उपास्य देव थे जिसके नाम से यह स्थल प्रसिद्ध हुआ। नागवंशी शासकों के समय यहां सभी धर्मो को समान महत्व प्राप्त था जिसका जीता जागता उदाहरण इस स्थल के समीप से प्राप्त शैव, वैष्णव, बौद्ध और जैन प्रतिमाएं हैं।
   भोरमदेव मंदिर की स्थापत्य शैली चंदेल शैली की है और निर्माण योजना की विषय वस्तु खजुराहो और सूर्य मंदिर के समान है जिसके कारण इसे छत्तीसगढ का खजुराहो के नाम से भी जानते हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर तीन समानांतर क्रम में विभिन्न प्रतिमाओं को उकेरा गया है जिनमें से प्रमुख रूप से शिव की विविध लीलाओं का प्रदर्शन है। विष्णु के अवतारों व देवी देवताओं की विभिन्न प्रतिमाओं के साथ गोवर्धन पर्वत उठाए श्रीकृष्ण का अंकन है। जैन तीर्थकरों की भी अंकन है। तृतीय स्तर पर नायिकाओं, नर्तकों, वादकों, योद्धाओं, मिथुनरत युगलों और काम कलाओं को प्रदर्शित करते नायक-नायिकाओं का भी अंकन बडे कलात्मक ढंग से किया गया है, जिनके माध्यम से समाज में स्थापित गृहस्थ जीवन को अभिव्यक्त किया गया है। नृत्य करते हुए स्त्री पुरुषों को देखकर यह आभास होता है कि 11वीं-12वीं शताब्दी में भी इस क्षेत्र में नृत्यकला में लोग रुचि रखते थे। इनके अतिरिक्त पशुओं के भी कुछ अंकन देखने को मिलते हैं जिनमें प्रमुख रूप से गज और शार्दुल (सिंह) की प्रतिमाएं हैं। मंदिर के परिसर में विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाएं, सती स्तंभ और शिलालेख संग्रहित किए गए हैं जो इस क्षेत्र की खुदाई से प्राप्त हुए थे। इसी के साथ मंदिरों के बाई ओर एक ईटों से निर्मित प्राचीन शिव मंदिर भी स्थित है जो कि भग्नावस्था में हैं। उक्त मंदिर को देखकर यह कहा जा सकता है कि उस काल में भी ईटों से निर्मित मंदिरों की परंपरा थी।
   भोरमदेव मंदिर से एक किलोमीटर की दूरी पर चौरा ग्राम के निकट एक अन्य शिव मंदिर स्थित है जिसे मडवा महल या दूल्हादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। उक्त मंदिर का निर्माण 1349 ईसवी में फणीनागवंशी शासक रामचंद्र देव ने करवाया था। उक्त मंदिर का निर्माण उन्होंने अपने विवाह के उपलक्ष्य में करवाया था। हैहयवंशी राजकुमारी अंबिका देवी उनका विवाह संपन्न हुआ था। मडवा का अर्थ मंडप से होता है जो कि विवाह के उपलक्ष्य में बनाया जाता है। उस मंदिर को मडवा या दुल्हादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर 54 मिथुन मूर्तियों का अंकन अत्यंत कलात्मकता से किया गया है जो कि आंतरिक प्रेम और सुंदरता को प्रदर्शित करती हैं। इसके माध्यम से समाज में स्थापित गृहस्थ जीवन की अंतरंगता को प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया गया है।
   भोरमदेव मंदिर के दक्षिण पश्चिम दिशा में एक किलोमीटर की दूरी पर एक अन्य शिव मंदिर स्थित है जिसे छेरकी महल के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण भी फणीनागवंशी शासनकाल में 14वीं शताब्दी में हुआ। ऐसा कहा जाता है कि उक्त मंदिर बकरी चराने वाले चरवाहों को समर्पित कर बनवाया गया था। स्थानीय बोली में बकरी को छेरी कहा जाता है। मंदिर का निर्माण ईटों के द्वारा हुआ है। मंदिर के द्वार को छोडकर अन्य सभी दीवारें अलंकरण विहीन हैं। इस मंदिर के समीप बकरियों के शरीर से आने वाली गंध निरंतर आती रहती है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को भी संरक्षित स्मारकों के रूप में घोषित किया गया है।
   भोरमदेव छत्तीसगढ का महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। जनजातीय संस्कृति, स्थापत्य कला और प्राकृतिक सुंदरता से युक्त भोरमदेव देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण केंद्र है। प्रत्येक वर्ष यहां मार्च के महीने में राज्य सरकार द्वारा भोरमदेव उत्सव का आयोजन अत्यन्त भव्य रूप से किया जाता है जिसमें कला व संस्कृति के अद्भुत दर्शन होते हैं।
   कैसे पहुंचे
   सडक मार्ग से भोरमदेव रायपुर से 134 किमी. और बिलासपुर से 150 किमी, भिलाई से 150 किमी और जबलपुर से 150 किमी दूर है। यहां निजी वाहन, बस या टैक्सी द्वारा जाया जा सकता है।
   निकटतम रेलवे स्टेशन:रायपुर 134 किमी, बिलासपुर 150 किमी और जबलपुर 150 किमी दूर।
   निकटतम हवाईअड्डा:रायपुर 134 किमी जो दिल्ली, मुंबई, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची, विशाखापट्नम व चेन्नई से सीधी रेलसेवाओं से जुडा है।
   कहां ठहरें
   कवर्धा में विश्रामगृह और निजी होटल हैं। भोरमदेव में भी पर्यटन मंडल का विश्रामगृह और निजी रिसॉर्ट हैं।




   

   






3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

समझ कर घूम लिए, तस्वीरें देख ली..अच्छा लगा.

कवर्धा बहुत छुटपन में घूमें थे, बड़ी धुंधली यादें हैं.

आपका आभार.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहत ही सुंदर यात्रा विवरण, ऐसा लगा कि हम भी आपके भ्रमण पर गए थे। चित्रों ने तो इसे जीवंत कर दिया। गाड़ा गाड़ा बधाई।

शरद कोकास ने कहा…

छ.ग. के पर्यटन मंत्री को यह पोस्ट पढ़ाई जाये ।