आईए मन की गति से उमड़त-घुमड़ते विचारों के दांव-पेंचों की इस नई दुनिया मे आपका स्वागत है-कृपया टिप्पणी करना ना भुलें-आपकी टिप्पणी से हमारा उत्साह बढता है

शनिवार, 16 जनवरी 2010

अखबार पढने का सुर

आज सबेरे से  अखबार का सुर चढ़ा हुआ है. आज कल तरुण सागर म.सा. के कडवे प्रवचन भिलाई के सेक्टर सिक्स पुलिस ग्राउंड में चल रहे हैं. लेकिन कल जो प्रवचन हुआ है, जिसका जिक्र आज के समाचार पत्र (दैनिक भास्कर) में मैं जो पढ़ा, उसे यहाँ उद्धृत करने से नहीं रोक पा रहा हूँ.
"........थक कर मत बैठिये, अंग में यदि जंग लग जाय तो जिन्दगी की जंग जीतना मुश्किल हो जाता है. ..... आकांक्षा और आवश्यकता में फर्क: आवश्यकता पूरी हो सकती है लेकिन आकांक्षा की पूर्ती नहीं की जा सकती.  आवश्यकता घड़े की भांति है और आकांक्षा बिना तले की बाल्टी के समान है. घड़ा तो भर जाता है लेकिन बिना तले की बाल्टी को कभी भी भरा नहीं जा सकता
आदमी जिन्दगी भर बाल्टी को भरने के लिए कुँए कुँए भटकता है. बाल्टी को कुँए में डालने पर वह भरी हुई दिखती है और बाहर निकलने पर खाली मिलती है.  यदि बाल्टी को बदल दो या फिर उसमे  संतोष रुपी पेंदा लगा दो तो बाल्टी भर जायेगी......"    याने "जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान"
सबसे बड़ी बात आज के परिवार में सामंजस्य बिठाने के लिए सास बहू के रिश्तों में खटास नहीं आनी चाहिए. इसके लिए भी संत जी ने अपने विचार कुछ इस तरह प्रकट  किये:
(१) बहू लायें बहू रानी न लायें
जो अपने बेटे की शादी करने वाले हैं वे अपने घर में बहू लायें बहू रानी न लायें. बहू संस्कार लेकर आएगी. बहुरानी कर लेकर आयेगी और जो कर लेकर आएगी वो घर में अपनी सरकार चलाएगी जबकि जो संस्कार लेकर आएगी वो आपके बुलाने पर सर के बल चलकर आएगी. यही नहीं मुनिश्री ने आजकल चरणस्पर्श करने के तरीके पर भी कटाक्ष किया . ....आजकल चरण का नहीं बल्कि घुटने का स्पर्श किया जाता है. चरण स्पर्श का मतलब है कि आपके चरणों में जो आचरण है वो हमें दो. घुटने में सिवाय दर्द के कुछ नहीं होता.  घुटना छूने का मतलब है आपके घुटने में जो दर्द है वह हमें मिल जाय.
ये तो हुई बहू और बहू रानी. 
(२) सास के लिए चार नसीहतें
पहली नसीहत बहू को अपनी बेटी मन्ना (२) बहू कि भूल और  गलती पर बहू को जितना चाहे भला बुरा कह लेना लेकिन उसके मायके वालों को भला बुरा कतई नहीं कहना क्योंकि कोई  बहू उसे बर्दाश्त नहीं कर सकेगी. (३) बहू की बुराई मंदिर या घर के बाहर कभी न करना और (४) सास होने के नाते बहू की चाहत का हमेशा ख्याल  रखना क्योंकि "सास भी कभी बहू थी.
ऐसी  बातों के श्रवण से अखबार के वाचन से कुछ तो असर होता होगा.......................


3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

धन्यवाद इसे यहाँ प्रस्तुत करने का.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

नाईस

Sanjeet Tripathi ने कहा…

bhai sahab, muni shri tarun sagar ji raipur me the itne din tak, yaha pravchan diye. lekin dikkat ki bat ye hai bahut se logo k liye ki muni khud logo k kandhe par sinhasan me sawari karte hain. khud itne aishoaaram me pravchan dete hain jitne kharche me kai bhookho ko khana khilaya ja sakta hai, ya fir kai anpadh ko padhai karwai ja sakti hai, isi bare me ek sampadak nam patra kinhi jain mahila ka hi daily evening chhatt8isgarh me bhi chhapa tha...

ab gaur farmaya jaye fir kaha jaye.....