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शनिवार, 15 सितंबर 2012

इसमें कछु नहीं है हर्जा

धन्य है हमारा देश! 
भिन्न भिन्न बोली 
भिन्न भिन्न भाषा 
हर का  पृथक पृथक परिवेश 
कब तक बनी रहेगी "बेचारी"
पाकर भी  राजभाषा का दर्जा 
सोचती है;  कम से कम याद
तो करते हो, पखवाड़ा ही सही
परिपाटी चलने दो, 
इसमें कछु नहीं है हर्जा  
जय जोहार ........

3 टिप्‍पणियां:

संध्या शर्मा ने कहा…

सुन्दर उमड़त धुमड़त विचार... हिंदी दिवस की शुभकामनायें....

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

चलन दे गाड़ा उत्ता धुर्रा
सुकारो दाई के लाई मुर्रा
हिन्दी हिन्दी जै जै होवे
बाजत रहाय सूपली पर्रा

जय जोहार

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

बनी राजमाता मगर ,कर ना पाई राज
माता की यह बेबसी , बेटे धोखेबाज |

जय जोहार