जैसा कि कल हमने ललित भाई के आने के समाचार का पोस्ट लगाया, उसमे क्षेत्रीय बोली का प्रयोग भी किया। टिप्पणी भी आई है जैसे को तैसा का विचार के साथ याने छत्तीसगढी मे। आज सोचा क्यों न अपनी बोली मे एक छोटी सी पुडिया यहां छोड़ दी जाय। लीजिये मै ब्लोग लिखने की लत क्यों पाला ? इसका उत्तर छत्तीसगढ़ी में "मोला ललित भाई लुति लगाइस तेखरे पाय के इंहां बैठे बिना चैन नइ परै। अर्थात ललित भाई ने उकसाया ब्लोग मे आने के लिये इसीलिये रोज यहां बैठे बिना चैन नही पड़ता। लुति लगाना = उकसाना। तेखरे पाय के = इसी वजह से या इसी कारण से।(१) धूप बडी तेज है।(२) धरती तप रही है।(३) बिना जूते चप्पल के आप पैर नही रख सकते। अपनी बोली मे " (१) कतेक तीपत हे ये घाम हा। (२) भोंभरा जरत हे। (३) बिन पनही के तैं रेन्गे नई सकस।" धूप बडी ………पैर नही रख सकते" वाक्यांश के अर्थ के लिये सन्केत है हिन्दी शब्दों का रन्ग(१) नीला और छत्तीसगढी के लिये लाल। (२) हिन्दी के लिये बैगनी छत्तीसगढी के लिये गुलाबी। (३) हिन्दी के लिये सन्तरा और छत्तीस्गढी के लिये भूरा। अभी इतना ही। … हाँ ललित भाई लगता है थकान की वजह से अभी दिखाई नही पड़ रहे हैं। वैसे कल बोले थे कि अभी पठन पाठन मे लगेंगे फिर अपनी गाड़ी शुरु करेन्गे। ……जय जोहार्…
6 टिप्पणियां:
...महु सीखत हंव तोर ब्लाग मा छात्तीसगढी !!!
यह बढ़िया ज्ञान दिया..इसी बहाने हमारा रिविजन हो जायेगा. :)
जय हो गुप्ता जी
बने लिखे हस
जोहार ले
भोंभरा तो जरतेच है भइया, भुइयाँ मँ पाँव नइ धरन देत हय।
तरी उप्पर ले जरत हे भाई. उखरा पांव मत निकले कर गा.
are vaah mazaa aa gayaa bhaayi...sach
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