आज हो गया हूँ "विचार शून्य"
कार्यालय से आते ही अपनी तोंद पे नजर दौड़ाया
आवाज सुनाई दिया, भूख लगी है,
भोजन बना नहीं था, पैकेट में रखी मूंगफल्ली चबाया.
देर नहीं लगी भोजन बनने में, थाली लगने में
थोड़ी पचक गई थी तोंद, उसे बढ़ाया
सोच में डूबा हूँ, क्या लिखूं?
ख़बरें वही हैं; नेताओं के आरोप प्रत्यारोप,
चोरी, डकैती, लूटपाट, हत्या, नगर में
आवागमन सुगम बनाने के लिए बने हुए
रेलवे अन्डर ब्रिज की दीवारों का बारिस के पहले थपेड़े में ही ढहना
किस्से ही किस्से हैं, इन सबका क्या कहना
मान लिया है सभी ने इन बातों को जीवन का अभिन्न अंग
जब तक जियेंगे, पड़ेगा हमें इन्हें सहते रहना.
नोट:- अभी लगता है ब्लॉग का मानसून नहीं आया है. फुहारें दिखाई पड़ती हैं. मूसलाधार बारिश नहीं.(हो सकता है बारिश वाले इलाके में हम जाते न हों).
जय जोहार........
12 टिप्पणियां:
sahi kaha sir...fuhaarein hi hain chitput boondabaandi hoti hai fir aasmaan saaf...haan lekin kabhi kabhi bemausam ajeeb se chakrvaat aa jaate hai...jaati dharm ke baadlon se...lekin mujhe pooar yakeen hai baarish jaldi hi hogi...
are bhaiya tond ko sambhalne ka, badhi to pahle se hai na, aur badh gai to fir sambhale na sambhlegi saheb... ye aisi cheej jo badhne ke baad kam nai hoti....;)
ब्लागिया मानसून तो बारोह महीने छाया रहने वाला है गुप्ता जी..अभी भी किसी न किसी कोने में छींटे पड ही रहे होंगें :)
बहुत सुन्दर।
Bhukhe Bhajan na hoy gopala
...क्या बात है ... शानदार लयबद्ध कविता, बहुत बहुत बधाई!!!
... ले भुला गय रहेंव गा ... जय जोहार!!!
बहुत बढ़िया जनाब.."
बढ़िया बात सूर्यकांत जी , अभी रुक-रुक कर गरज के साथ छीटे पड़ेंगे !
ब्लॉग का मानसून नहीं आया है.
फुहारें दिखाई पड़ती हैं.
मूसलाधार बारिश नहीं.
हो सकता है बारिश वाले इलाके में हम जाते न हों
जय जोहार........ aapka note dekhiye kitani maarmik kavita hai......ha ha ha.....
ताजा हवा के एक झोंके समान
हमे मज़ा नही आया ....
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