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शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

"जात पात पूछे नहीं कोई. हरि का भजे सो हरि का होई."


सृष्टि की रचना कैसे हुई? मनु सतरूपा की उत्पत्ति. धीरे धीरे मानवीय सभ्यता का विकास.. वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था... कर्म के आधार पर. परिवार की रचना, परिवार से घर, घर से समाज, समाज से गाँव, शहर, बाकी छोटे छोटे तबके तहसील जिला प्रदेश फिर देश और सब देश मिलकर एक विश्व. चार वर्णों में बंटा यह समाज. विभिन्न जातियों उपजातियों  में बंटा यह समाज. आज का परिदृश्य  कुछ मामलों  में मेरी क्षेत्रीय बोली में लिखी कविता की कुछ पंक्तियों को सही साबित  करता हुआ. पंक्तियाँ पुनः दर्शाई जाती  हैं:
कतेक सुग्घर मिल जुल के रहन दिल माँ रहै सबके प्यार
बड़े मन के लिहाज करै सब पावै छोटे मन दुलार

भुलाके सब रिश्ता नाता ला होगेन कतेक दुरिहा
एही फरक हे काल अउ आज माँ एला तुमन सुरिहा 


पढाई कर लिए जॉब लग गया. वैसे तो पढाई के समय से ही इश्क विश्क का चक्कर चलने लगता है और यदि जॉब में रहते हुए यह चक्कर चला तो बात ही क्या है. हो गयी रजा मंदी. पर इस बाबत पहले से माता पिता / अभिभावकों को जानकारी नहीं रहती. पानी सर से ऊपर हो गया रहता है तो स्व-निर्णय पर इनसे मुहर लगवाने आ गए घर.  इसमें कोई हर्ज नहीं है पर क्या इनका फ़र्ज़ यह नहीं बनता कि जो माँ बाप अपनी संतान की उच्च शिक्षा, उसकी बेहतरी  के लिए हर संभव प्रयास कर उसे उस ऊंचाई तक पहुंचाने  में अपना जी जान लगा देते हैं , उनसे मर्यादा पूर्वक चर्चा कर सहमति ले यह कार्य संपन्न करे.  अरे कोई अपने जिगर के टुकड़े के लिए एकदम निष्ठुर कैसे हो जाएगा. सहमति प्रदान करेगा ही. यह  मानकर चलना  चाहिए कि संतान व माता पिता हंसी ख़ुशी राजी होंगे तो कभी भी मन में किसी भी प्रकार का मलाल नहीं रहेगा अन्यथा मन के किसी कोने में संतान का स्व-निर्णय कचोटता रहेगा. 
अब इस बारे में थोडा जिक्र इस बात का करना अनुचित नहीं होगा कि पहले शादी ब्याह अपने वर्ग के ही लोगों में करने को क्यों कहा जाता था कुछ तो कारण होगा. लड़का हो या लड़की उसके परिवार कि पृष्ठ भूमि, उनके घर का संस्कार यह सब देखा जाता था ताकि आने वाले जनरेशन में भी वही संस्कार बना रहे.  और सबसे बड़ी बात दोनों परिवार में सामंजस्य बना रहे. रहन सहन खान पान में समानता हो. 
चलिए मन शांत रखने के लिए इन पंक्तियों को ही याद रखें   "जात पात पूछे नहीं कोई. हरि का भजे सो हरि का होई."........


3 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

क्या बात है हरी का भजो तो हरिका होय ...सटीक

संगीता पुरी ने कहा…

पहले शादी ब्याह अपने वर्ग के ही लोगों में करने को क्यों कहा जाता था कुछ तो कारण होगा. लड़का हो या लड़की उसके परिवार कि पृष्ठ भूमि, उनके घर का संस्कार यह सब देखा जाता था ताकि आने वाले जनरेशन में भी वही संस्कार बना रहे. और सबसे बड़ी बात दोनों परिवार में सामंजस्य बना रहे. रहन सहन खान पान में समानता हो.
अभी भी दोनो पक्ष एक पेशे में हों .. तो विवाह में समायोजन में आसानी होती है !!

Udan Tashtari ने कहा…

"जात पात पूछे नहीं कोई. हरि का भजे सो हरि का होई."........


-विचारों का उचित सामनजस्य हो, तो सब ठीक!!